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वृत्तभावः
१०१७
वृद्धाम्बुधि
वृत्तभावः (पुं०) आचरण भाव।
दानवशक्रादि ध्वान्तवारिदवैरिषु इति विश्वलोचनः (जयो०वृ० * वर्तुलाकारत्व। (जयो० ५/४६)
१८/७४) वृत्तमुखः (पुं०) गगन मुख। (सुद० )
वृथा (अव्य०) [वृ+थाल+किच्च] व्यर्थ का, निष्प्रयोजन वृत्तमोहः (पुं०) चारित्रमोह, (सम्य० १२०) किं वृत्तमोहाऽस्तु युक्त। (सुद० ४/१०) (समु० ७/१०) दृशे किलारिः।
* अनावश्यक रूप से, आलस्य पूर्णता से, अनुचित रूप में। वृत्तरत्नाकरः (पुं०) छन्दशास्त्र का नाम।
* मिथ्या, आलसी। वृत्तवचः (पुं०) वृतान्त, समाचार। (सुद० ८८)
वृथाकथा (स्त्री०) व्यर्थ का जन्म, सार्धकता रहित जन्म। वृत्तशास्त्रं (नपुं०) छन्द शास्त्र।
वृथाकारः (पुं०) मिथ्या रूप। वृतशास्त्रज्ञ (वि०) छन्दशास्त्रज्ञ।
वृथाजन्मन् (नपुं०) व्यर्थ का जन्म, सार्धकता रहित जन्म। वृत्तसरूपः (पुं०) सुंदर वृतान्त। (रूप। (जयो० ५/४७) वृथादानं (नपुं०) अन्यथा दान। निष्फल दान। वृत्ताधिगमिन् (वि०) कथानक को प्राप्त। (वीरो० ११/१) वृथाभिमानं (नपुं०) निष्प्रयोजन अहंकार। (वीरो० २०/२३) वृतान्त (वि०) उदन्त, कथन। (जयोवृ० २/१४१) वृथामतिः (स्त्री०) दुर्बुद्धि, मूर्ख। वृत्तिः (स्त्री०) [वृत्+क्तिन्] कार्य, गति, कृत्य, क्रिया। वृथामांसं (नपुं०) अनिष्ट योग्य मांस। सवृत्तिरूपं चरणं श्रुतं च। (सम्य० १२८)
वृथावादिन् (वि०) मिथ्या भाषी। * साधन।
वृथाश्रमः (पुं०) व्यर्थ चेष्टा। * प्रवृत्ति। (सम्य० ४०) (समु० १/२३)
वृद्ध (वि०) [वृध्+क्त] वरिष्ठ, ज्येष्ठ, वृद्धिगत, बढ़ा हुआ। * अस्तित्व, सत्ता।
जिसकी बुद्धि इन्द्रियों एवं कर्मेन्द्रियों का कार्य शिथिल पड़ * अवस्था, दशा।
गया हो। जिसके हाथ, पैर अवस्था विशेष के कारण * स्वभाव। (सुद० २/२)
शिथिल होने से समुचित काम न कर सके। (हित० ४९) * क्रम, प्रणाली। (सुद० ७३)
* बड़ा, महत्, विशाला * सदाचरण, चारित्तदशा, कार्यपद्धति।
* बुद्धिमान्, विद्वान्। * रचना शैली। (सुद० १२४)
वृद्धः (पुं०) ०बूढ़ा व्यक्ति, योग्य व्यक्ति, आदरणीय व्यक्ति। * मजदूरी, भाड़ा।
(सुद० १/१८) * भाष्य, टीका, विवेचन, टिप्पणिका। (जयो० १८/६१) वृद्धं (नपुं०) गुग्गुल। महावृत्ति (सुद०८२)
वृद्धकाकाकः (पुं०) पर्वतीय कोवा। वृत्तिपरिसंख्यानं (नपुं०) आजीविका के साधनों में सीमाकरण। वृद्धद्वारा (पुं०) वृद्धपुरुष। (जयो० ६/१०५)
* तप विशेष।* बाह्य तप का एक भेद, जिसमें आजीविका वृद्धनाभिः (स्त्री०) स्थूलकाय, मोटे पेट वाला। के साधनों पर भी विराम लगाया जाता है।
वृद्धपरम्परा (स्त्री०) तीर्थसम्भव। (जयो०७० ३/१०) वत्तिकषित (वि.) जीविका से दःखी।
वृद्धभावः (पुं०) बुढ़ापा, वृद्धापन। वृत्तिचक्रं (नपुं०) राजचक्र।
वृद्धवाहनः (पुं०) आम्र तरु।। वृत्तिछेदः (पुं०) जीविका विहीन व्यक्ति।
वृद्धशशकः (पुं०) बूढा खरगोश। (दयो० ४६) वृत्तियुत (वि०) जीविका सहित। (दयो० ११३)
वृद्धशासनं (नपुं०) वृद्धजन की आज्ञा। वृत्तिवैकल्य (नपुं०) जीविका का अभाव।
वृद्धश्वश्रू (स्त्री०) बूढ़ी सास। (दयो० १७) वृत्तिस्थ (वि०) सदाचारी।
वृद्धसमयः (पुं०) काव्यशास्त्र। (जयो० २/३४) वृत्तिसंख्यानं (नपुं०) तप का एक भेद। (जयो० २८/११) वृद्धसूत्रकं (नपुं०) कपास का गाला, इन्द्रतूल। वृत्रः (पुं०) [वृत्+रक्] राक्षस विशेष। * दानव। (जयो०१० वृद्धा (स्त्री०) [वृद्ध+टाप्] बूढी स्त्री। १८/७४)
वृद्धानुपेयः (पुं०) वृद्धों की सेवा। (वीरो० १७/८) * मेघ, ०तम, अंधकार, ०ध्वनि, गिरि पर्वत। वृत्रो | वृद्धाम्बुधि (पुं०) वृद्ध समुद्र। (सुद० १/१८) श्रयन्ति
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