________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विक्रान्त
९६३
विखानसः
शूरवीरता।
०भीगा हुआ, अत्यंत गीला। कदमचाल, पग बढ़ाना।
सूखा, पुराना। विक्रान्त (वि०) [वि+क्रम् तृच] विजयी, बहादुर।
विक्लिष्ट (भू०क०कृ०) [वि+क्लिष्+क्त] ०अत्यंत दु:खी, विक्रान्तृ (पुं०) सिंह।
व्याकुल, परेशान, संत्रस्त। ०शूरवीर।
घायल, परितापजन्य। विक्रिया (स्त्री०) [वि+कृ+श+टाप्] ०अनुचित कार्य। विक्षत (भू०क०कृ०) [वि+क्षण+क्त] ०घायल, क्षत-विक्षत, (हित०११)
चोट ग्रस्त। विकार, निवृति।
फाड़ा गया, विदीर्घ किया गया। माया (जयो०वृ० ३/६८) छल-कपट।
विक्षावः (पुं०) [वि+क्षु+घञ्] ०खांसी, छींक आना। विक्षोभ, उत्तेजना, उद्वेग, जोश।
०ध्वनि। ०क्रोध, आवेग, गुस्सा।
विक्षिप्त (भू०क०कृ०) [वि+छिप्+क्त] बिखेरा हुआ, फेंका ०अप्रसन्नता, हर्षाभाव।
हुआ, छितराया हुआ। अनिष्ट, उल्लंघन।
०पदच्युत किया हुआ। गुण सामर्थ्य, अणिमादिशक्ति। जिस शक्ति के माध्यम उन्मत्त। (मुनि० ११) से छोटा-बड़ा आदि रूप धारण किया जा सके।
चालाक। (समु० ३/३२) ०ऋद्धि। (सम्य० २२)
०भ्रान्त। अनेक प्रकार के रूप धारण करना।
०व्याकुल, विक्षुब्ध, निराकृत। विक्री (सक०) बेचना, विक्रय करना। विक्रीयते-निष्करुणैर्मगीव' | विक्षिप्तता (वि०) पागलपन। (दयो० ७६) (सुद० ३/४०) (वीरो० ९/७)
विक्षीणकः (पुं०) देवसभा। इन्द्र परिषद्। विक्रीण (वि०) बेचना, विक्रय करना। यः क्रीणाति ज्ञमर्घमितीदं विक्षीरः (पुं०) [विशिष्टं विगतं वा क्षीरं यस्य] मदार का पौधा। विक्रीणीतेऽवश्यम्। (सुद०९१)
विक्षेपः (पुं०) [वि+छिप्+घञ्]० फेंकना, बिखेरना, डालना। विक्रीत (वि०) पणयित, बेचा गया। (जयो०वृ० २५/८७५) भेजना, प्रेषण करना। विक्रेय (वि०) [वि+की+यत्] बेचने योग्य, विक्रय करने योग्य। ०ध्यान हटाना, विचलित होना। विक्रोशनं (नपुं०) [वि+क्रुश्+ल्युट्] ०चीत्कार, चिल्लाना, ०पागल। विज्ञोऽपि विक्षेपमितिप्रथा नः (वीरो० १७/१५) पुकार, ढेर।
०हड़बड़ाना, व्याकुल होना। गाली देना।
भय, बेचैनी, निराशा। विक्लप (वि०) विचार करने वाला, सोचने वाला। (दयो०५२६) | विक्षेपणं (नपुं०) [वि+क्षिप+ल्युट] फेंकना, डालना, निकाल विक्लव (वि०) [वि+क्लु+अच] ०त्रस्त, भयभीत, डरा हुआ। बाहर करना। ०व्याकुल। (जयो० १३/३८)
भेजना, प्रेषण। घबराना। (दयो० ९२)
बिखेरना, फैलाना। विह्वल। रथवेगवशेनविक्लव:' समभूत्तत्र वरः समुत्सवः।' | विक्षेपणीकथा (स्त्री०) स्वमत-परमत की कथा। (जयो० १३/६९)
विक्षोभः (पुं०) [वि+क्षुभ्+घञ्] ०दुःख, पीड़ा। दुःखी, कष्टग्रस्थ, संतप्त।
०द्वन्द्व, संघर्ष। रोगग्रस्त, परास्त।
हलचल, हिलाना, ध्यान हटाना। ०हकलाने वाले, लड़खड़ाने वाला।
विखु (वि.) [नासिकायाः ख] नासिका रहित, नाक रहित। विक्लिन्न (भू०क०कृ०) [वि+क्लिद्+क्त] ०मुझाया हुआ, विखण्डित (भू०क०कृ०) [वि+खण्ड्+क्त] विभक्त किया क्लान्त।
हुआ, पृथक् किया हुआ, विभाजित। ०थका हुआ।
विखानसः (पुं०) एक साधु।
For Private and Personal Use Only