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धर्मलाभः
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धर्मानुरागः
धर्मलाभः (पुं०) धर्मवृद्धि। धर्मवत्सल (वि०) कर्त्तव्यशील, धर्मपरायण। धर्मवर्तिन् (वि०) कर्त्तव्यशील, धर्मपरायण, न्यायशील। धर्मवादः (पुं०) स्वसमय का ज्ञायक, धर्म कथन, धर्मचर्चा। धर्मवासरः (पुं०) पूर्णिमा दिवस। धर्मवित्स (वि०) धर्मवेत्ता, धर्म स्वरूप जानने वाला। 'धर्मो
वदेत् केवलिनं हि सर्वं न धर्मवित्सोऽस्ति यतो ह्यखर्वः।
(वीरो० १७/२५) धर्मविद् (वि०) धर्मबोध, संस्कार जन्य शिक्षा। धर्मविप्लवः (पुं०) धर्म विरोध, अनैतिकता, कर्त्तव्य संहार,
नीति उल्लंघन। धर्मवीरः (पुं०) शौर्यसम्पन्न, अत्यधिक धर्मनिष्ठ योद्धा। धर्मवृक्षः (पुं०) कल्पवृक्ष, वृषतरु। (जयो० २५/८४) धर्मवृद्ध (वि०) सद्गुणों में ज्येष्ठ सद्गुणी वृद्ध व्यक्ति। धर्मवृद्धि (स्त्री०) धर्मलाभ, धर्मवृद्धि, सद्गुणों का विकास,
पवित्र गुणों की प्राप्ति। उत्तमाङ्ग सुवंशस्य यद्दासीदृषिपादयोः।
धर्मवृद्धिरभूदास्याद् गुणमार्गणशालिनः।। (सुद० ४/४) धर्मशर्मा (पुं०) नाम विशेष, जैन वेद, वेदांग परायण ब्राह्मण
हरिश्चन्द्र कवि (जयो० २२/८५) धर्मशर्मा नाम ब्राह्मणः काशिकातो विद्याध्ययनं कृत्वा वेद-वेदङ्ग-पारङ्गतः' (दयो०
९०) १. (वि०) धर्म के सुख का अनुभव करने वाला। धर्मशर्माधिराट् (पुं०) धर्मशास्त्र में प्रवीण राजा-जयकुमार।
(जयो०३० २२।८५) धर्मशर्माभूत् (वि०) धर्म में सुख का अनुभव करने वाला।
'धर्मतो धर्म वा शर्म सुखं यस्य स धर्मशाभूत्' (जयो०वृ०
२२।८५) धर्मशर्माभ्युदयं (नपुं०) महाकवि हरिश्चन्द्र विरचित एक जैन
महाकाव्य। धर्मशाला (स्त्री०) धर्मार्थ संस्था, यात्रियों के लिए नि:शुल्क
ठहरने योग्य स्थान। धर्मस्थान (जयो०७० २५/३९) वृषव
(जयोवृ० २५/३९) धर्मशासन (नपुं०) धर्मशास्त्र, धर्म संहिता। धर्मशास्त्र (नपुं०) १. आध्यात्म शास्त्र, २. पवित्रशास्त्र, ३.
नीतिपरक शास्त्रा धर्मशील (वि०) पुण्यात्मा, पुण्यवान, धर्मनिष्ठ, नीतिज्ञ, धर्मज्ञ,
विदज्ञ, सद्गुणज्ञ, सदाचारी। धर्मसंधर्ता (वि०) धर्म का समर्थक धर्म धारक। 'धर्मस्य च
संधर्ता धारकोऽभूत्। (जयो० २३/४४)
धर्मसंहिता (स्त्री०) धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र। धर्मसत्व (वि०) धर्मरहस्य। धर्मसभा (वि०) समवसरण, दिव्योपदेश स्थान, शास्त्रसभा,
आगमनिष्ठ सभा, सर्वज्ञवचन को प्रतिपादिन करने वाली
सभा। धर्मसहाय (वि०) धर्म में सहायक। धर्मज्ञात् (वि०) धर्म युक्त। (जयो० २/७३) धर्मसाधक (वि०) धर्मध्यान की साधना करने वाला। धर्मस्तु (वि०) धर्म हो। (सु० ४/६) धर्मस्थानं (नपुं०) धर्मशाला। (जयो० २५/३९) धर्मस्थिति (स्त्री०) धर्म की विशेषता, नीति की स्थिति।
समाप्य चैवं व्यवहाररूपधर्मस्थितिं सम्प्रति योगिभूपः।
(भक्ति० २९) धर्माख्यः (पुं०) धर्म सम्बन्धी, धर्म नाम वाली। धर्माङ्कः (पुं०) सारस। धर्मागमः (पुं०) आगम ग्रंथ, धर्मशास्त्र, सिद्धान्त शास्त्र। धर्माचार्यः (पुं०) धर्म शिक्षक, सच्चे गुरु। धर्माचरणं (नपुं०) [धर्मस्य आचरणं करोति] धर्म के आचरण
में तत्पर। (जयो०वृ० १/४०) धर्मात्मजः (पुं०) युधिष्ठिर। धर्मात्मन् (वि०) धर्मात्मा, धर्म प्रधान आत्मा वाला। धर्मस्य
संग्राहक एष यस्माद् धर्मात्मना नास्तु विना स तस्मात्।
(सम्य० ९६) धर्मात्मता (वि०) धर्मात्मापन, धर्म का धारक। धर्मात्मतां विज्ञ
उपैति बाह्ययत्यागातिगोऽपि क्षमतां विगाह। (सम्य०७०) धर्माधिकरणं (नपुं०) विधिप्रशासन, न्यायालय। धर्माधिकरणिन् (पुं०) न्यायधीश, दण्डनायक। धर्माधिकर्तृत्व (पुं०) धर्माधिकारी। धर्माधिकर्तृत्वममी दधाना
बाह्य क्रियाकाण्डमिताः स्वमानात् (वीरो० १८/४९) धर्माधिकारः (पुं०) न्याय-प्रशासन, न्याय संरक्षणाधिकार। धर्माधिकारी (पुं०) न्याय-प्रशासन, दण्डनायक, न्यायधीश। धर्माधिभुवः (पुं०) धर्म प्रचार। पुरुदितं नाम पुनः प्रसाद्यामुष्मिस्तु
धर्माधिभुवोऽजिताद्याः। (वीरो० ४५) धर्माधिष्ठान (नपुं०) न्यायालय। धर्माध्यक्षः (पुं०) न्यायाधीश। धर्मानुप्रेक्षा (स्त्री०) जिनोपदिष्ट धर्म का अनुचिंतन।
० एक भावना, जिसमें धर्म का अनुप्रेक्षण किया जाता है। धर्मानुरागः (पुं०) धर्मप्रेमी, धर्मवत्सल। एतद्-धर्मानुरागेण
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