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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म तीर्थंकरः ५१२ धर्मलक्षणं धर्म तीर्थंकरः (पुं०) धर्मनाथ तीर्थंकर, जैनधर्म के पंद्रहवें तीर्थकर का नाम। धर्मत्याग (पुं०) धर्मच्युत, धर्ममार्ग से विमुख। धर्मदेवः (पुं०) निर्ग्रन्थ साधु। धर्मद्रव्यं (नपुं०) जीव और पुद्गल को गमन करने में सहकारी। (वीरो० १९/३९) ० धर्मास्किाय-गमनशील जीव और पुद्गल को मछली की तरह जल गमन करने में सहायक हो। (सम्य० १९) 'धर्मोऽत्रकर्म प्रकारोऽथवा तु' (समु० ८/३) धर्मद्रव्य पुनः क्रिया शुरू करने वाला है। धर्मद्रोहः (पुं०) धर्म के प्रति ईर्ष्या, धर्मग्लानि। धर्मदोहिन् (वि०) धर्म के प्रति ईर्घ्य करने वाला। धर्मधर (वि०) धर्म के धारक, सदाचरण को धारण करने वाले। 'धर्मः सदाचारः चापश्च सद्धारकेण साधुना' (जयो०वृ० १/९८) धर्मधुरी (स्त्री०) धर्माधार। (वीरो० १६/१८) धर्मध्वजः (पुं०) छद्मवेशी। धर्मध्वजिन् (पुं०) पाखण्डी, धर्म के नाम पर छल करने __ वाला, छद्मवेशी। धर्मध्यानं (नपुं०) दश प्रकार के धर्म का अनुचिंतन। आज्ञा, अपाय, विपाक और विवेक में संस्थित। ० मोह क्षोभ से विवर्जित ज्ञान, दर्शन और चारित्र का ध्यान। ० वस्तु स्वरूप का यथार्थ अनुचिन्तन। • आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल इन चार ध्यानों में धर्म | ध्यान, जिसमें अपने समान दूसरे के हित का चिंतन किया जाता है। अन्यस्यापिहिताय चिन्तनमथ स्वस्येव संजायते, यत्रैतत्किल धर्मनाम सुखदं ध्यानं समाख्यातेः (मनि० २२) ० औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक इन पांच भावों का अनुचिन्तन मनन धर्मध्यान है। (सम्य० ८१) ० सरागधर्म और वीतरागधर्म एवं दोनों का अनुचिन्तन मनन। (सम्य०८२) धर्मध्यान-ध्याता (वि०) धर्मध्यान की ओर संलग्न होने वाला, अशुभ लेश्या और अशुभ भावना से रहित चिन्तन करने वाला धर्मध्यान का ध्याता है। धर्मनन्दनः (पुं०) युधिष्ठिर। धर्मनाथः (पुं०) पन्द्रहवें तीर्थंकर का नाम। धर्म-निवेशः (पुं०) धार्मिक श्रद्धा। धर्म-निष्पत्तिः (स्त्री०) धर्माचरण, धर्म अनुष्ठान, धर्मनीति __का पालन, कर्तव्य पालन। धर्मपत्नी (स्त्री०) पतिव्रता पत्नी, जिसके साथ विधिपूर्वक विवाह किया गया, जो सजातीय हो, धर्मादि कार्य में सहयोगी हो। परिणीतात्मज्ञातिश्च धर्मपत्नी च सैव च। धर्मकार्ये च सध्रीचि यागादौ शुभकर्मणि।। (लाटी संहिता २/१८०) धर्मपथः (पुं०) सन्मार्ग, नीतिपथ, न्यायपरायण मार्ग। धर्मादागतो धर्म्य आगमोक्त उत्तरलोकहितंकरः 'धर्मश्च तौ पन्थानौ तयोर्युग्मम्' (जयो०वृ० ५/४७) धर्मपर (वि०) धर्मनिष्ट, धर्म में लीन। धर्मपरायण (वि०) धर्मभाव युक्त, कर्तव्यनिष्ट। धर्मप्रभावना (स्त्री०) धर्म प्रचार-प्रसार (वीरो० १५/३७) धर्म मार्ग की प्रभावना। धर्मपात्रः (पुं०) दिगम्बर साधु। (जयो० २/९४) धर्मपालः (पुं०) धर्मरक्षक, धर्म की ओर अग्रसर। धर्मपालनं (नपुं०) धर्ममार्ग का अनुसरण। (दयो० ३४) धर्मपाठकः (पुं०) धर्मज्ञान दायक शिक्षक धर्माध्यापक। धर्मपीडा (स्त्री०) धर्मापराध, अशुभप्रवृत्ति। धर्मपुत्रः (पुं०) युधिष्ठिर। धर्मप्रतिपादकशास्त्रं (नपुं०) श्रुति, आगम। (जयोवृ० ३/१५) धर्मप्ररोटः (पुं०) धर्म प्रचार। (वीरो० १५/३२) धर्मप्रवक्तु (पुं०) धर्म व्याख्याता, धर्म प्रतिपादक, धर्म प्रचारक। धर्मप्रवचनं (नपुं०) धर्म प्रधान व्याख्यान, वस्तु-तत्त्व प्रतिपादक ____ कथन, धर्मोपदेश। धर्मभावः (पुं०) धर्मभावना, धर्मानुचिन्तन। धर्ममय (वि०) धर्म युक्त, धर्म सहित, धर्मध्यान सहित। _(सम्य० ९७) धर्ममूलं (नपुं०) धर्माधार, धर्म की प्रमुखता। यथा स्वयं वाञ्छति तत्परेभ्यः कुर्याज्जनः केवलकातरेभ्यः। तदेतदेक खलु धर्ममूलं परन्तु सर्वं स्विदमुष्य तूलम्।। (वीरो० १६/६) धर्मयुगं (नपुं०) सत्युग, अच्छा समय। धर्मरति (स्त्री०) न्यायशील, न्यायप्रिय। धर्मराज (पुं०) १. जिन, अर्हत्, २. युधिष्ठिर, ३. राजा। धर्मरोधिन् (वि०) धर्म विरुद्ध, अनैतिक, अन्याय, अनाचार। धर्मलक्षणं (नपुं०) धर्म चिह्न, धर्मभाव। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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