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धरणीधवः
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धर्मः
० चक्रवर्ती-शुचिरिहास्मद् धीधरणीधर सति पुनस्त्वयि कोऽयमुपद्रवः। (जयो० ९/७३) ० कच्छप। ० पर्वत, गिरि। धरणीधरवक्त्रतः पुनस्तत् (जयो० १२/१८) ० हस्ति, हाथी।
० विष्णु। धरणीधवः (पुं०) राजा, सर्व शिरोमणि। (जयो० २५/५९) । धरणीधवलः (पुं०) पवित्र भूमि। धरणीधाम (नपुं०) भूतल, भूस्थान। धरणीधृत (पुं०) पर्वत, गिरि। धरणीपुत्रः (पुं०) पृथ्वी पुत्र मंगल। धरणीपुत्री (स्त्री०) जनक पुत्री सीता। धरणीभूषणं (नपुं०) पृथ्वी का अलंकार, भू अलंकरण। धरणीभूषणता (वि०) धरणीतल की शोभा वाला। 'धरा तु
धरणीभूषणताया नैव जात्वपि स दूषणतायाः। (सुद० ७५) धरणीभृत् (पुं०) पर्वत, गिरि। भरतेऽत्र गिरिर्महानुरु, विजया?
धरणीभृतां गुरुः। (समु० २/१) धरणीवलयः (पुं०) भू अलंकरण, पृथ्वी का कंगन। (समु०
६/४२) धरणीश्वरः (पुं०) नृप, राजा। धरणेन्द्रः (पुं०) नागेन्द्र, एक देव का नाम। (भक्ति० ३२) धरा (स्त्री०) [धृ+अच्+टाप्] पृथ्वी, भूमि, भू (जयो० १/५)
धरैव शय्या (सुद० ९/१) धरा पुरान्यैरुररीकृता वाऽसकाविदानीं भवता धृता वा। (सुद० १११) निष्कण्टकादर्शमयी धरा वा मन्दः सुगन्धः पवनः स्वभावात्। (वीरो० १२/५०) ० शिरा।
० योनिस्थल। धराङ्कं (नपुं०) धरातल, भूभाग। 'धराया मातृस्थानीयाया अङ्के
(जयो० ३/२३) धराचरः (पुं०) राजा, भूपति। धराचलः (पुं०) भूपति। (जयो० ६/१२) धराचलकुलः (पुं०) भूपति समूह। (जयो० ६/१२) 'धराचराणां
भूमिगोचराणां भूपतीनां कुलं समाजमनयन्त' धरातलं (नपुं०) भू भाग, भूतला (सुद० ८५) (वीरो० २१/७) धरात्मजः (पुं०) मंगल ग्रह। धरात्मजा (स्त्री०) सीता, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाली। धराधरः (पुं०) पर्वत, गिरि।
धराधिपः (पुं०) भूपति, राजा। धराधिपानामिति चित्रमाला।
(समु० ६/१८) धराधीशः (पुं०) अधिपतिः भूपति, नृप, राजा। साधारण
धराधीशाञ् जित्वाऽपि स जयः कुतः। (जयो०७/४९) धराधीश्वरः (पुं०) नृप, राजा। ये ये समुपायाता अत्र धराधीश्वराः
परेऽप्यनया। (जयो० ६/९८) । धरानिवासिन् (वि०) पृथ्वी पर रहने वाले, वसुधालय के
वासी। (जयोवृ० १२/७०) धरापतिः (पुं०) राजा, नृप। धरापुत्रः (पुं०) मंगल ग्रह। धराभवः (पुं०) मृत्युलोग। (जयो० १/७९) धराभितप्त (वि०) पृथ्वी संतप्त, भू तपन। धरा पृथिवीदानीम
भितप्ता किल सन्तापसमन्वितास्तीति (जयो० १५/१६) धराभुज् (पुं०) नृप, राजा, पृथ्वीपति। धरामण्डल (नपुं०) भू भाग, पृथ्वीमंडल। धरामोदः (पुं०) पृथ्वी का आनन्द। धरावंशः (पुं०) धरा नामक वंश, धरा नामक परिवार।
परमारान्वयोत्थस्य धरावंशस्य भामिनी। शृङ्गारदेवी आसीच्च जिनभक्ति सुतत्परा।।
(वीरो० १५/५२) धरावलयः (पुं०) भूमण्डल, भूभाग। (जयो० १३/५४) धरासुरः (पुं०) ब्राह्मण, विप्र। (वीरो० १४/६) धरित्री (स्त्री०) [धृ+इत्र ङीष्] भूमि, पृथ्वी। धरिमण (नपुं०) [धृ+इमनिच्] तुला, तराजू। धत्तूरः (पुं०) धतूरे का पौधा। धत्रं (नपुं०) [धृ+त्र] १. घर, गृह। २. सद्गुण। धर्मः (पुं०) [ध्रियते लोकोऽनेन, धरति लोकं वा-धृ+मन्]
नैतिक गुण, श्रेष्ठ कार्य, उत्तम कार्य, उत्तम विधि क्रिया कलाप। ० दार्शनिक अभिव्यक्ति-एक वस्तु का गुण-जो धर्म एवं धर्मी के तादाम्य से युक्त होता है। 'धर्मण वै संध्रियतेऽत्रवस्तु न वस्तुसत्त्वं तमृते समस्तु। (सम्य० ७१) ० धार्मिक संस्कार-'अङ्गीकृते धर्मिणि भातु धर्मः सूर्ये प्रकाशः स्फुरतीति मर्मः। (सम्य० ७२) ० आचार, आचरण-सदाचार (जयो०वृ० १/९८) नाप्नोति धर्म बहिरात्मतात:' (सम्य० ७०) ० कर्त्तव्या ० प्रथा, रीति, प्रचलन, अध्यादेश, अनुविधि।
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