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धनुप्रसङ्गः
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धरणीधरः
धनुप्रसङ्गः (पुं०) धनुराशि का प्रसङ्ग। (वीरो० ९/१९) धमः (पुं०) १. चन्द्र, शशि। २. यमराज। धनुष्पाणि (वि०) धनुष से सुसज्जित, हाथ वाला।
धमकः (पुं०) लुहार। धनुर्मार्गः (पुं०) वक्ररेखा, तिरछी रेखा।
धमधमा (स्त्री०) अनुकरणात्मक शब्द। धनुर्लता (स्त्री०) चापयष्टि। (जयो०८/५१)
धमन (वि०) [धम+ल्युट्] चौंकने वाला। धनुर्विद्या (स्त्री०) धनुष कला। (जयो० ६/१०६)
धमनः (पुं०) एक मनुष्य सम्बंधी कुल। धनुर्वेदः (पुं०) धनुर्विज्ञान। (जयो०वृ० ९/३९)
धमनि/धमनी (स्त्री०) [धम्+अनि, धमनि डोष] १. शरीर धनुर्वेदित (वि०) चापविद्या वाला।
की नाड़ी, शिरा। २. गला, कण्ठ, गर्दन। धनेशः (पुं०) १. कुबेर (जयो० ४/६१, वीरो० ६/१) २. कोषाध्यक्षा । धमिः (स्त्री०) [धम्+र] फूंक मारना। धनोत्सवः (पुं०) द्रविणोत्सव, धन का उत्सव। (जयो०वृ०२५/१४) धम्मल: (पुं०) अलंकृत शिरो भूषण, स्त्री के सिर का धनोद्गीतिः (स्त्री०) धनका अपहरण। दृष्टया याऽपहरेन्मनोऽपि अलंकृत भूषण। तु धनोद्गीति समायोजने। (सुद० १०२)
धम्मिल: (पुं०) कोल्लाग ग्राम का ब्राह्मण, पञ्चम गणधर के पिता। धनोपार्जनं (नपुं०) धन कमाना। (जयो० ३/१) 'स्वहस्तेन धम्मिल्लः (पुं०) धम्मिल्ल नामक मंत्री, महाकच्छ का मंत्री
धनोपार्जनादेः उत्तमपुरुष-लक्षणत्वात्। (जयो०वृ० ३/१) (समु०४/११) धन्धन् (पुं०) धन्धा, कार्य व्यापार। 'धन्धने कार्यव्यापारेऽभ्युनुरतो धम्मिल्लचर (पुं०) महाकच्छ राजा का मंत्री। (समु० ४/३७) विलग्नोऽपि।' (जयो०७० २५/७०)
धय (वि०) [धे+श] पीने वाला, चूसने वाला। धन्नः (पुं०) धन्नासेठ। (जयो० २८)
धर (वि०) [धृ+अच्] धारण करने वाला, ग्रहण करने वाला, धन्य (वि०) [धन्य त्] धन प्रदान करने वाला, धनी, अक्षधर, गदाधर, अंशुधर, महीधर आदि।
साहूकार। किं निर्धनं किं पुनरत्र धन्यम् (सुद० ११९) सेठ धरः (पुं०) गिरि, पर्वत, पहाड़। मालदार। महाभाग, ऐश्वर्यशाली।
धरण (वि०) [धृ+ल्युट्] रखने वाला, संभालने वाला। धन्यः (पुं०) भाग्यशाली, श्लाघ्य, प्रशंसनीय। धन्याः परिग्रहाद्यूयं धरणः (पुं०) १. गिरि, २. सूर्य, ३. वक्षस्थल, ४. चावल।
विरक्ताः परितो ग्रहात्। (जयो० १/१०७) वैद्यो भवेद्भक्तिरुधेव धरणं (नपुं०) सहारा देना, संभालना। धन्यः। (वीरो० १६/१६) मृगादयो वा सहचारिणस्तु धन्यः धरणि/धरणी (स्त्री०) [धृ+अनि, धरणी+ङीष्] १. पृथ्वी, भू, स एवात्म-सुखैकवस्तु। (सुद० ११७)
धरा, भूमि। आराम-धाम-धनतो धरणीं समस्तान्। (सुद० ० पुण्यात्मन् आत्म-गुण-सम्पन्न। (जयो० ५/१३)
१/३६) २. छत, ३. नाड़ी, शिरा, ३. मिट्टी। ४. बुद्धि। धन्यमन्य (वि०) सौभाग्यशाली मानने वाला।
धारयति तथा निर्णीतमर्थ या बुद्धिर्धरयति। धन्यवादः (पुं०) साधुवाद, प्रशंसा, स्तुति।
धरणीकीलकः (पुं०) गिरि, पर्वत, पहाड़। धन्याकं (नपुं०) [धन्य+आकन] धनिया, धनिये का पौधा। धरणीकम्पः (वि०) पृथ्वी का कम्पन्न। धन्वं (नपुं०) [धन्+वत्] धनुष।
धरणिखण्डं (नपुं०) भू भाग। धन्वन (पुं०/नपुं०) [धन्व+कनिन] मरुधरा. मरुभमि, परत धरणीगुहा (स्त्री०) भू कंदरा, खोह। भूमि, उपजविहीन भूभाग।
धरणीजा (स्त्री०) जनक पुत्री, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाली। धन्वन्तरं (नपुं०) चार हाथ के बराबर दूरी का माप। धरणीतलं (नपुं०) भू भाग, भूतल, पृथ्वी का अंश। (दयो० धन्वन्तरि (पुं०) [धनुः चिकित्साशास्त्रं तस्यान्तमुच्छति- ६१, जयो० ४/६३) भैरवश्यमपि यत्र नभस्तु भैरवस्य
धनु-अन्त+ऋ-इ] चरकविशेषज्ञ वैद्य, भिषग, धरणीतलमस्तु। (जयो० ४/६३)
चिकित्साशास्त्र जानकार, सुश्रुतसंहिता। (जयो० ३/१६) धरणीतिलकः (पुं०) विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण दिशा का धन्विन् (वि०) धनुष से सुसज्जित।
एक नगर। पत्तनस्य धरणीतिलकस्यादित्यवेगनरपो विजयाद्ध। धन्विनः (पुं०) [धन्वाइनन्] सूकर।
(समु० ५/१७) धम (वि०) [धम्+अच्] धौंकने वाला, पिघलाने वाला, धरणीधरः (पुं०) नृप, राजा। 'सोमदत्तः धरणीधरणाविन्दयुगलं गलाने वाला।
प्रणनाम।' (दयो० १०८)
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