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धनतृष्णा
५०८
धनुर्धारी
धनतृष्णा (स्त्री०) धन की इच्छा (सुद० ७४) लालची, | धनविलासः (पुं०) धन का विलासी। 'धनस्य विलासस्तस्मिन् लोलुपी।
तत्पदाः' (जयो० २/२०) धनदः (पु०) १. दानी, उदार। २. कुबेर (समु० २/१०) धनव्ययः (पुं०) अपव्यय, खर्च।
अलकानगरी गरीयसीहगिरावुत्तरोनहीदृशी। धनदस्य पुरी धनसारशाली (वि०) धन युक्त। (जयो० १३/३४)
परीक्ष्यते प्रतिभूषेन समस्तु साक्षितेः। (समु० २/१०) धनस्थानं (नपुं०) कोषागार, धनागार, खजाना। धनदेवः (पुं०) मण्डिक गणधर के पिताश्री। मौर्यस्थले धनहरः (पुं०) १. उत्तराधिकारी। २. चोर, धन हरण करने
मण्डिकसंज्ञयाऽन्यः बभूव षष्ठो गणभृत्सुमान्यः पिताऽस्य वाला। नाम्ना धनदेव आसीत्ख्याता च माता विजया शुभाशी:।। धनहीनजनः (पुं०) निर्धन व्यक्ति। निधिघटीं धनहीनजनो (वीरो० १४१)
यथाऽधिपतिरेष विशां स्वहशा तथा। (सुद० २/४९) धनदण्डः (पुं०) अर्थदण्ड, संपत्ति का दण्ड, जुर्माना। धनश्री (स्त्री०) एक स्त्री का नाम। धनदायिन् (पुं०) अग्नि, आग।
धनि (वि०) धनवान्, धनसम्पन्न। (जयो० २/२८) धनधान्य-प्रमाणातिक्रमः (पुं०) परिग्रह परिमाणव्रत का दोष धनिकः (पुं०) [धनमादेयत्वेनास्ति अस्य] साहूकार, महाजन।
जिसमें धन-रुपया-पैसा एवं धान्यब्रीहि, जो मसूर आदि (जयो० २/२८) का नियमित प्रमाण का अतिक्रमण।
धनिन् (वि०) स्वामी, धनी। (दयो० १७) धन-धान्य-संख्यातिक्रमः (पुं०) धन-धान्य की संख्या का धनिष्ठ (वि०) [धन+इष्ठन्] अत्यन्त वैभवसम्पन्न, धनी।
अतिक्रमण। 'धनं गणिम-धरिम-मेय-परीक्ष्यलक्षणम्। धनुराकारः (पुं०) चापसन्निभ। (जयो०वृ०८/५३) धान्य-ब्रीहिर्यवो मसूरो गोधूम-मुद्ग-माष-तिल-चणकाः' धनुषकाण्डं (नपुं०० चाप, कम्र। (जयो० ६/१०४) कम्रः (जैन०ल०पृ० ५६८) 'धनं च धान्यं च धनधान्यम् तया शोभनश्चाप इव धुनष्काण्ड इव विभाति (जयोवृ०
अतिक्रमं उल्लंघनं संख्यातिक्रमोऽतिचारः। (जैन०ल० ५६८) ६/१०४) धनपतिः (पुं०) कुबेर।
धनुष्काण्डार्थ (वि०) चापार्थ। (जयो० ५/८४) धनपालः (पुं०) कोषाध्यक्षा
धनी (पुं०) सेठ, साहूकार (सुद० २/८, ३/१६) धनपिशाचिका (वि०) धन का लोभ, धन का लालची, धनी धनबलेनैव कुर्याद् यद्यदपीच्छति। धनलिप्सी, धनलोलुपी।
धनस्यान्तः स्वयं तिष्ठेद्दयनायत्तं यतो जगत्।। (दयो० ४८) धनप्रयोगः (पुं०) सूदखोरी, रिश्वतखोरी।
स्त्री, तरुणी, युवती। धनबल: (पुं०) सम्पत्ति की शक्ति। (दयो० ४८)
धनुः (पुं०) [धन्+उ] धनुष, चाप, कम्र। धनमति (पुं०) एक वणिक।
धनुष्कर (वि०) धनुष से सुसज्जित। धनमद (वि०) वैभव पर इठलाने वाला, सम्पत्ति से अहंकारी। धनुर्कल (स्त्री०) धनुष विद्या। (जयो० ६/१०८) धनमित्रः (पुं०) एक सेठ, नगर सेठ। (समु० ४/३८) धनुःखण्डं (नपुं०) धनुष भाग। धनमूलं (नपुं०) मूल सम्पत्ति, मूलधन, वास्तविक पूंजी। धनुर्गुण: (पुं०) धनुष की डोरी। धनवत् (वि०) [धन+मतुप्] धनी, धनवान।
धनुर्ग्रहः (पुं०) धनुर्धारी। धनवती (स्त्री०) उष्ट्रदेश के राजा यम की रानी। धनुग्रहपरायण (वि०) प्राणिमात्रोपरि उपकारक। सभी जीवों (वीरो० १५/२९)
का उपकार करने वाला। (जयो०वृ० १/१०५) धनवती (स्त्री०) १. इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्य की पत्नी। (वीरो० धना (स्त्री०) धनुष की डोरी। (जयो० १०/६९)
१५/३३) २. आर्य व्यक्त गणधर के पिताश्री, धनुर्दुमः (पुं०) बांस। कोल्लागनिवासी (वीरो० १४/४)
धनुर्धरः (पुं०) धनुर्धारी। अभूच्चतुर्थः परमार्य आर्यव्यक्तोऽस्य बप्ता धनमित्र आर्यः। धनुर्धारि (पुं०) धनुर्कला प्रवीण, धनुर्विद्या निष्णात। (जयो० कोल्लागवासी भुवि वारुणीति माता ६/१०८, जयो० २१/२४) द्विजाऽऽख्यातकुलप्रतीति। (वीरो० १४/५)
धनुर्धारी देखो ऊपर।
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