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द्वेषणं
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धनञ्जयः
धः (पुं०) १. तवर्ग का चतुर्थ वर्ण, इसका उच्चारण स्थान
दंतमूल है। २. ब्रह्मा, ३. कुबेर, ४. गुण, आचार विचार,
० अप्रीतिपरिणाम द्वेषः ० वैरपरिणाम-द्वेषः।
० आत्मीयोपघातकारिणि द्वेषः। द्वेषणं (वि०) [द्विष्+ल्युट] घृणा करने वाला, ईर्ष्या करने वाला। द्वेषधामः (पु०) अन्यायमार्ग। (वीरो० २२/३७) द्वेषिन् (वि०) [द्वेष+इनि] घृणा करने वाला। द्वेषिन् (पुं०) शत्रु। द्वेष्य (सं०कृ०) [द्विष्+ ण्यत्] १. घृणा के योग्य। २. घृणित। द्वेष्टि (वि०) दोष, शत्रुता, विरोध। (वीरो० ११/४१) तुष्यति
द्वेष्टि चाभ्यन्तो निमित्तं प्राप्य दर्पणम्। (सुद० १२५) द्वैगुणिकः (पुं०) [द्विगुण+ठक्] सूदखोर, ब्याज लेने वाला। द्वैगुण्यं (नपुं०) [द्विगुण+ष्यञ्] १. द्वित्व, द्वैतावस्था, २. दो पर
अधिकार रखने वाला। द्वैत (नपुं०) [द्विधा इतम् द्वितम् तस्य भावः स्वार्थे अण] द्वित्व
द्वैतवाद-दो तत्त्वों का विवेचन करने वाला। आत्मा-परमात्मा,
ब्रह्म-जगत्, जीव-प्रकृति आदि। द्वैतवादिन् (पुं०) द्वैतसिद्धान्त का प्रतिपादक। द्वैतिन् (पुं०) द्वैतसिद्धान्त का प्रतिपादक। द्वैतीयीक (वि०) [द्वितीय+ईकक्] दूसरा। द्वैध (वि०) [द्विधमुज्] दुगुना, दोहरा, दो प्रकार का। द्वैधं (नपुं०) दुहरी प्रकृति वाला, दो भागों में विभक्त। द्वैधीभावः (पुं०) [द्वैध+च्चि+भू+घञ्] १. द्वैतता, दो प्रकार
की अवस्था, दो खण्ड! २. द्विधाभाव, अनिश्चितता।
(जयो०वृ० २६/५९) वैध्यं (नपुं०) [द्विधा+ष्यञ्] दोनों की ओर, दोनों पक्ष वाला। द्वैप (वि०) [द्विप+अण्] टापू से सम्बंध रखने वाला। द्वैपक्षं (नपुं०) [द्विपक्ष-अण] दो दल, दो भाग। द्वैपायनः (पुं०) [द्वीपायन अण्] १. द्वीप में उत्पन्न। २.
वेदव्यास। ० द्वीपायन ऋषि। द्वैप्य (वि०) [द्विप+ष्यञ्] टापू निवासी। द्वैमातुर (वि०) [द्विमातृ+अण्] दो माताओं वाला। द्वैमातृक (वि०) [द्विमातृक+अण] दोनों क्षेत्र वाला। द्वैरथं (नपुं०) [द्विरथ+अण्] एकल युद्ध। द्वैराज्यं (नपुं०) [द्विराज्य+ष्यञ्] दो राजाओं में विभक्त, दो
राज्यों में विभक्त। द्वैवार्षिक (वि०) [द्विवर्ष+ठक्] दूसरे वर्ष होने वाला। द्वैविध्यं (नपुं०) [द्विविध+ष्यञ्] विविधता, दोगलापन, भिन्नता। |
ध (वि०) धा+ड] धारण करने वाला, रखने वाला। धं (नपुं०) धन-सम्पत्ति, वैभव। धक्क् (सक०) ध्वस्त करना, गिराना, नष्ट करना। धटः (पुं०) [ध+अट्+अच्] १. तराजू, तराजू के पलड़े २.
तुलाराशि, तुला परीक्षण। धटकः (पुं०) [धट+कैक] एक तौल विशेष। धटिका (स्त्री०) [धटी+कन्+टाप्] १. चिथड़ा, जीण-जीर्ण
वस्त्र। २. लंगोटी। धटिन् (पुं०) [धट+इनि] तुला राशि। धण् (अक०) शब्द करना, ध्वनि होना। धत्तूरः (पुं०) [धयति धातून्-धे-उरच्] धतूरे का पौधा। धन् (अक०) शब्द करना, ध्वनि निकालना। धनं (नपुं०) [धन्+अच्] द्रविण, सम्पत्ति, निधि, रूपया-पैसा।
(जयो०वृ० २५/१४) वित्त। गेहमेकमिह भुक्तिभाजनं पुत्र तत्र धनमेव साधनम्। तच्च विश्वजनसौहृदाद् गृहीति त्रिवर्ग-परिणाम-संग्रही।। (जयो० २/२१) नो चेत्परोपकराय समुप्तं गुप्तमेव तु। धनं च निधनं भूत्वाऽऽपदे सद्भिर्निवेद्यते।। (वीरो० १७/४४) ० मूल्यवान, सम्पत्ति, सोना-चांदी। ० मूल्वान्, वस्तु। आराम् धाम-धनतो धरणीं समस्ताम्। (सुद० १/३६) ० राशि। ० पुरस्कार, पारितोषिक।
० धनिष्ठा नक्षत्र। धनकेलिः (पुं०) कुबेर। धनघात (वि०) धन हानि। धनक्षय (वि०) संपत्ति विनाश। धनक्षीण (वि०) निर्धनता, धनहानि, धन की कमी। धनगत (वि०) वित्त से अहंकारी, संपत्ति से घमण्डी। धनगर्वित (वि०) वैभव में भूला हुआ, समस्त निधियों से
अहंकारी। धनज (वि०) धन कमाने वाला। धनजात (वि०) धन युक्त, सम्पत्ति वाला। धनञ्जयः (पुं०) एक जैन कोशकार, नाममाला प्रणेता।
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