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द्विशतं
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द्वेषः
द्विशतं (नपुं०) दो सौ। द्विशत्य (वि०) दो सौ वाला, दो सौ में क्रय किया गया। द्विशफ (वि०) दो खुर वाला, फटे खुर वाला, बैल आदि। द्विशीर्षः (पुं०) अग्नि। द्विष् (अक०) घृणा करना, विरोध होना। द्विष् (वि०) [द्विष्+क्विप्] विरोधी। द्विष (पुं०) शत्रु। द्विषत् (पुं०) शत्रु। द्विषतस्थलं (नपुं०) शत्रु स्थल, शत्रुदेश। द्विषतां स्थलं शत्रुदेशः
(जयो० ६/८६) द्विषदसुपवनं (नपुं०) बैरियों की प्राण वायु। 'द्विषदां रिपूणामसुपवनं
प्राणवायुं निपीय' (जयो०वृ० ६/१०६) द्विषन् (पुं०) दुष्ट, शत्रु। स्थायीतां भवत एव पद्मया योजितो
भवतु स द्विषन्मया। (जयो० ७/८१) द्विषष् (वि०) दो बार, छह (६+६=१२)। द्विषष्टि (स्त्री०) वासठ। द्विषष्ट (वि०) बासठवां। द्विषाञ्जित (वि०) शत्रु नाशक, शत्रुविजयी। सुभगा शुभगान्धिका
र्पितपिचुका संक्रमतो द्विषाञ्जितः। (जयो०२६/१९) द्विष्ट (वि०) [द्विष्+क्त] दो बार। द्विसंयोगी: (वि०) दो तरह से सम्बंध रखने वाला, दो के
संयोग वाला। (वीरो० १९/६) द्विसप्तत (वि०) बहत्तरवां। द्विसप्ततिः (स्त्री०) बहत्तर। द्विसप्ताहः (पुं०) पक्ष, पखवाडा। द्विसहस्र (वि०) दो हजार युक्त। द्विसीत्य (वि०) लम्बाई से चौड़ाई की ओर। द्विसुवर्ण (वि०) दो सुवर्ण मुद्रा में क्रय किया गया। द्विह्न (पुं०) हस्ति, हाथी। द्विहायन् (वि०) दो वर्ष की आयु का। द्विहित (वि०) दोनों पक्षों का कल्याण करने वाली। (जयो०
३/५६) द्विहृदया (वि०) गर्भवर्ती स्त्री। द्विहोत् (पुं०) अग्नि। द्वीन्द्रियः (पुं०) दो इन्द्रिय जीव। लट, शंख, केंचुआ आदि
स्पर्शन और रसना युक्त जीव। (वीरो० १९/३५) द्वीन्द्रियजाति (स्त्री०) दो इन्द्रिय में उत्पन्न। द्वीन्द्रियजीवः (पुं०) स्पर्श और रस को जानने वाला जीव।
द्वीन्द्रियनामकर्मोदयाद् द्वीन्द्रिया:।
द्वीपः (पुं०) [द्विर्गता द्वयोर्दिशार्वा गता आपो यत्र-द्वि+अप]
टापू, (जयो० ११/३५) 'द्वीपोऽथ जम्बूपपदः समस्ति' (वीरो० २/१) अन्तर्वीप, शरणस्थल, आश्रयभूतस्थान।
भूलोक का एक हिस्सा। (सुद० १/११) द्वीपकुमारः (पुं०) द्वीपों में क्रीड़ा करने वाला कुमार, जो वर्ण
से श्याम और सिंह के चिह्न से युक्त होते हैं। द्वीपधरणी (स्त्री०) द्वीप स्थान। द्वीपपथं (नपुं०) टापू मार्ग। द्वीपवत् (वि०) [द्वीप्+मतुप्] टापुओं से युक्त। द्वीपवत् (पुं०) समुद्र। द्वीपसागर-प्रज्ञप्ति (पुं०) द्वीप-समुद्र की प्रामाणिकता का
ग्रन्थ, जिसमें बावन लाख छत्तीस हजार पदों द्वारा द्वीप-समुद्रों के प्रमाण का प्ररूपण किया गया हो। 'दीप-सायर-पण्णत्ती वावण्ण-लक्खण-सत्तीस-पद-सहस्सेहि बहुभेयं वण्णेदि।
(धव० १/११०) द्वीपस्थानं (नपुं०) द्वीप स्थल। द्वीपान्तरं (नपुं०) अन्य द्वीप। 'द्वीपान्तराणामुपरिप्रतिष्ठः' (वीरो० २४१) द्वीपायनः (पुं०) द्वीपायन मुनि। एक तपस्वी ऋद्धिधारी मुनि।
जो ऋद्धियों के अहंकार से नरकगामी हुआ। स्वस्या एव
समद्धितो न नरकं द्वीपायनः किं गत। (मुनि० १५) द्वीपिन् (पुं०) [द्वीप+इनि] १. सिंह, २. चीता, ३. व्याघ्र। द्वैतरूपचरणं (नपुं०) यति, धावक के आचरण योग्य शास्त्र।
चरणानुयोगश यति-श्रावकभेदेन द्वैतरूपं यच्चरणश्रुतं चरणानुयोगशास्त्रम् (जयो०१० ५/४६) २. युगल चरण
(जयो०वृ०५/४६) द्वैतवत् (पुं०) मिथुन (जयो० १६/८) द्वेधा (अव्य०) [द्वि+धा] दो भागों में, दो प्रकार से, दो रूप
में। 'शुभाशुभप्रायतया जगाद, द्वेधा जिनो यस्य वरोऽभिवादः।
(समु०८/२५) द्वेधाजनः (पुं०) दो प्रकार के आदमी। द्वेधाजनो भूवलये
विभाति, संयोग एकः खलु दुःखजातिः। (समु० १/२५) द्वेषः (पुं०) [द्विष्+घञ्] घृणा, अरुचि, दोष, क्रोधादि कषाय
भाव, जुगुप्सा, शोक, अरति, भय। (सम्य० ४१) अनिच्छा (सुद० १२५) -राग-द्वेष-मलीमसेन मनसा श्री धर्मभावाद विना।। (मुनि० १८) ० द्विष्यतेऽनेनेति द्वेषः। । द्वेषणं द्वेषः। ० अप्रीतिलक्षण द्वेषः।
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