SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वादशं ५०३ द्विचरण द्वादशं (नपुं०) बारह, दो और दश-बारह एक संख्या विशेष। द्वारवती (स्त्री०) द्वारकापुरी। (जयो०वृ० २६/५८) द्वाराग्रामभागः (पुं०) देहली। (जयो०वृ० ३/२५) द्वादश-नक्षत्रं (नपुं०) बारह नक्षत्र। (जयो० २६/५८) द्वारिका (स्त्री०) द्वारकापुरी, गुजरात के पश्चिमी किनारे पर द्वादशभागः (पुं०) बारह भाग, बारह अंग, आचारांगदि बारह स्थित कृष्ण की राजधानी। अंग। वाणी द्वादशभागेषु भक्तिमान् स विभक्तवान्। (वीरो० द्वाविंशत् (वि०) बावीस। (दयो० २८) १५/७) द्वाविंशसर्गः (पुं०) बावीसवां सर्ग। द्वादशवतं (नपुं०) बारह व्रत, श्रावक के पांच अणुव्रत, तीन द्वा:स्थ (वि०) द्वार पर स्थित। गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये बारह भेद। द्वारस्थजनः (पुं०) द्वार पर स्थित मनुष्य। (सुद० १०४, ९२) द्वादश-भावना (स्त्री०) बारह भावना, बारह अनुप्रेक्षा। द्वासप्ततिः (स्त्री०) बहत्तर। (जयो० १/१३) द्वादश-शताब्दी (स्त्री०) बारहवीं शताब्दी। (वीरो० १५/४७) द्वाः स्थनिरन्तराय (वि०) द्वार पर बिना रुकावट। 'अन्तःपुरं द्वादशसद्वतं (नपुं०) बारह उत्तम व्रत। प्रद्युम्नवृत्ते गदितं द्वा:स्थनिरन्तरायि' (सुद०८/१) भविन्नः शुनी च चाण्डाल उवाह किन्न। अण्वादिक-द्वादश- द्वास्थितः (पुं०) द्वारपाल, पहरेदार। द्वास्थितो रविकरानवदात सव्रतानि उपासकोतानि शुभानि तानि।। (वीरो० १७/३२) उत्पलेषु सरसीव विभातः। (जयो०५/२२) द्वादशसर्गः (पुं०) बारह सर्ग। द्वि (संख्यावाची विशेष) (वीरो० ११/४८) दो, दोनों। द्विद्वादशात्मकत्व (वि०) बारह प्रकार के रूप का धारक। स न त्राणामशनं च गेहिसदने' (मुनि० २८) दृश्यः सन्तापकृद् भो द्वादशात्कमत्वेन। (सुद० ८७) द्विऋचं (नपुं०) ऋचाओं का संग्रह। द्वादशाङ्गं (नपुं०) द्वादशाङ्ग सूत्र। (जयो० वृ० १/२) द्विकः (पुं०) काक, कौवा। द्वादशानुप्रेक्षा (स्त्री०) बारह भावना। भावनानामनित्या- द्विक् (सं०वि०) दो। (वीरो० ४/४५) शरणेत्यादिद्वादशानुप्रेक्षाणां जिनागमोक्तनामाद्ये पदे द्विअथ (वि०) दो आंख वाला। तावदनित्यवचनेऽर्थवति' (जयो०वृ० १८४८) द्विअक्षर (वि०) द्वयक्षरी, दो अक्षरों से सम्बद्ध। द्वापरः (पुं०) द्वापरकाल, चतुर्थकाल। एवं पुरुर्मानव-धर्ममाह | द्विअङ्गल (वि०) दो अंगुल लम्बा। यत्रापि तैः संकलितोऽवगाहः। तेतिरूपेण विनिर्जगाम द्वि-अणुकं (नपुं०) दो अणुओं का समूह। कालः पुनर्वापर आजगाम।। (वीरो० १८/४३) द्विअर्थ (वि०) दो अर्थ रखने वाला। ० संख्या प्रमाण-जिस राशि में चार का भाग देने पर दो | द्वि-अशीत (वि०) बयासीवां। शेष रहे। चतुर्विभक्ते द्विशेषो द्वापरसंज्ञः। द्विअशीतिः (स्त्री०) बयासी। द्वापरयुग्म (पुं०) एक संख्या का प्रमाण १४भाग४३, शेष २) द्वि-अष्टम् (नपुं०) तांबा। द्वार (स्त्री०) [हणिच्। विच्] १. द्वार, दरवाजा, फाटक। ० द्वि-आत्मक (वि०) दो प्रकार के स्वभाव वाला। प्रवेश भाग (जयो०वृ० १/६) उपतिष्ठामि द्वारि पश्य। द्वि-आमुष्यायणः (पुं०) उत्तराधिकारी। राज्ञीहाऽहं द्वारि खलु। (सुद० ३४) द्वि-ककुदः (पुं०) ऊँट, ऊष्ट्रा ० उपाय। द्विगु (वि०) दो गौओं से विनिमय किया हुआ। द्वारद्वारं (अव्य०) प्रतिद्वार। (जयो० १०) द्विगुः (पुं०) संख्यावाची समास। तत्पुरुष समास का एक भेद। द्वारपालः (०) दरबान, ड्योढीवान्। संख्या पूर्वकस्तत्पुरुषो द्विगुसमासः। संख्या के साथ जो द्वारपट्टः (पुं०) द्वार का पर्दा। तत्पुरुष समास होता है, वह द्विगुसमास है। 'त्रिरत्नम्' द्वारपिंडी (स्त्री०) द्वार देहली। पञ्चमहाव्रत। द्वारविधानः (पुं०) दरवाजे की कुण्डी, दरवाजे की सांकल। द्विगुण (वि०) दुगुना। द्वारबलिभुज् (पुं०) काक, कौवा। द्विगुणत्व (वि०) दुगुना। (सुद० १२६) द्वार-बाहु (पुं०) द्वार पाख। दिगुणीकृत् (वि०) दो गुनी परिवृद्धि। द्वारयन्त्रं (नपुं०) सांकल, कुंडी। द्विचरण (वि०) दो पैरों वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy