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द्रव्योपक्रमः
द्रव्योपक्रमः (पुं०) द्रव्य का उपक्रम, विवक्षानुसार कारकों की योजना |
द्रष्ट (वि०) दर्शक, देखने वाला।
द्रष्टव्य (सं० कृ०वि०) १. देखने योग्य, २. अनुसन्धान करने योग्य, परीक्षण योग्य। ३. दर्शनीय, ४. सौन्दर्य युक्त । दह: (पुं०) गहरी झील । द्रह इव दधान सततं क्लमनाशको भविनाम् । (वीरो० ४/५०)
दा (अक० ) १. सोना, २. दौड़ना, ३. शीघ्रता करना, उड़ना
भागना ।
द्राक् (अव्य०) [द्रा+कु] शीघ्रता से, जल्दी से, तत्काल, उसी समय (जयो० ५/५१, वीरो० ४/११) २. दृष्टि (जयो० ५/२८)
द्राक्षा (स्त्री० ) [ द्राक्ष्+अ+टाप्] दाख, गोस्तनी, दाख, अंगूर । (जयो० ६/४६) द्रोक्षव मृद्वी रसने हृदोऽपि प्रसादिनी नोऽस्तु मनाक् श्रमोऽपि । ( वीरो ० १ / १ ) दाक्षारस: (पुं०) अंगूर का रस, द्राक्षा का आसव, एक पेय पदार्थ
दाघयति - लम्बा करना, फैलाना, बढ़ाना, विस्तार करना । दाघिमन् (पुं० ) [ दीर्घ इमनिच् ] लम्बाई |
द्राघिष्ठ: ( वि० ) [ अतिशयेन दीर्घः, दीर्घ इष्ठन् ] अधिक लम्बाई वाला।
द्राघीयस् (वि० ) [ दीर्घ + ईयसुन्] बहुत लम्बा | दाण (वि० ) [द्रा+क्त] उड़ा हुआ, भागा हुआ। द्वाप: (पुं०) [द्रा + णिच् + अच] १. कीचड़, दलदल, २. स्वर्ग, आकाश, ३. मूर्ख, जड़ ।
दामिल: (पुं०) चाणक्य ।
द्वाव: (पुं० ) [ द्रु+घञ्] १. भगदड़, प्रत्यावर्तन चाल, गमन। २. सरलता युक्त, ३. पिघलना, बहना।
द्रावक : (पुं० ) [ द्रु+ण्वुल्] १. पिघलने वाला पदार्थ । २. अयस्कान्तमणि, चुम्बक । ३. चन्द्रकान्त मणि ।
द्रावणं (नपुं०) [द्रु+णिच् + ल्युट् ] १. गलना, पिघलना, भागना। २. अर्क निकालना।
द्रावयति पिघला देना । वह्निघृतं द्रावयतीत्यनेन । घृतं पुनः संद्रवतीश्रितेन । (सम्य० पृ० ७)
द्राविड (पुं० ) [ द्रविण+अण्] द्रविड देश, दक्षिण प्रान्त, द्राविण, कर्णाट, गुर्जर, महाराष्ट्र और तैलंग ये पांच द्राविण क्षेत्र हैं।
द्राविडिक (वि०) द्रविड देश का निवासी ।
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दुममाला
प्रत्यावर्तन करना। २.
दु (वि०) १. दौड़ना, बहना, भाग जाना, धावा बोलना, हमला करना आक्रमण करना। ३. तरल होना, घुलना, पिघलना, रिसना । ४. जाना, हिलना, अनुसरण करना।
दु (पुं० / नपुं० [द्रु+डु] १. वृक्ष, तरु, पादप । (जयो० १/८० ) भूयात्सुतो मेरुरिवातिधीरः सुरद्रुवत्सम्प्रति दानवीरः । (सुद० २ / ३९) २. लकड़ी, ३. शाखा ।
दुधण: (पुं०) गदा, थापी, बढ़ई की हथौड़ी। दुघ्नी (स्त्री०) कुल्हाड़ी।
द्रुण: [ द्रुण+न] १. बिच्छू, २. तलवार । दुणं (नपुं०) १. धनुष, २. तलवार । दुणा (स्त्री०) धनुष की डोरी ।
दुणि: (स्त्री० ) [ द्रुण+इन्] १. कछुवी, २. ढोल, ३. कनखजूर । द्रुत (भू०क० कृ० ) [द्रु+क्त] १. शीघ्रगामी, फुर्तीला, बहा हुआ, भागा हुआ। २. दूर किया, अलग किया। लोकाचारपराङ्गमुखानुगुणिभिः संभाषणे हीÍता। (मुनि १/२) ३. शीघ्रता से । 'तमितिद्रुतमेवाऽऽनेष्यामि' (सु० ९२ ) ४. सादर । इदं स्विदङ्के द्रुतभ्युदेति यदादरी तच्छिशुको मुदेति । (सुद०१/५)
५. दौड़े हुए। राज्या इदं पूत्करणं निशम्य भटैरिहाऽऽगत्य धृतो द्रुतं या (सुद० १०५)
६. प्राप्त हुआ। स्तुतवानुतनिर्निमेषतां द्रुतमेवायुतनेत्रिणा धृताम्। (सुद० वृ० ३/९)
दुतंगमा (वि०) शीघ्रगामी। (जयो० २१ / १० ) द्रुतमेव ( अव्य०) शीघ्रता से ही । (दयो० ८१) (जयो०
१/२६) 'ध्रियते द्रुतमेव पाणिसत्तलयुग्मे' (सुद० ३/२४) दुता (वि०) द्रविता, द्रवित हुई, पसीजी हुई। किं चन्द्रकान्ता न कलावता द्रुता । (सुद० ३/४१ )
द्रुति: (स्त्री० ) [द्रु+ क्तिन्] घुलना, रिसना, पिघलना, पसीजना,
भागना ।
दुपदः (पुं०) पांचाल देश का अधिपति । द्रुपदभूपतिः (पुं०) पांचाल देश का राजा, बाला द्रुपदभूपतेर्यापि, गदिता पञ्चभर्तृका सापि । (सुद० ८८ )
दुमः (पुं०) पादप, वृक्ष, तरु ।
दुमनति: (स्त्री०) तरु पंक्ति ।
दुमनख: (पुं०) कांटा।
दुममाला ( स्त्री०) वृक्ष पंक्ति । द्रुमाणां वृक्षाणां माला पङक्तिः (जयो० १३ / ५२ )
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