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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दव्यशस्त्रं ५०० द्रव्योद्योतः दव्यशस्त्रं (नपुं०) कुठार आदि शस्त्र। ० द्रव्य की सामान्य अनुवृत्ति। 'द्रव्यं सामान्यमुत्सर्गः द्रव्यशुद्धिः (नपुं०) वस्त्रादि की स्वच्छता। अनुवृत्तिरित्यर्थः तद्विषयो द्रव्यार्थिकः (स०सि० १/३३) दव्यश्रुतं (नपुं०) अक्षरों की प्राप्ति, उच्चारण का आश्रय। • जो सामान्य की सिद्धि करता है-अनुप्रवृत्ति सामान्य दव्यसमवायः (पुं०) द्रव्यों का समान समुदाय। द्रव्यं चैकार्थवाचका नयस्तद्विषयो य स्याज्ज्ञेयो द्रव्यार्थिको दव्यसमाधिः (स्त्री०) स्वस्थान में समत्व। हि सः।। द्रवति द्रोष्यति अदुद्रुवदिति वा द्रव्यम् तदेवार्थों दव्यसंकोचः (पुं०) हाथ, पैरादि का संकुचन। यस्य द्रव्यार्थिकः। दव्यसंयोगः (पुं०) दो से अधिक द्रव्यों का संयोग। ० द्रव्याश्रय अभेद रूप होता है। द्रव्यसंवरः (पुं०) संसार के कारण भूत कर्मपुद्गलों के ग्रहण |दव्यार्थिकनिक्षेपः (पुं०) भूत, भावी पर्यायों में अनुपचारित। का अभाव। द्रव्य के सादृश होना। द्रव्यसाधु (पुं०) भाव से रहित-वेषधारी साध। दव्यार्थिकनैगमः (पुं०) संग्रह एवं व्यवहार का ग्रहण करना। दव्यसामायिकं (नपुं०) द्रव्य के विषय में राग-द्वेष नहीं करना। द्रव्यावग्रहः (पुं०) तत् तत् द्रव्य का अवग्रहण, देवेन्द्र, राजा, दव्यसूत्रं (नपुं०) गणधर प्रणीत शब्द रचना, विसंवाद रहित गृहपति, सागरिक और साधार्मिक इन पांच अवग्रहों में जो चेतन है उसका ग्रहण। सचित्त द्रव्य का ग्रहण। शब्दरचना। दव्यस्तवं (नपुं०) चौबीस तीर्थंकरों का कीर्तन, अभिप्राय दव्यावश्यकः (पुं०) द्रव्य स्वरूप का अनुभव करना। दव्यास्तिकः (पुं०) अविवक्षित से प्रतिपादन, ध्रुवत्व का युक्त गुणगान। ० गुणानुवाद, संकीर्तन। प्रतिपादन। द्रव्यस्थानं (नपुं०) आकाश द्रव्य का स्थान। दव्यास्रवः (पुं०) आत्म समवाय से रागादि परिणाम प्राप्त दव्यस्नानं (नपुं०) जल से स्नान। होना। ज्ञानावरणादि योग्य पुद्गलों का आगमन। द्रव्यस्पर्शः (पुं०) द्रव्यों का संयोग, समवाय रूप से एकत्व। णाणावरणादीणं जोग्गं जं पोग्गलं समासदि। दव्वासवो स दव्याग्निः (स्त्री०) १. काष्ठिक अग्नि, २. पारिणामिक भाव णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो।। (द्रव्य सं०३१) से युक्त अग्नि। दव्येन्द्रियं (नपुं०) निवृति और उपकरण। 'निर्वृत्युपकरणे दव्यानुयोगः (पुं०) आत्म-कल्याणकारी शस्त्र। (जयो०वृ० द्रव्येन्द्रियम्' (त०सू० २/१७) निर्वृति नाम रचना, वह दो १/८७, १/६) तत्त्वार्थ वर्णन का योग (जयोवृ० १९/२८) प्रकार की होती है, एक भीतरी और दूसरी बाहरी। उसमें उत्सङ्गमध्यप्रहिसैक पाणिस्तत्त्वार्थ साथानुभवे च वाणी। आत्मा के प्रदेशों का इन्द्रिय के आकार परिणमन होना ध्यानैकतानं मनसो विधानं कर्तुं सदैवादिशतीव सा नः।। अभ्यन्तर निर्वृति है और नोकर्म परमाणुओं का इन्द्रिय आकार (जयो० १९/२८) रूप होना बाह्य निर्वृति है। (त०सू० १/१७, पृ० ३७) ० द्रव्य में द्रव्य का अनुयोग। दव्वस्स जोऽणुओगो दव्वे ० द्रव्य पुद्गल पर्याय रूप इन्द्रिय। दव्वेण दव्वहेदु वा। दव्वस्स पज्जवेण व जोगो दव्वेण वा ० पुद्गलस्कन्ध और आत्म प्रदेश का आधार। जोगो। ० द्रव्येन्द्रियं पुद्गलात्मकम्। (समु० १/५) • जीवादि तत्त्वों का यथार्थ व्याख्यानप्राभृत तत्त्वार्थ • द्रव्यं पुद्गलपर्यायः, तद्रूपमिन्द्रियं द्रव्येन्द्रियम्। सिद्धान्तादौ यत्र शुद्धाशुद्ध जीवादिषड्द्रव्यादीनां मुख्यवृत्त्या द्रव्योत्थानं (नपुं०) द्रव्य का उत्थान, शरीर को स्थिर रखना, व्याख्यानं क्रियते स द्रव्यानुयोगो भत्यते। (बृ०द्र०सं०टी० कायोत्सर्ग के समय शरीर को स्थिर रखना। शरीर का ४२) अविचल अवस्थान। दव्याभिग्रहः (पुं०) द्रव्य का विशेष नियम, द्रव्य/पदार्थ का दव्योत्सर्गः (पुं०) द्रव्य विषय का परित्याग, द्रव्यभूत विषय से रहित होना। दव्यार्जनं (नपुं०) धन प्राप्ति, धन का संग्रहण। द्रव्योत्सृतः (पुं०) ध्यान रहित होना। दव्यार्थिकनयः (पुं०) नयों के दो भेदों से एक भेद दव्योद्गमः (पुं०) द्रव्य/वस्तु विषयक उद्गम। ० जिसका प्रयोजन द्रव्य है। द्रव्यमर्थं प्रयोजनमस्येत्यसौ दव्योद्योतः (पुं०) द्रव्य प्रकाश, द्रव्य के परिमित क्षेत्र में द्रव्यार्थिक:। (स०सि०१/६) रहना। ग्रहण। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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