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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यगत द्रव्यशल्यं दव्यगत (वि०) द्रव्य को प्राप्त हुआ। दव्यपुरुषः (पुं०) पुंवेद के उदय से शरीर में चिह्न विशेष द्रव्यचारित्रं (नपुं०) भव्य और अभव्य के उपयोग से रहित श्मश्रु, कूर्च आदि। चारित्र। दव्यपूजा (स्त्री०) द्रव्य दीप धूपादि से पूजा। दव्यच्छेदना (स्त्री०) द्रव्य का छेदना, द्रव्य-धान्यादि का द्रव्यपूति (स्त्री०) अपवित्र गन्ध युक्त होना। प्रमाण करना। दव्यप्रतिक्रमणं (नपुं०) पापयुक्त बसतियों का छोड़ना, दोष द्रव्यजिनः (पुं०) शरीर का आधार लेकर जिन कहना। युक्त स्थान का परित्याग करना। दव्यजीवः (०) मनुष्यादि के रूप की ओर अभिमुख को द्रव्यप्रतिसेवना (स्त्री०) विवक्षित वस्तु की प्रतिसेवन की योग्यता। जीव मानना। द्रव्यप्रख्याख्यानं (नपुं०) द्रव्य विषयक प्रत्याख्यान, सचित्त, दव्यज्ञानं (नपुं०) ज्ञान की उपयोग रहित अवस्था। अचित्त, सचित्त-अचित्त द्रव्य का प्रत्याख्यान। दव्यतीर्थः (पुं०) तीर्थंकरों के जन्मस्थान, दीक्षा स्थान, ज्ञान द्रव्यप्राणः (पुं०) इन्द्रिय, बलादि प्राण। 'पौद्गालिकद्रव्येन्द्रियादि स्थान या निर्वाण स्थान को द्रव्यतीर्थ कहा जाता है। व्यापार रूपाः द्रव्यप्राणाः' (गो० जी० टी० १२९) दव्यदिक् (वि०) दश दिशाओं का विभाग करना। द्रव्यबन्धः (पुं०) सांकल आदि का बन्धन। द्रव्यबन्धो निगडादिः। दव्यधर्मः (पुं०) द्रव्य का निज स्वरूप। वस्तु की ओर अनुरक्त होना। दव्यनमस्कारः (पुं०) हाथ जोड़ना, अंजली बांधना। नमस्तस्मै द्रव्यमनः (पुं०) पुद्गल विपाक का रूप ग्रहण, मन रूप इत्यादि शब्दोच्चारणं उत्तमांगावनतिः कृतांजलिता च परिणमन। द्रव्यनमस्कारः। (भ०आ०टी० ७२२) द्रव्यमनोयोगः (पुं०) द्रव्य मन रूप परिणमन। द्रव्यनामः (पुं०) द्रव्यानुयोग शास्त्र। (जयो०२/४९) किं किमस्ति द्रव्यमलं (नपुं०) बाह्य मल मूत्रादि मल सम्बद्धता। जगति प्रसिद्धिमत्कस्य सम्पदथ कीदृशी विपद। द्रव्यनाम | द्रव्यमंगलं (नपुं०) साधुओं का शरीर द्रव्यमंगल। समये प्रपश्यतां नो वितर्कविषया हि वस्तुता। (जयो० २/४९) द्रव्यमोक्षः (पुं०) भव परित्याग, सांकलादि बन्धन से मुक्ति। द्रव्यनिक्षेपः (पुं०) भाव परिणाम विशेष की प्राप्ति की ओर दव्ययुतिः (स्त्री०) द्रव्य की संयुक्ति, द्रव्य का स्वामित्व। अभिमुख। द्रव्य की योग्यता का धारक। गुणैर्दुतं गतं प्राप्तं द्रव्ययोगः (पुं०) मन, वचन और काय का योग। द्रव्यम्। गुणान् वा द्रुतं गतं प्राप्तं द्रव्यम्, गुणैर्दोष्यते द्रव्यम्, द्रव्यलक्षणं (नपुं०) द्रव्य का स्वरूप निर्धारण। गुणान् द्रोष्यतीति द्रव्यम्। (जैन०ल० ५४८) द्रव्यलिङ्गं (नपुं०) १. बाह्य परिवेश, बाह्य चिह्न। २. नामकर्म द्रव्यनिबन्धनं (नपुं०) द्रव्य का बन्धन, द्रव्य का द्रव्यान्तर से के उदय से उत्पन्न होने वाले योनि या मेहन आदि/पुरुषेन्द्रिय सम्बन्ध। आदि। दव्यनिद्रा (स्त्री०) निद्रा का वेदन। दव्यलेश्या (स्त्री०) पुद्गल विपाकी वर्ण, शरीर गत वर्ण, द्रव्यनिर्जरा (स्त्री०) एक देश क्षय होना। कृष्ण, नीलु, पीतादि वर्ण। दव्यनिर्देशः (पुं०) सचित्तादि द्रव्य का कथन, द्रव्य विशेष का | द्रव्यलोकः (पुं०) जीवाजीव द्रव्यरूप सप्रदेश-अप्रदेश रूप, कथन। यह गाय है इत्यादि। कालाणु या परमाणु रूप। दव्यपक्वः (पुं०) ईंधन के संयोग से पकना। द्रव्यवर्गणा (स्त्री०) द्रव्य की वर्गणा, एक प्रदेशी से लेकर दव्यपरिवर्तनं (नपुं०) कर्म द्रव्य या नोर्मद्रव्य का परिवर्तन, अनन्तप्रदेशी तक पुद्गलों की वर्गणा। द्रव्य का यथायोग्य परिभ्रमण। द्रव्यवाक् (नपुं०) पुद्गल रूप वचन। दव्यपरीग्रहः (पुं०) धन संचय। द्रव्यविवेकः (पुं०) बहिर संग परित्याग। द्रव्यपर्यायः (पुं०) मनुष्यादि का परिवर्तन। दव्यविशेषः (पुं०) गुणों की उत्कर्षता। द्रव्यपापं (पं०) अशुभ परिणाम रूप पुद्गल का परिणमन। | व्यवेदः (पुं०) योनि, लिंगादि-पुंवेद, नपुंसकवेद और स्त्रीवेद। दव्यपुण्यं (नपुं०) शुभ परिणाम रूप पुद्गल का परिणमन। द्रव्यव्युत्सर्गः (पुं०) अन्न-पानादि का परित्याग। दव्यपुद्गलपरावर्तः (पुं०) अनुक्रम से समस्त पुद्गलों को द्रव्यशल्यं (नपुं०) कारण भूत कर्म, मिथ्यादर्शन, माया और ग्रहण करके छोड़ना। निदान रूप शल्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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