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द्योतकः
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द्रव्यक्रोधः
द्योतकः (पुं०) शाण। (वीरो० २/१४) द्योतनं (नपुं०) १. प्रकाश, कान्ति, २. प्रकटीकरण। (जयो०
१६/८) द्योतितदीपकः (पुं०) प्रदीप्त दीपक। (जयो० २/२३) द्योतिस् (नपुं०) १. प्रभा, कान्ति, आभा, कीर्ति। २. तारा,
नक्षत्र।
द्योभूमिः (स्त्री०) पक्षी। धौ (स्त्री०) द्यौ नामक स्त्री। जाता परिभ्रष्टपयोधरा द्यौः।
(वीरो० २१/३) दङक्षणं (नपुं०) [द्राक्षान्ति अनेन-द्राक्षु ल्युट] एक तोला। दढयति-दृढ़ करना, जकड़ना, कसना। दढिमन् (पुं०) [दृढ+इमनिच्] दृढ़ता, जकड़ना। द्रप्सम् (नपुं०) तरल दही, पतला दही। दम् (अक०) इधर-उधर जाना, परिभ्रमण करना, दौड़ना,
भागना। दव (वि०) [द्रु+अप्] १. परिभ्रमण करने वाला, भागने वाला।
२. तरल, बहने वाला, टपकने वाला। ३. पिघला हुआ। दवः (पुं०) १. जाना, गमन, गिरना, टपकना, रिसना। २.
तरलता, द्रवीकरण। एक तरल पदार्थ। संयमस्थान पदार्थ
(जयो० २४/७४) द्रवजः (पुं०) राव। दवद्रव्यं (नपुं०) तरल पदार्थ। दवत्व (वि०) विगलन, टपकना। (जयो० ११४८६) दवरसा (स्त्री०) लाख, गोंद। दवशील (वि०) बहने वाला, क्रियाशील युक्त। दविकः (पुं०) राग-द्वेष रहित जीव। 'द्रविका नाम
राग-द्वेष-विनिर्मुक्ता' द्रवः संयमः सप्तदशविधानः कर्म-काठिन्य-द्रवणकारित्वात्-विलयहेतुत्वात्, स येषां विद्यते।
ते द्रविकाः (जैन ल० पृ० ५४३) द्रविडः (पुं०) एक देश, दक्षिण भाग पर स्थित देश। द्रविणं (नपुं०) [द्रु+इनन्] १. धन, सम्पत्ति, वैभव, ऐश्वर्य।
(जयो० २५/१४) (वीरो० ६/३४) २. द्रव्य, ३. सामर्थ्य,
४. शक्ति वीरता, पराक्रमा दविणाधिपः (०) कोषाध्यक्षा (दयो १/१४) १. कुबेर
खजांची। दविणाधिपतिः (पुं०) १. कुबेरपति, धनपति, २. कोषाध्यक्ष। दविणोत्सवः (पुं०) धनोत्सव, धन संचय। 'नरमते रमते
द्रविणोत्सवे (जयो० २५/१४)
दवित (वि०) पलायित, तरलित। द्रवीभूत (वि०) पिघलने वाला, तरल होता हुआ, चलायमान,
चपलतायुक्त। (मुनि० २०) द्रव्यं (नपुं०) १. वस्तु, पदार्थ, सामग्री, २. अर्थ धन, (सम्य० १९)
सम्पत्ति, वैभव, औषधि, लज्जा, शालीनता (सम्य० ५३) ० मदिरा, शर्त। . ० गुण और पर्याय से संयुक्त तत्त्व। ० सामान्य और विशेष धर्म से युक्त तत्त्व। ध्रुवांशमारव्यान्ति गुणेति नाम्ना पर्येति योऽन्यद्वितयोक्तधामा। द्रव्यं तदेतद् गुणपर्ययाभ्यां यद्वाऽत्र सामान्य विशेषताऽऽभ्याम्।। (वीरो० १९/१८) ० सद्व्य लक्षणम्। (त०सू० ५/२९) ० द्रवन्ति जो, अपने आप को न छोड़कर भी बदलते रहते हों तथा सदा एक से ही न रहते हों। (त०सू० ३/२) ० दवियदि गच्छदि ताई ताई सब्भावपज्जयाई जं। दवियं तं भण्णते अणण्णभूदं तु सत्तादो।। (पंचा० ९/१०) ० गुणपर्यवद् द्रव्यम्। (त०सू० ५/३८) ० गुणैर्दोष्यते गुणान् द्रोष्यतीति वा द्रव्यम् (स०सि०१/५) ० द्रोष्यते गम्यते गुणैर्दोष्यते गमिष्यति गुणानिति वा द्रव्यम। ० जो गुणों का आश्रय हो। ० द्रूयते द्रोष्यते अद्रावि पर्याय इति द्रव्यम्। (धव० ३/२) ० इयर्ति पर्यायानर्यते वा तरित्यर्थे द्रव्यम्। (त०वा० १/१७) ० आत्मद्रव्य, शुद्धात्मद्रव्य (सम्य० ८५)
० स्वतन्त्रद्रव्य -जीव और पुद्गल। (सम्य० २२) दव्यकरणं (नपुं०) द्रव्य के निमित्त अनुष्ठान, द्रव्य का द्रव्य
द्वारा अनुष्ठान। 'द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्ये वा करणं द्रव्यकरणमिति
द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्यनिमित्तं वा करणम्। (जैन ल०प० ५४५) दव्यकर्मन् (नपुं०) जो द्रव्य स्वभावतः सद्भावक्रिया से निष्पन्न है। दव्यकायः (पुं०) द्रव्य शरीर, जायक शरीर और भव्यशरीर से
व्यतिरिक्त। द्रव्यकायोत्सर्गः (पुं०) कायोत्सर्ग शरीर सम्बंधी। द्रव्यकारकः (पुं०) द्रव्यका करने वाला। द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्यभूतो
वा कारको द्रव्यकारकः। द्रव्यकालः (पुं०) द्रव्य का काल, द्रव्य का प्रवर्तन, वर्तनालक्षण।
'द्रव्य' इति वर्तनादिलक्षणो वाच्यः''द्रवतीति द्रव्यम्, तस्य
द्रव्यस्य वा वर्तना द्रव्यकालः। द्रव्यक्रीतः (पुं०) द्रव्य से द्रव्य का खरीदना। दव्यक्रोधः (पुं०) बाह्यकारण रूप क्रोध।
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