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दोषातिगः
दौ गिनेयः
दोषातिगः (पुं०) रात्रि का अतिक्रमण, दोष रहित।
जयः कराशी राजितो- १३ दोषाज्झितः (वि०) रात्रि से रहित दोष या रात्र रहित। (जयो० 15 15 SS15 २८/५१)
वीरोचितात्र सापि-११ दोषस् (स्त्री०) रात्रि, रजनी।
55 15151 दोषा (स्त्री०) भुजा, बाहू। (जयो० ७/५६)
कविताश्रयदोहानयेऽ- १३ दोषा (अव्य०) [दुष्यते अन्धकारेण दुष्+घञ्+टाप] रात्रि को। ।। 5 ।। 5 5 15 दोषाकरः (पुं०) चन्द्रमा (जयो० २/१४७)
घस्य श्रमो ममापि ११ दोषाकरः (पुं०) दूसणकर, चन्द्र शशि। (जयो० १२४)
55। 5 ।। दोघाकरत्व (वि०) चन्द्रमा (वीरो०५/४८) (दयो०६८)
| दौः शील्यं (नपुं०) [दुःशील+ष्यञ्] दुर्भावना, तुच्छ स्वभाव। दोषातन (वि०) रात्रि विषयक, रात में होने वाला।
दौः साधिकः (पुं०) [दुःसाध+ठक्] द्वारपाल, ढ्योढीवान। दोषापकरणं (नपुं०) छिद्रपूरण, छिद्र भरना, दोष हटाना।
दौकूल: (दुकूल+अण्) रेशमी वस्त्र। दोषायितत्त्व (वि०) रात्रि रूपत्व (वीरो० २/४५)
दौत्यं (नपुं०) [दूत+ष्यञ्] दूत का कार्य, संदेश। दोहः (पुं०) [दुह्+घञ्] १. दोहना, दूध निकालना, २. दूध,
दौरात्म्यं (नपुं०) [दुरात्मन्ष्य ञ्] दुर्भावना, कुभावना, खोटा दूध पात्र।
विचार, (जयो० ७/१) दुष्टता, नीचता, निम्नता।
दौरुधरी (वि०) दुरुधर, दु:खवाली। (जयो० दोहकछन्दः (पुं०) एक छंद का नाम, जिसके प्रत्येक चरण
दौर्गत्यं (नपुं०) १. निर्धनता, गरीबी। २. हीनता, कमी, में ९ वर्ण हैं। सत्करोमि यत्पदयुगं, सन्निधिरयमिह नाम। मम कर्मासन्निर्वृतं सममधिगत ललाम्।। (जयो० २०/८८)
अभाव। ३. दु:ख। येऽनादितः कर्ममलीमसत्त्वाद्
दौर्गत्यमेवानुसरन्ति सत्त्वाः । दोहदः (पुं०) [दोहमाकर्ष ददाति-दा+क] गर्भावस्था में किसी ।
दौर्गत्यकारिणी (वि०) दुःखदायी कष्टजन्य, दुर्गति को ले जाने वस्तु की कामना, अभीष्ट रुचि।
वाली। (जयो०१० ११/८८) दोहदं (नपुं०) दोहल, इच्छा, अभिरुचि।
दौर्गत्यहेतुः (पुं०) दुर्गति का कारण, नरकगति का निमित्त। दोहदकालः (पुं०) गर्भवती स्त्री की प्रवल रुचि का समय।
रौद्रध्यानमिदं दुरीहिततया दौर्गत्यहेतुः पर स्त्वस्मिन् दोहदभावः (पुं०) दोहद की इच्छा।
लब्धिजनुष्यमैति सुतरां श्रीसाधुताया नरः।। (मुनि० २२) दोहदलक्षणं (नपुं०) भ्रूण, गर्भ।
दौर्गन्ध्यं (नपुं०) [दुर्गन्ध+ष्यञ्] अरुचिकर गंध, तीव्र हानिकारक दोहदवती (वि०) [दोहद+मतुप्+ङीष्] गर्भवती स्त्री की ।
दुर्गन्धा (सुद० १०२) इच्छा, गर्भजन्य दोहद के समय अभीष्ट इच्छावाली स्त्री। | नौगध्य-यत:
दौगन्ध्य-युक्तः (पुं०) दुर्गन्ध युक्त। विलोपमं तत्कलिलोक्ततन्तु दोहन् (वि०) [दुह्+ल्युट्] दुहने वाला, चूसने वाला, अधिक
दौर्गन्ध्ययुक्तं कमिभिर्भूतन्तु।। (सुद० १०२) काम लेने वाला।
दौर्जन्यं (नपुं०) [दुर्जन+ष्यञ्] दुष्टता, दुर्जनता, नीचता, दोहनं (नपुं०) दोहना। (सुद० ४/२२)
अधम प्रवृत्ति युक्त। दोहलः (पुं०) [दो+ला+क] दोहद।
'कथमप्यस्तु समस्त्येव तु कस्मैचिदप्य दोहली (स्त्री०) [दोहल+ङीष्] अशोकवृक्ष।
निष्टचिन्तनमनुचितं किं पुनरात्मीयाय। दोह्य (वि०) [दुह+ण्यत्] दुहने योग्य।
तदेव हि दौर्जन्यं यदन्येषां दोहा (स्त्री०) एक छन्द विशेष, 'कविताया आश्रयो पथप्रस्थायिनामपि किलापकरणम्। (दयो० १०१) दोहानामच्छन्दसो' (जयो० २२/९०)
दौर्जीवित्यं (नपुं०) [दुर्जीवित+ष्यञ्] कष्टमय जीवन, आपत्ति तेरहमत्ता पढम पअ, पुणु एआरह देह।
युक्त जीवन। पुणु तेरह एआरहइ, दोहो लक्खण एह।।
दौर्बल्यं (नपुं०) [दुर्बल+ष्यञ्] दुर्बलता, क्षीणता, कृशता, जिसके प्रथम चरण में तेरह मात्र, द्वितीय में ग्यारह, तृतीय हीनता, शक्ति की कमी। में तेरह और चौथे में ग्यारह मात्राओं हों, उसे दोहा कहते | दौर्भागिनेयः (पुं०) [दुर्भगा ढक्, इन] अभागी स्त्री का
पुत्र।
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