________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दैवत
४९५
दोषावरणप्रहीणः
दैवत (वि०) [देवता+अण्] दिव्य।
दैहिक (वि०) [देह+ठक्] शारीरिक, कायिक, शरीरगत। दैवतं (नपुं०) १. देव, देवता, अमर। २. देवसमह, देवप्रतिमा। दैह्य (वि०) [देहे भव: ष्यञ्] शारीरिक। दैवतन्त्र (वि०) भाग्याश्रित।
दैह्यः (पुं०) आत्मा। दैवतस् (अव्य०) [दैव तस्] भाग्यवश, संयोगवश।
दो (सक०) बांटना, काटना, फसल काटना। दैवत्य (वि०) [देवता+ष्यञ्] देवता को मान्य, देव को दोग्धृ (पुं०) [दुह-नृच्] ग्वाला, दूध दुहने वाला। १. चारण, भाट। सम्बोधित।
दोग्ध्री (स्त्री०) [दोग्धृ+ङीप्] दुधारु गाय, दूध देने वाली दैवदुर्विपाकः (पुं०) भाग्य की निष्ठुरता, भाग्य की विपरीत गाय। परिणति, भाग्य की अशुभ प्रवृत्ति।
दोधः (पुं०) [दुह्+अच्] बछड़ा। दैवदोषः (पुं०) भाग्य का दोष, भाग्य की विपरीत परिणति। दोपाश: (पुं०) भुजपाश। (जयो० १७/१३२) दैवपरः (वि०) भाग्य पर, भाग्यवादी, प्रारब्ध, भाग्य में लिखा। दोरः (पुं०) [दुल्+घञ्] झूलना, डोलना, हिंडोला, डोली। दैवपरिणतिः (स्त्री०) भाग्य की प्रवृत्ति।
दोला (स्त्री०) [दोल्+टाप्] ढोली, पालकी, हिंडोला, पालना, दैवप्रश्नः (पुं०) भविष्यकथन ज्योतिष।
झूलना। दैवमलः (पुं०) कर्ममल अपाहरक प्राभवमृच्छरीर आत्मस्थितं दोलाचरणं (नपुं०) हिंडोले का अनुकरण। नरदेवमलं च वीरः। (वीरो० १२/४१)
राजवशादृशात्मसादपि दोलाचरणं कृतं तदा। (जयो० १३/२०) दैवयुगं (नपुं०) देवों का युग।
दोलायितम् (नपुं०) झूलना, हिलाना। (जयो० २६/३५) दैवयोगः (पुं०) भाग्यवश, संयोग।
चलाचल, एक साधु वन्दना दोष। दैवलः (पुं०) प्रेत आत्मा, १. देवरा, किसी देव का चबूतरा। दोर्लतिका (स्त्री०) भुजलता। (जयो० ६/८२) दैवलेखकः (पुं०) ज्योतिषी, भविष्यवक्ता।
दोलनं (नपुं०) बदन, शरीर, देह, काय। (जयो० १६/२८) दैवलोकः (०) स्वर्ग, दिव्य लोक।
दोषः (पुं०) [दुष्+घञ्] १. त्रुटि, निन्दा, लांछन, दूषण, दैववश: (पुं०) भाग्यधीनता, नियति के कारण। (जयो० अपराध, कसूर। २. पाप, भय, क्षति, हानि (सुद० १०९) ९/१२९)
(मुनि० २८) ३. व्याधि, रोग। दैववाणी (स्त्री०) आकाशवाणी, दिव्यघोषणा।
दोषग्रहं (नपुं०) दोष ग्रहण। (समु० १/२४) दैववादिन् (वि०) भाग्यवादी। (दयो०७८)
दोषज (वि०) १. विषमता से उत्पन्न होने वाले। २. वात, पित्त देवश्री (स्त्री०) भाग्यश्री पुण्यवान्। भवादृशां कष्टमदुष्टदैवश्रियां । आदि पीड़ा उत्पन्न करने वाले।
क्व सम्भाव्यमहो सदैव। (जयो० ३/२६) दैवं भाग्यं पुण्यकर्म दोषणं (नपुं०) [दुष्+णिच्+ल्युट्] दोष लगाना, लांछन लगाना, तस्य श्री शोभा। (जयो०वृ० ३/२६)
क्षति पहुंचाना। दैवसंयोगः (पुं०) भाग्य की आधीनता। आगता दैवसंयोगाद्विहरन्ती | दोषन् (पुं०/नपुं०) भुजा, बाहु, बाजू। निजेच्छया' (सुद० १३३)
दोसभाक (वि०) दोष सूचक। (जयो० २/२९) दैवसम्विदः (पुं०) ज्योतिषी। (समु० २/१५)
दोषपरीक्षक (वि०) दोष देखने वाला (वीरो० १०/७) (जयो० दैवहीन (वि०) भाग्यहीन, अभागा।
७/५६) दैविक (वि०) [देव+उक्] दिव्य, दैवीय, देवताओं से सम्बन्धित। दोषल (वि०) [दोष लच्] दोषी, भ्रष्ट। दैविकं (नपुं०) स्वाभाविक होने वाली घटना, दैवीय घटना। दोषमूलं (नपुं०) दोष की जड़। (वीरो० ३/२३) दैविन् (पुं०) [दैवइनि] ज्योतिषी।
दोषवर्जित (वि०) निस्तुष, अपराधहीन। (जयो०६/२७) दैव्य (वि०) [देव+यञ्] दिव्य, देव सम्बन्धी।
दोषानुरक्त (वि०) दोषों में लीन, रात्रि में अनुरक्त। दोषायां दैशिक (वि०) [देश+ठञ्] स्थानीय, लौकिक, प्रान्तीय, संकेतित, रात्रौ दोषेषु वा अनुरक्तः। (वीरो० १/२०) निदेशक, परिचित स्थान वाली।
दोषावरणप्रहीण: (०) १. दोषों से पूर्णतः रहित। दोषा-रागादण दैशिक-सौराष्ट्रीय-रागः (फु) संगीतात्मक पद्धति। (सुद० ८९) आवरणं ज्ञानदर्शनाभावरूपं ततः प्रहीण। २. पूर्णरूपेण दैष्टिक (वि०) [दिष्ट ठक्] प्रारब्भ, भाग्य में लिखा हुआ। | रहित।' (जयो०वृ. २६/७२)
For Private and Personal Use Only