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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशव्यतिरेकः देहपात्रं देशव्यतिरेकः (पुं०) एक देश के अतिरिक्त दूसरा नहीं, जो | देशोपलब्धिः (स्त्री०) अभीष्ट देश मोक्ष की प्राप्ति। 'सुरसार्थ: दूसरा देश है, वह दूसरा ही है, अन्य नहीं। संसेव्यो ह्यभीष्टदेशोपलब्धिहेतरपि' (वीरो० ४/५३) देशव्रतं (नपुं०) १. देशविरतिव्रत, श्रावक का एक व्रत, प्रदेशस्तस्य संलब्धिस्तस्याः समीहितमुक्ति प्राप्तेः हेतुः जिसमें परिमाण का नियम किया जाता। (सम्य० ९८) २. (वीरो०वृ० ४/५३) पांचवा गुणस्थान देशविरत, इसमें प्रत्याख्यानावरण कषाय | देशोपशमना (स्त्री०) प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश का का उदय होने से पूर्ण संयम तो नहीं होता, परन्तु थोड़ा ___ अल्प उपशम। व्रत होता है। देशेन एकदेशेन त्रसवधनिवृत्याश्रयेण संयतो देश्य (वि.) [दिश्+ण्यत्] १. देश सम्बंधी, स्थानीय, प्रान्तीय, विरतो देश संयतः (गो० जी० ३१) देशी, स्वदेशी। २. शुद्ध, निर्मल, खरी। देशव्रती (वि०) पांचवें गुणस्थानवर्ती श्रावक, देशसंयत, देश देश्यः (पुं०) साक्ष्य, गवाह। विरत श्रावका देश्य (नपुं०) देशना, तर्कपूर्ण कथन, पूर्वपक्षी। देशव्यवहारः (पुं०) देश के रीति-रिवाज, प्रचलित प्रथा। देहः (पुं०) [दिह्य+घञ्] अंग। शरीर, काया, गात्र। देहश्च देशशंका (स्त्री०) देश विषयक शंका, भव्य-अभव्य, ग्राह्य-अग्राह्य कीदृक शठ एस एव। (वीरो० ३) आदि के प्रति शंका। 'देशशङ्का एकैकवस्तुधर्मगोचरा' ० औदारिक, वैक्रियिक और आहारक तर्गणाओं का देशसत्यं (नपुं०) गणाश्रय पद भाषिवचन, गण, कुल आदि पुद्गलपिण्ड। के उचित उपदेशक वचन। ० कर, चरण, शिर और ग्रीवा आदि अवयव स्वरूप देशसंयमः (पुं०) देशसंयत, देश विरत पंचम गुण स्थान का परिणत पुद्गलपिण्ड। विनाशि देहं मलमूत्रगेहं वदामि चारित्र। नात्मानमतो मुदेऽहम्। (सुद० १२१) मदीयं मांसलं देहं देशसंवरः (पुं०) तत्त्व ज्ञाता का संवरण। दृष्टवेयं मोहमागता' (सुद० १०१) देशस्नानं (नपुं०) एक देश स्नान। अक्षि-पलक का धोना। देहकान्तिः (स्त्री०) शरीर की प्रभा। देशातिथि: (स्त्री०) देश में अतिथि, विदेशी। देहकोषः (पुं०) १. शरीर का आवरण। २. रोग, शरीर विकार। देशाचारः (पुं०) देश की प्रथा। देहक्षयः (पुं०) शरीर ह्रास, रोग। देशान्तरिन् (पुं०) विदेशी। देहगत (वि०) शरीर सम्बन्धी, छाया से प्राप्त। (सुद० १३५) देशाख्यानं (नपुं०) देश का कथन। देहजः (पुं०) पुत्र, सुत। देशावकाशिकव्रतं (नपुं०) दिशा प्रमाण, श्रावण के व्रत में देहजा (स्त्री०) पुत्री, सुता। प्रमाण की मर्यादा। देहत-शरीर से। देशावधि: (स्त्री०) क्षयोपशम से आश्रय से उत्पन्न अवधिज्ञान। देहत्यागः (पुं०) मृत्यु, मरण, शरीर परित्याग। देशिक (वि०) [देश+ठन] स्थानीय, लौकिक, इसी स्थान का देहदः (पुं०) पारा, एक धातु विशेष। रहने वाला। देहदीपः (पुं०) अक्षि, आंख, नयन। देशिकः (पुं०) उपदेशक, तत्त्वोपदेशक, आध्यात्मक-उपदेष्टा। | देहदीप्तिः (स्त्री०) शरीर कान्ति। (जयो० ५/१) (जयोवृ० देशित (वि०) कथित, उपदेशित, प्रतिपादित। (जयो० २/९०) १०/११४) 'देशितं हृदयहार वर्द्धितम्' (जयो० २/९०) 'यत्तु देशितं | देहधर्मः (०) शारीरिक क्रिया। विधेयत्वरूपेण निर्दिष्टं' (जयो०वृ० २/९०) देहधारणं (नपुं०) जीवन, प्राण। देशिनी (स्त्री०) १. प्ररूपिका, निर्देशनी (जयो० ३/१०, देहधि (स्त्री०) कक्ष, बाजू। २/४३) २. [दिश्+णिनिङीप्] तर्जनी, अंगुष्ठ के देहधर (वि०) शरीरधारी। (समु०७/६) समीपवर्ती अंगुली। देहधारी (वि०) शरीर धारण करने वाला। (जयो०वृ० १/२३) देशी (स्त्री०) [देश+ङीष्] १. देश विशेष में प्रचलित बोली, | देहधृष् (पुं०) पवन, वायु, हवा। जनसाधारण की बोली। २. देश सम्बंधी। देहनामन् (नपुं०) अवनति, झुकना। (जयो०वृ० १२/१३१) देशीय (वि०) प्रान्तीय, स्थानीय, स्वदेशीय। देहपात्रं (नपुं०) शरीर रूपी भाजन। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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