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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशः ४९२ देशविरति देशः (पु०) [दिश्+अच्] स्थान, प्रदेश, प्रान्त। (सुद० ११७, जयो० १/९०) 'कुतश्चिद्दिश्यते इति देशः' जो किसी अवयव से निर्दिष्ट किया जाए। ० धर्मास्तिकाय का स्थान भी देश है। ० स्कन्ध के अर्ध भाग का नाम भी देश है। ० ग्रामादीनामवधृतपरिणामः प्रदेशो देशः। ० विभाग, अंश, भाग, पक्ष, हिस्सा। (जयो० १/३) ० देश-कथन (जयो० २/९०) ० देशव्रत-श्रावक के पालन करने योग्य बारह व्रतों में एक व्रत, जिसमें देश की सीमा का क्षेत्र निर्धारित किया जाता है। ० देश, प्रस्ताव, अवसर, विभाग और पर्याय। देशकः (पुं०) उपदेशक, शिक्षक उपाध्याय, शासक ० राज्यपाल। देशकथा (स्त्री०) विभिन्न देशों की कथा, चार कथाओं में एक देश सम्बंधी कथा। देशकरणं (नपुं०) प्रदेश करण, अध्यवसान विशेष करण। देशतः करणाभ्यां यथाप्रवृत्तिः। देशकरणोपशना (स्त्री०) दर्शनमोहनीय का उपशम करना। देशकांक्षा (स्त्री०) मिथ्यामत की आकांक्षा। देशकालः (पुं०) देश प्रस्ताव, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति का काल। देशकालज्ञ (वि०) समय का ज्ञाता। देशकालविमुक्त (वि०) देश काल से रहित। (दयो० २५) | देशकृत (वि०) कुछ अंश का एक देश का। (दयो० २/३) त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं देशकृते त्यक्त्वाप्यात्मार्थ पृथिवीं त्यजेत्।। (दयो० २/३) देशघाती (वि०) आत्म गुणों का घातक। देशघातिस्पर्द्धकः (पुं०) देश का घात करना, आत्मगुणों का आंशिक रूप से घात करना। (सम्य०६०) देशचारित्रं (नपुं०) एकदेशविरति। अगारिणां गृहस्थानां देशतः एकदेशविरतिलक्षणं देशचारित्रम्। देशच्छन्दकथा (स्त्री०) स्त्री के सेव्यासेव्य की कथा करना, स्त्री के गम्यागम्य की कथा करना, स्त्री कथा निरूपण। देशज (वि०) स्वदेशी, अपने देश में उत्पन्न होने वाली। देशजात (वि०) स्वदेशी, अपने देश में पैदा होनी वाली। ० शुद्ध, स्पष्ट, तात्त्विक। देशजिनः (पुं०) एक देश जिन, जो कषायादि के एक देश जीतने वाले हैं। देशज्ञानावरणीयं (नपुं०) ज्ञान के अंश को आच्छादित करने वाला। देशत्यागी (वि०) एक देश का त्याग करने वाला। देशदानं (नपुं०) एक अंश का दान। देशना (स्त्री०) [दिश णिच् यच+टाप] धर्मापदेश, धर्म-कथन, धर्म निर्देश। 'देशनेव दुरितापवर्तिनी' (जयो० ३/१८) 'या सभा देशना धर्मोपदेशः' (जयो०वृ०३/१८)'न देशनास्तीर्थपतेः किलापः' शरीरिणां दु:खदवोपताप:' (भक्ति० २५) जिस धर्म का दूसरे के लिए प्रतिपादन किया जाता है। 'दिश्यते परस्मै प्रतिपाद्यते इति देशना उपदेशयमानो धर्मो धर्मोपदेशनं वा देशना। (अनगार धर्मामृतः १/५) देशनाकृता (वि०) देशना करने वाले। (जयो० २/७४) देशनालब्धिः (स्त्री०) उपदेशित तत्त्व का ग्रहण, सदुपदेश का रुचि के साथ ग्रहण। गत्वा गुरोरन्तिकमेतदात्तां लब्धा मयेयं महतोऽपिभाग्यात्। सुधामिवेत्थं सपिवासुरस्तु सम्यक्त्वहेतोः समुदायवस्तु।। (सम्य० ४३) ०चिन्तन शक्ति का समागमा ० धारणा शक्ति का समागम। देशनिर्जरा (स्त्री०) क्षयोपगम को प्राप्त जीव के कर्म की निर्जरा। संसारे संसरंतस्स खओवसमगदस्स कम्मस्सा सव्वस्स वि होदि जगे......। (मूला० ८/५५) देशपरिक्षेपी (स्त्री०) देश के अभिप्राय वाली। देशप्रत्यक्षः (पुं०) इन्द्रिय और मन के आलम्बन से उत्पन्न कारण। देश-यति धर्मः (पुं०) पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप धर्म। देशान्तरः (पुं०) अन्यदेश, दूसरा देश, व्याप्त। 'देशान्तरेऽस्य कीर्तिः' (जयो० ६/१०९) दूरदेशेष्वपि व्याप्त्यर्थकत्वात्' अन्यार्थकत्वाच्च' (जयो०वृ० ६/१०९) देशविकल्पकथा (स्त्री०) देशविशेष की अपेक्षा चर्चा करना। देशविचिकित्सा (स्त्री०) एक देश संशय, एक अंश पर भी संदेह। देशविरति (स्त्री०) १. एक देश से विरत होना, हिंसादि पापों से एक देश हटना। 'यस्तु देशतो विरतः स देशविरतः' २. देशविरतव्रत, जिसमें निश्चित प्रमाण की मर्यादा की जाती है। 'विरमणं विरतिः, निवृत्तिरिति यावत. देशाद् विरतिः, देशविरति:' (त०वा० ७/२१) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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