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दुःखभेदिन्
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दुःखभेदिन् (वि०) पीड़ानाशक।
दुग्धपानं (नपुं०) दृध पीना। (जयो० १२/१२७) दुःखमात्मसात् (वि०) दु:ख झेलने वाला। (वीरो० २२/२९) दुगधपोष्य (वि०) दूध से पाला गया शिशु। दुःखलोकः (पुं०) संसारिक जीवन।
दुगधभाजनं (नपुं०) दूध का बर्तन, दुग्धपात्र, क्षीर-पात्र। दुःखविधि (स्त्री०) पीड़ा की स्थिति, पीड़ा का क्षेत्र। (सम्य० दुग्धभावः (पुं०) दूध का कौशल।
९०) अपथ्यवद् दुःखविधेरपेतुं लग्नः सुखे चागदतां समेतुम्। दुग्धसमुद्रः (पुं०) दूध सागर, क्षीर सागर। (सम्य० ९०)
दुग्धात्मक (वि०) दुग्ध सदृश, अमृतरूप। (जयो०१० ११/८२) दुःखविपाकः (पुं०) दु:ख की परम्परा, दु:ख का परिणाम। दुग्धाब्धिः (पुं०) क्षीर सागर। दुगधाब्धिवदुज्वले तथा के दुःखातीत (वि०) दुःखों से परे, पीड़ा से मुक्त, व्याकुलता शयानकेऽध्यमत्या साकम्। (सुद० ९८) रहित।
दुग्धाश्रमः (नपुं०) अमृताश्रम, अमृत स्थान, स्वर्ग स्थान। दुःखान्तः (पुं०) मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण।
(जयो०वृ० १८/४४) दुःखायापरन् (वि०) दु:ख से दूर होने वाला। दुग्धीकृत (वि०) दूध को करने वाला, नीर-क्षीर विवेक
दु:खमेकस्तु सम्पर्क प्रददाति परः परम्। दु:खायापसरन् वाला। भाति को भेदोऽस्त्वसतः सतः (वीरो० २८/३१)
दुग्धीकृतेऽस्य मुग्धे यशसा निखिला जले मृषास्ति सता। दुःखायते (समु० ३/६) दु:खायत दु:खी होना। (मुनि० २०) पयसो द्विवाच्यताऽसौ हंसस्स च तद्विवेचकता।। (जयो० ६/३७) दुःखित (वि०) [दुःख इतच्] पीड़ित, विषाद युक्त। दुदुदुत (वि०) अस्पष्ट वाणी वाला। (जयो० १६/५०) दुःखिन् (वि०) पीडित, विषाद युक्त, ग्लपिता (सुद० ७३) दुध (वि०) [दुह+क] दूध देने वाला।
(भक्ति० २२) 'दीनं दरिद्रं खलु दुःखिनं वाऽवलोक्य चित्ते दुद्धउ (वि०) कठिनाई से धारण करने योग्य। (समु० ४/८) करुणावलम्बात्।। (सम्य० ७७)
दुधा (स्त्री०) [दुधाटाप्] दुधारु, गाय, दूध देने वाली गाय। दुःखिनी (वि०) पीड़िता, विषाद युक्ता। वनविचरणतो दुःखिनी दुनोति-कर रहा है (वीरो० ५/३) __किल सीता सती तु तेन। (सुद०८८)
दुण्डुक (वि०) छल-कपटी। दुःखोच्छेदकर (वि०) दु:ख का विनाश करने वाला, पीड़ा दुन्दमः (पुं०) [दुन्दु+मण-ड] दुन्द इत्यव्यक्तं मणति शब्दायते। नाशक। (जयो०७० २०/९)
दुन्दुभि, एक ढोल। दुःसह (वि०) असहनीय। (सुद० ७८)
दुन्दु (पुं०) ढोल। दुःखोत्पादनं (नपुं०) दुःख अपकार, दुःखक्षय। (वीरो०वृ० दुन्दुभः (पुं०) [दुन्दु+भण+ड] बड़ा ढोल। १/३३)
दुन्दुभि (स्त्री०) एक वाद्य विशेष, नगाड़ा, ढोल। (वीरो दुःसंसर्ग (वि०) दुष्ट संगति। (जयो० १/६२)
१३/२३) दुकूलं (नपुं०) [दु+ऊलच्] रेशमी वस्त्र, शाटी। (जयो० | दुन्दुभिक (वि०) नाद युक्त। (जयो० २६/५९) १३/५६) महीन वस्त्र (जयो०वृ० ३/३६)
दुन्दुभिनादः (पुं०) भेरी नाद। दुकूलावली (स्त्री०) साड़ी, साटिका। (दयो० १८)
दुन्दुभिनिनादः (पुं०) ढोल निनाद, नगाड़े की ध्वनि। (जयो० दुग्ध (वि०) [दुह्+क्त] दुहा हुआ, निकाला गया।
६/१२७) दुग्धं (नपुं०) दूध, क्षीर। 'दुग्धवन्भृदुवचः श्रुतिदेशे' (जयो० | दुन्दुभिध्वनि (स्त्री०) नगाड़े की ध्वनि। दुन्दुभिर्वादित्रविशेषः ४/२०) सुद ८५, जयो० २/१५३।
सोऽसो ध्वनिमनुतेने। (जयो० ५/५७) दुग्धकलाक्षरिणी (वि०) मीठा दूध प्रवाहित करने वाली, | दूर (अव्य०) [दु+रुक्] यह उपसर्ग में प्रयुक्त होने वाला 'दुग्धस्य कलायाः क्षरिणी प्रस्रविणी' (जयो०९/७१)
अव्यय है, जिससे 'बुरा' विकार' निरर्थक, अप्रयोजन दुग्धदात्री (वि०) पयस्विनी, पयोधरा, दूध देने वाली। (वीरो० २/२०) ___ भूत, कठिन, आदि अर्थ प्रकट होता है। दुग्ध-पाचनं (नपुं०) दूध उबालना, दूध ओटाना।
दुर्कर्मन् (नपुं०) किलाबंदी, कठिन मार्ग। दुग्धपात्रं (नपुं०) दुग्ध भाजन. दूध का बर्तन। (जयो० दुर्ग (नपुं०) किला। (दयो० ७७) २१/५८)
दर्ग (नपुं०) यस्याभियोगात् परे दु:खं गच्छन्ति दुर्जनोद्योग
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