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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीर्घनाद ४७९ दुःखभावः दीर्घनाद (वि०) अत्यधिक निनाद। दीर्घनिद्रा (स्त्री०) चिरशयन, मृत्यु। दीर्घनेत्रं (नपुं०) विस्तृत नयन, फैले हुए नेत्र। (सुद० ३३) दीर्घपत्रः (पुं०) ताड़ तरु। दीर्घपादः (पुं०) बगुला। दीर्घपादपः (पुं०) १. नारियल का पेड़। २. सुपारी का वृक्ष, ताड़ वृक्षा दीर्घप्रेमी (वि०) चिर प्रेमालापी। दीर्घपृष्ठः (पुं०) सर्प, सांप। दीर्घबाला (स्त्री०) हरिणा दीर्घमारुतः (पुं०) हस्ति, हाथी। दीर्घरदः (पुं०) सूअर। दीर्घरसनः (पुं०) सर्प, सांप। दीर्घरोमन् (पुं०) रीछ, भालू। दीर्घवक्त्र (पुं०) हस्ति, गज। दीर्घ विचारवान् (पुं०) अखर्वसूत्री, विस्तृत व्याख्या वाला। __(जयो० वृ० ३/८५) दीर्घशङ्का (स्त्री०) शौच। (दयो० ३४) दीर्घसंदर्शिता (वि०) विचारशीलता। (वीरो० ३/३२) दीर्घसक्थ (वि०) लम्बी जंघाओं वाला। दीर्घसत्रं (नपुं०) चिरकाल तक चलने वाला। दीर्घसूत्र (वि०) प्रलम्बमानतन्तु (जयो० १७/७३) १. मन्थर, धीरे-धीरे कार्य करने वाला। दीर्घसूत्रता (वि०) ढील करना, धीरे धीरे कार्य करना। (दयो० ६९) दीर्घाकार (वि०) बड़े आकार वाला। दीर्घाधार (वि०) उच्च आश्रय वाला। दीर्घाध्वग (वि०) लम्बा गमन करने वाला। (जयो० १३/३३) दीर्घायु (वि०) दीर्घजीवि, चिरजीवि। दीर्घायुधः (पुं०) भाला, कुन्तल। दीर्घालोचक (वि०) दीर्घदर्शी, दूरदर्शी। (जयो०१० १६/७७) दीधिका (स्त्री०) [दीर्घकन्+टाप्] वापिका, बावड़ी, जलाशय, __सीढ़ीदार कुंआ। दीर्धीकरणं (नपुं०) ह्रस्व का दीर्घ होना। दीर्ण (वि०) [दृ+क्त] १. विदीर्ण किया, फाड़ा गया, चीरा गया, विनष्ट किया गया। २. भयभीत, डरा हुआ। दीव्य (वि०) रमणीयता, सुन्दरता। (जयो० ३/४६, ३/७१) दीव्यता (वि०) सुंदरता, रमणीयता। दु (सक०) जलाना, दु:खी करना, भस्म करना, सताना, कष्ट देना। दु (अक०) पीड़ित होना, कष्टग्रस्त होना। दुःख (वि०) [दुष्टानि खानि यस्मिन् दुष्टं खनति-खन्ड, दुख+अच्] पीड़ा, कष्ट, अरुचि, वेदना, विषाद, बेचैनी, व्याकुलता, अशुभ प्रवृत्ति, दौगत्य। (भक्ति० ५) ० असाता-असादं दुक्खं। ० पीडालक्षण: परिणामो दु:खम्। ० इष्ट वियोग। . पारतन्त्र्यं हि दुःखम्। ० असतोदयकारण। ० अप्रीतिभाव। ० अप्रीति (सम्य० ९०)। ० संक्लेशपरिणाम। ० आर्तभाव। ० द्वेष जन्य भाव। ० कर्म बन्ध (सम्य० २९) 'दु:खयतीति दुःखं वेदनालक्षणः परिणाम:' (त०वृ०६/११) दुःखं (नपुं०) खेद, विषाद, वेदना, पीड़ा। दुःखकर (वि०) 'दु:खयतीति दु:खं वेदनालक्षण: परिणाम:' (त०१० ६/११) दुःखकर (वि०) पीडाकारक, कष्टजनक। दुःखकारिन् (वि०) पीड़ा जनक। दुःखगेहं (नपुं०) दु:ख का स्थान। दुःखग्रामः (पुं०) संसार. दु:खों का स्थान। दुःखक्षय (वि०) दुःख का अभाव। दुःखक्षतिः (स्त्री०) दु:ख की हानि। दुःखछिन्न (वि०) पीड़ा मुक्त. अधिक पीड़ से घिरा हुआ। दुःखजाति (स्त्री०) दु:खोत्पत्ति (समु० १/२५) दुःखद (वि०) कष्टप्रद (वीरो० ५/७) 'न जातु ते दुःखदमाचराम:' दुःखदायिन् (वि०) पीड़ाकारक। (वीरो० २२/२८) दुःखधाम (पुं०) दु:ख स्थान। दुःखप्रायः (वि०) दुःख की बहुलता। दुःखभर (वि०) कष्ट से घिरा हुआ, दु:ख समूह। 'मोहिजनचक्षुषोर्दु:खभरमञ्जनम्' (मुनि० ३४) दुःखभाज् (वि०) दु:खी, अप्रसन्न, व्याकुलता युक्त, वेदनाग्रस्त। दुःखभावः (पुं०) दुःख परिणाम। | For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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