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दिव्यपदं
दीधितिमत्
(भक्तामर-३५) व्याख्याति तत्त्वं सकल ज्ञतातः, बहिर्न दिशान्तरं (नपुं०) अन्तराल, अन्तरिक्ष। किञ्चिद्यदुपेयतात:।
दिशाम्बर (वि०) निर्ग्रन्थ, दिगम्बर। वचो निरुद्ध्याङ्गमकारि सुस्थं श्वासप्रचारं मृदुलं वपुत्स्थम्।। दिशाबोधः (पुं०) निर्देश का ज्ञान, आदेश, आज्ञा। (भक्ति संग्रह पृ० ३२/१८) 'नि:शेष ध्वनि मीशम्य किन्तु दिष्ट (वि०) [दिश्+क्त] संकेतित, आदेशित, प्ररूपित, वर्णित, जग्राह गौतमः' (वीरो० १५/४)
___ इंगित, निश्चित, उल्लिखित। दिव्यपदं (नपुं०) परमपद, उत्कृष्ट पद।
दिष्टं (नपुं०) नियति, भाग्य, आदेश, उद्देश्य, ध्येय, अभिप्राय। दिव्यप्रवचनं (नपुं०) दिव्यकथन, प्रवचन, वीतराग वाणी, दिष्टिः (स्त्री०) [दिश्-क्तिन्] शिक्षा, आज्ञा, आदेश, उपदेश, विरोध रहित विचार। (वीरो९ १५/६२)
निर्देश, नियति। दिव्यफलं (नपुं०) उन्नतफल।
दिष्ट्या (अव्य०) सौभाग्य से, नियति से, परम आदेश से। दिव्यबोधि (स्त्री०) उत्कृष्ट ज्ञान।
दिह (सक०) लीपना, थांपना, सामना, पोतना, बिछाना, मैला दिव्यभावः (पुं०) दिव्यध्वनि, सर्वज्ञ की अनक्षरात्मक ध्वनि।
करना, अपवित्र करना। दिव्य-मनुजः (पुं०) सज्जन।
दी (अक०) नष्ट होना, क्षय होना। दिव्यमाला (स्त्री०) गन्धर्वमाला, देव सम्बंधी माला।
दीक्ष (सक०) दीक्षा करना, तैयार करना, अनुष्ठान करना दिव्य-मौलि: (स्त्री०) दिव्य मुकुट।
शिष्य बनाना, संस्कार करना, आत्म संयम करना। दिव्य-यन्त्रं (नपुं०) उन्नत यन्त्र, अच्छा यन्त्र।
दीक्षकः (पुं०) [दीक्ष+ण्वुल] आत्म-मार्ग दर्शक, आत्म दिव्ययोगः (पुं०) समाधि योग।
शिक्षक। दिव्यरत्नं (नपुं०) देदीप्यमान रत्न, देव सम्बंधी रत्न।
दीक्षणं (नपुं०) [दीक्ष ल्युट] दीक्षा देना, आत्म-संयम करना। दिव्यरथः (पुं०) आकाश विमान, देव विमान।
दीक्षा (स्त्री०) आत्म-संयम, संलग्न सर्व संग/परिग्रह त्याग। दिव्यरसः (नपुं०) अनुपम वस्त्र, उज्ज्वल वस्त्र।
(जयो० १८०) प्रव्रज्या, धर्म मार्गानुष्ठान। दिव्यवस्त्र (वि०) देवीय वस्त्र वाला।
दीक्षापात्रं (नपुं०) दीक्षा के योग्य, जो जाति, कुल रूप आदि दिव्यबोध: (पुं०) उत्कृष्ट ज्ञान। (वीरो० १२/४९)
से श्रेष्ठ धीर, शान्त परिणामी होता है। देश जाति कुलोत्पन्न दिव्यसरित् (स्त्री०) आकाश गङ्गा, स्वर्ग गङ्गा।
क्षमासन्तोष शीलवान्। दिव्यसारः (पुं०) साल वृक्षा दिव्यसुरभिः (स्त्री०) उत्तम गन्ध।
दीक्षागुरु (पुं०) प्रव्रज्यादायक गुरु, संघस्थ निर्विकल्प संयम के दिव्यहस्तिः (पुं०) ऐरावत हाथी।
प्रतिपादक। दिश् (सक०) १. प्रदर्शन करना, संकेत करना, दिखलाना।
दीक्षादिवस् (पुं०) दीक्षा दिन। (जयोवृ० १/८) २. नियत करना, ३. देना, प्रदान करना,
दीक्षाप्रयोगः (पुं०) अभिषेक। (जयो० १६/२५) समर्पण करना, सौंपना। ४. घोषणा करना, कहना, प्ररूपणा
दीक्षाभावः (पुं०) दीक्षा की भावना। करना। ५. उल्लेख करना, निर्देश करना। ६. सिखाना,
दीक्षामंत्र (नपुं०) दीक्षा मन्त्र, दीक्षा पाठ। बतलाना।
दीक्षामत्रं (वि०) दीक्षा धारक। दीक्षामतः समासाद्य दिश् (स्त्री०) [दिशति ददात्यवकाशम्-दिश्+क्विप्] १. दिशा, गणनायकतामगात्। (वीरो० १५/२५)
प्रदेश, भाग, अन्तराल, स्थान। २. दृष्टिकोण, अभिप्राय, दीक्षायोग्यः (पुं०) दीक्षा का पात्र, दीक्षा लेने का अधिकारी। आदेश, कथन, उपदेश, देशना।
दीक्षावर्णनं (नपुं०) दीक्षा कथन। (सुद० ११६) दिशच्छ्री (स्त्री०) दिशाओं, दिशाओं की शोभा। (सु० १३७) दीक्षाविधानं (नपुं०) दीक्षा वर्णन। (सुद० ११६) दिशा (स्त्री०) [दिश् अङ्कटाप्] १. प्रदेश, स्थान भाग, | दीक्षित (भू०क०कृ०) [दीक्ष्+क्त] संस्कारित, संयमित, दीक्षा
अन्तराल। २. पृथ्वी का चौथाई भाग। ३. उपदेशक-दिशं प्राप्त, आत्मानुशासित, अभिषिक्त। (दयो० ३४) मोक्षवर्तन्याश्रयमुपदिशति यः सूरिः स दिशा इत्युच्यते। दीदिविः (नपुं०) स्वर्ग। (भ०आ०टी० ६८) ४. सरलक्षेत्र विशेष। ५. निर्देश, दीधितिः (स्त्री०) प्रकाश, किरण, प्रभास, आभा, कान्ति। आदेश, संकेत।
दीधितिमत् (वि०) [दिधिति+मतुप] उज्ज्वल, कान्तिमान्।
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