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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दासीसुतः ४७३ दिग्विजयकाल: दासीसुतः (पुं०) दासी पुत्र। दिगभ्रमभावः (पुं०) दिशाओं के भ्रम का भाव। (दयो० १९) दासेरः (पुं०) दासी पुत्र। दिगम्बरः (पुं०) क्षपण, नग्न, ध्वान्त, शूल, अन्धकार। दास्यं (नपु०) [दास्+ष्यञ्] दासता, गुलामी, सेवा, आधीनता। 'दिगम्बरस्तु क्षपणे नग्ने ध्वान्ते च शूलिनि' इति विश्वलोचनः' दास्यमयः (पुं०) सेवक भाव। (जयो० १०/७) (जयो० १३/४८) दास्यवृत्तिः (स्त्री०) आज्ञाकारित्व। (जयो० २३/७९) ० गङ्गाधर, उग्र, कैलाशपति, शिव, शंकर, चन्द्रचूड। दस्युः (पुं०) चोर, लुटेरा, जारज। (सम्य० २७) (दयो० ४१) | (जयो० १६/१४) 'सद्धारगङ्गाधरमुग्ररूपं तमेवमुच्चैस्तनदास्युसंग्रहः (पुं०) चोर समुदाय। (वीरो० १०/२५) शैलभूपम्। दिगम्बरं गौरि! विधेहि चन्द्रचूडं करिष्यामि दाहः (पुं०) [दह्+घञ्] १. जलन, ज्वाला, अग्नि, तपन, तमामतन्दः।। (जयो० १६/१४) ताप, संतापजनक संक्लेश। २. संक्लेश, दु:ख, आर्त, ० वस्त्र रहित, निर्ग्रन्थ (जयो० वृ० १६/१४) वस्त्रहीन पीड़ा, कष्ट। दाहो णाम संकिलेसो। (धव० ११/३४१) (जयो०वृ० १/२२) दाहक (वि०) [दह्+ण्वुल्] तपनशील, जलाने वाला, तापक, ० दिगम्बरेषु दिशामवकाशेषु निरम्बरेषु मध्यस्थं आकारमगात्। संतापजनक। (जयो०वृ०८/५६) ०दिक अम्बर, निर्दोष आकार, स्वाभाविक, यथाजात। दाह-ज्वरः (पुं०) जलनशील ज्वर/बुखार। दिशाओं में अवकाश, निरम्बर भी इसका अर्थ है। 'स्वभाविक दाहनं (नपुं०) [दह् + ल्युट्] जलाना, भस्म करना। सहजवेषमुपाददानान्। वेदेऽपि, कीर्तितगुणान्मनुजास्तथा तान्। दाहसरस् (नपुं०) श्मशान भूमि। (वीरो० २०१७) दाहहर (वि०) संताप हारक। दिगम्बरत्व (वि.) अचेलक्य, निर्वस्त्रता, निर्ग्रन्थता। (जयो० दाह्य (वि.) [दह्+ण्यत्] जलाने योग्य, संक्लेश करना। १/२२) दिक् (स्त्री०) दिशा, आकाशप्रदेश श्रेणी। दिगम्बर-प्रशंसा (स्त्री०) दिगम्बर का गुणगान। दिक्कः (पुं०) युवाहस्ति, करभा । नग्नरूपो महाकायः सितमुण्डो महाप्रभः। दिक्कुमारः (पुं०) दिशाओं में क्रीडा करने वाला देव। 'दिशन्ति मार्जिनी शिखिपत्राणां कक्षायां स हि धारयन्।। (दयो०पृ० २५) अतिसर्जयन्ति अवकाशमिति दिशः दिक् क्रीडायोगाद पद्मासनः समासीन: श्याममूर्ति दिगम्बरः। मृतान्धसोऽपि दिशः, दिश: च ते कुमाराः दिक्कुमाराः' नेमिनाथः शिवोऽथैवं नाम चन्द्रस्य वामन।। (दयो०प० २६) दिक्ककुमारी (स्त्री०) दिशाओं की देवियां, दिक्कुमारीगणस्याग्रे दिगम्बरीभूय (वि०) निर्ग्रन्थ साधु होकर। (वीरो० ११/१४) गच्छतो हस्तनापुरे (वीरो० १५/१२/४) दिगान्ध्य (वि०) दिशाओं में अन्धा हुआ। शिरस्याघात एव दिकक्रीडा (स्त्री०) दिशाओं में क्रीडा, दिशाओं में मनोरंजन स्याद्दिगान्ध्यमिति गच्छतः। (वीरो० ८/१५) दिकपालः (पुं०) यमराज। (जयो०वृ० १२/९४) दिग्जयः (पुं०) दिग्विजय, दिशाओं पर जय। चक्रञ्च कृत्रिम दिकशुद्धिः (स्त्री०) दिशाओं सम्बंधी शुद्धि। . . चक्रे चक्रिणो दिग्जयो जयम्। (जयो०७/४१) दिगना (स्त्री०) दिशा रूपी नायिका। 'दिग एवाङ्गना दिगङ्गना' दिग्दाहः (पुं०) दिशाओं की तरह लाल अग्नि युक्त। (जयो० ६/१२८) दिग्ध (वि०) [दिह्+क्त] लिया हुआ, सना हुआ। दिगनुरागिणि (वि०) स्नेहयुक्त, प्रेमयुक्त (जयो० १०/११६) दिग्धः (पुं०) तेल, मल्हमा .. दिगनूपः (स्त्री०) दिशाओं का राजा। 'दिशामनूपाः स्वामिनो दिग्धवः (पुं०) यमराज, दिक्पाल। (जयो० १२/९४) वासिनो वा उपसमीपमनुवर्तन्त इत्नुनूपः' (जयो०० ५/७) दिग्भ्रमः (पुं०) दिशा भ्रम। दिगन्त (वि०) दिशाओं तक, सर्वत्र, सभी दिशाओं की ओर। दिग्भ्रान्तः (पुं०) दिशाओं से भ्रमित (सम्य० २) दिग्भ्रमिति न (जयो० १/४५) वेत्ति सुमार्ग। (सुद० ९७) दिगन्तर-व्याप्ति (वि०) सभी दिशाओं में व्याप्त होने वाला। | दिग्विजयः (पुं०) सम्पूर्ण विजय। (जयोवृ० ३/५) सभी ___ 'दिगन्तेषु व्याप्नोतीति दिगन्तरव्यापि' (जयो० १९/३३) दिशाओं में जीत। (जयो०० ६/५३) दिगन्तरालः (पुं०) दिशा भाग (सुद० २/१५) दिग्विजयकालः (पुं०) दिशाओं में विजय की ओर प्रयाण दिगन्तव्याप्त (वि०) सभी दिशाओं में फैले हुए। (सुद०८२) | करने का समय। (जयो०वृ० ३/५१) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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