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दाररत्नः
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दासी-पोषक
दाररत्नः (पुं०) स्त्रीरला
दार्षद (वि०) [दृषद्+अण्] प्रस्तर खण्ड से निर्मित। १. दारदं (नपुं०) सिन्दूर।
खनिज सिल पर पिसा हुआ। दारा (स्त्री०) महिला, नायिका। (सुद० १) (जयो० १६/२१, दार्टान्त (वि०) [दृष्टान्त अण्] व्याख्यायित, उदाहरण देकर २१)
समझाया गया। दारिका (स्त्री०) १. पुत्री, सुता, दुहिता, बालिका, बाला, दालीसंयोगिता (वि०) दाल का संयोग। (जयो०० २८/३४) बच्ची, छोटी, लड़की। २. वेश्या।
दावः (पुं०) [दुनाति-दु+ण] अरण्य। दारान्तरायः (पुं०) परस्त्री अपहरण। (जयो० ७/४३) दाव-दहनः (पुं०) अरण्याग्नि। दारित (वि०) [दृ+णिच्+क्त] विभक्त, विभाजित, विदीर्ण, दावाग्निः (स्त्री०) जंगल की आग। खण्डित, चीरा गया।
दावानलः (पुं०) जंगल की आग, वृंहण। (जयो०वृ० १३/५०) दारासारः (पुं०) रानी, श्रेष्ठ नायिका। (जयो० २/४३) दावैकनाथः (नपुं०) वन निवासक। दारिद्रय (वि०) [दरिद्र+ष्यञ्] निर्धनता, गरीबी, अर्थाभाव, दाशः (पुं०) [दशति हिनस्ति मत्स्यान्] मछुआरा, मछली धनाभाव। (सुद० १२०)
पकड़ने वाला। धीवर। (जयो०वृ० १/४०) दारी (स्त्री०) [दृ+णिच+इन+ ङीष्] १. दरार, छिद्र, २. एक दाशग्रामः (पुं०) मछुआरों का गांव। रोग।
दाशकन्दिनी (स्त्री०) माता सत्यवती, व्यास ऋषि की माता। दारु (वि०) चीरने वाला, फाड़ने वाला।
दाशरथ/दाशरथि (पुं०) दशरथ का पुत्र राम या अन्य तीनों दारुः (नपुं०) १. लकड़ी, २. गुटका, ३. चटखनी। (जयो० भाई। १. राम। (समु० ४/१०) (दयो० ९३)
८/१७) काष्ठ (वीरो० ८/२३) देवदारु वृक्ष, कच्चा दाशार्हाः (वि०) [दशाह+अण] दशाह के वंशज, यादवकुल। लोहा।
दाशेरः (पुं०) [दाश+दृक्] मछुआरे का लड़का। १. मछुआरा, दारुकः (पुं०) देवदारु वृक्ष।
२. ऊँट। दारुगर्भी (वि०) काष्ठ पुत्तलिका, लकड़ी की पुतली। दार्शरकः (पुं०) [दाशेर+कन्] मालव देश। दारुदित (वि०) काष्ठ निर्मित। (सुद० १२३)
दाशेरकाः (वि०) मालव देश के रहने वाले। दारुजः (पुं०) ढोल।
दासः (पुं०) [दास्+अण्] भृत्य, नौकर, सेवक (सुद० २/१, दारुण (वि०) कठिन, कठोर, निर्दय, भयंकर। (जयो० १/२६) जयो० १/१०) दासो मूल्य क्रीतः (सुद० ३/४७) दारुणोङ्कित (वि०) भयंकर चेष्टा।
० तुच्छ, हीन। निम्न 'दासस्यास्ति सदाज्ञस्यासौ दारुपात्रं (नपुं०) लकड़ी पात्र, काष्ठपात्र, लकड़ी का बर्तन। स्वामिजनान्वितिरिति चरणेन। (सुद० ३२) दारुयन्त्रं (नपुं०) काष्ठ पुत्तिलिका, लकड़ी का यन्त्र।
० आधीन, वशीभूत (सम्य०७०) (सुद० ४/१४) नार्थस्य दारुविदारक (वि०) लकड़ी भेदक, धुन, एक कीट विशेष, जो दासो यशसश्च भूयात्। (वीरो० १८/३४) इन्द्रियाणं तु यो लकड़ी को भेद डालता है। (जयो०१/७१)
दासः स दासो जगतां भवेत्। (वीरो० ८/३७) दारुसंभरः (पुं०) काष्ठनिचय। (जयो० १३/५१)
दासजनः (पुं०) क्षुद्रजन, सेवक जन। दारुसारः (पुं०) १. चदन, २. लकड़ी का बुरादा।
दासता (वि०) आधीनता। (जयो० २/२०) वीरो०६/२७) दारुसंग्रहः (पुं०) काष्ठोदय (जयो०वृ० १५/६७)
दासपदं (नपुं०) भृत्यस्थान। १. क्षुद्र स्थान। दारुहस्तकः (पुं०) लकड़ी का चम्मच।
दासभावः (पुं०) निम्न भाव, हीन भाव, तुच्छ विचार। दार्दुरः (पुं०) १. दक्षिणावर्ती, २. शंख।
दासमतिः (स्त्री०) तुच्छ बुद्धि। दार्भ (वि०) [दर्भ+अण्] दर्भ से निर्मित।
दासी (स्त्री०) सेविका, परिचारिका, नौकारानी। (सुद० ११६) दार्व (वि०) [दारु+अण्] काष्ठ निर्मित।
(जयो० २५/६५) 'दासकर्मरता क्रीता वा स्वीकृता सती' दाट (नपुं०) न्यायालया
(लाटी संहिता ६/१०५) दास्याऽदर्शि (सुद० ९८) दार्शनिकः (वि०) विचारक, चिन्तनशील, दर्शनशास्त्र का | दासीगृह (नपुं०) भृत्य घर। ज्ञाता।
दासी-पोषक (वि०) दासी द्वारा पाला गया।
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