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दररूपोच्चकुच
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दर्शन
(वीरो० ९/३४) २. पं० दरवारीलाल की विचारधारा, दर्पभृत् (वि०) उत्साह सहित। (जयो० ३/१४) २०वीं शती के उत्तरार्ध में न्याय दर्शन के क्षेत्र में विख्यात। दर्पलोपी (वि०) मदमर्दनकर, अहंकार नष्ट करने वाला। (वीरो० ९/३४)
(जयो० १०/३८) दररूपोच्चकुच (वि०) किंचित् उठे हुए स्तन, उभरे हुए कुच। दर्पवत् (वि०) अहंकार के समान, अहं युक्त। (सुद० १०५) (जयो० १२/११४)
दर्पापकृति (वि०) निर्मद। दर्पस्य मदस्यावृत्तिरभावा। (जयो० दरिद (वि०) [दरिद्रा+क] निर्धन, गरीब। (दयो० ९) अभावग्रस्त वृ० १८/२२) (सम्य० ७७)
दर्पिका (स्त्री०) बिना कारण वस्तु का सेवन। दरिद्रता (वि०) १. गरीबी, निर्धनता। २. व्यर्थता (जयो०७० दर्पित (वि०) [दृप्+क्त] अभिमानी, अहंकारी, घमण्डी।
२/५९) ३. स्वल्पपरिमाणता (वीरो० २/४०) 'दरिद्रता दर्पिन् (वि०) [दृप्+क्त] अभिमानी, अहंकारी। स्त्रीजनमध्यदेशे।
दम्पतिन (नपुं०) मिथुन। (जयो० १६/३७) दरिद्रा (अक०) निर्धन होना, गरीब होना, कष्टग्रस्त होना, दर्भः (पुं०) [दृ+भ] एक प्रकार की घास हरी कुंपल युक्त ___ अभावयुक्त होना।
दूब। कुशेशया (जयो०वृ० ११/५०) दरिद्रित (वि०) खाली, अभाव युक्त, कष्टगत।
दर्भट (नपुं०) [दृभू+अटन्] स्वकीय कक्ष, अपना कक्षा दरिद्रितहस्त (वि०) खाली हाथ वाला। (दयो० २०) दर्भाङ्करः (पुं०) दर्भ की कूपल, दूब का अग्रभाग। दरीमय (वि०) गुहात्मक। (जयो० २४/२०)
दर्भानूपः (पुं०) दर्भ युक्त भूमि। दरैकधाता (वि०) भयानक। (६/१५)
दर्वः (पुं०) [दृ+व] राक्षस, पिशाच। दर्दरः (०) [दृायद्+ अच्] १. पर्वत, पहाड़।
दर्वटः (पुं०) पहरेदार, द्वारपाल। दर्दरीकः (पुं०) [दृ+यङ्+ईकन्] १. मेंढक, २. बादल, मेघ। । दर्वरीकः (पुं०) १. इन्द्र, २. वायु, हवा। ३. वाद्ययन्त्र विशेष।
दर्विका (स्त्री०) [दर्वि+कन्+टाप] कड़छी, चमचा। दर्ददीकं (नपुं०) एव वाद्ययन्त्र विशेष।
दी (स्त्री०) कड़छी, चमचा। दर्दुरः (पुं०) [दृ-यङ्-उरच्] १. मेंढक, २. मेघ, बादल। दर्शः (पुं०) [दृश्+घञ्] दृश्य, दृष्टि, दर्शन, अवलोकन। ___ प्लवङ्ग (वीरो० ४/८) ३. पर्वत, पहाड़।
दर्शकः (पुं०) अलकानगरी का राजा। (समु० ५/२०) ददुरदोषः (पुं०) शब्द कहते हुए वन्दना करना।
दर्शक (वि०) [दृश्+ण्वुल] देखने वाला, अनुष्ठान करने दर्दुः (स्त्री०) दाद, चर्मरोग। (जयो० २/४, कुष्ठविकार (जयो०वृ० वाला। दृष्टुमिच्छद्भिः कतिपयैः (जयो०५/२) (जयो०वृ० १८/२२)
१०/११४) दर्पः (पुं०) [दृप्+घञ्] १. अहंकार, (वीरो० १/३४) दो दर्शकः (पुं०) १. प्रदर्शन, २. द्वारपाला
वलकृत। घमण्ड, अभिमान धृष्टता। (जयो० ३/१०५) दर्शन-संचयः (पुं०) दर्शक समूह। (सुद० १०७) दो निष्कारणोऽनादरः गर्व, दम्भ, ०रोष, विक्षोभ। २. | दर्शनं (नपुं०) [दृश्+ल्युट्] १. देखना, अवलोकन करना गर्मी, ३. कस्तूरी।
(जयो० ३/३४) निरीक्षण करना। २. जानना, चिंतन दर्पकः (पुं०) [दृप्+णिच्+ल्युट] मदन, कामदेव। (जयो० करना, समझना। ३. नयन, अक्षि, आंख। ४. निरीक्षण, ३/२३, ५/२४)
परीक्षण। ५. सम्मुखीकरण, सम्मुख होना। ६. विवेक, दर्पकरः (वि०) अहंकारी, अभिमानी। (सुद० १३१)
सूझ-बूझ। ७. निर्णय, अवबोध। दर्पकारी (वि०) अहंकारी, अभिमानी।
० तत्त्वश्रद्धान, विश्वास। (सम्य० ५) दृश्यन्ते-श्रद्धीयन्ते दर्पण: (पुं०) शीशा, आयना। (सम्य० १५३) मुकुर, आदर्श। पदार्था अनेना स्मादस्मिन् वेति दर्शनम्। __ (जयो० ३/७५) सुद० १२५
० दृष्टिा दर्शनम् (सुद० ९८) दर्पणं (नपुं०) १. अक्षि, २. जलन।
० तत्त्वश्रद्धान रूप आत्मपरिणाम (सम्य० १२४) दर्पणखण्डः (पुं०) काचांश। (जयो०वृ० १५/२६)
० दर्शन विशोधक प्रवृत्ति। दर्पणतलं (नपुं०) शीशा का भाग। (सम्य० १५३)
० तत्त्वार्थ श्रद्धान।
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