SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वच्गन्धः ४६० थः (पुं०) तवर्ग का द्वितीय वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है। थं (पुं०) १. क्षण, २. मंगल, ३. भय। थः (पुं०) १. पर्वत, गिरि, २. भक्षण ३. रोग विशेष, ४, त्रास, भय। त्वच्गन्धः (पुं०) सन्तरा। त्वच-छेदः (पुं०) चर्मछिद्र, घाव, फोड़ा। त्वजं (नपुं०) रुधिर, रक्त। त्वचतरङ्गकः (पुं०) झुर्रा, शरीर के चर्म में सिकुड़न। त्व त्रं (नपुं०) कोढ़, चर्मरोग। त्वच्पारुष्यं (पुं०) चर्म खुश्की, चमड़े में रुखापन। त्वचपुष्पः (पुं०) रोमाञ्च, हर्ष। त्वच्सारः (पुं०) बांस। त्वचांकुरः (पुं०) रोमांच, हर्ष। त्वचेन्द्रियः (पुं०) स्पर्शेन्द्रिय। त्वद्-आप। मध्यम पुरुष के लिए इसका प्रयोग होता है। पयोनिधिस्त्वद्हदि वाप्यवारपारोऽतलस्पर्शितयाऽत्युदारः। (सुद० २/१६) त्वत्ता (वि०) आपके समान, त्वद्रूपता। त्वत्ता च मत्ता पुनरत्र ताभ्यामागत्य हे देव: सुदेवताभ्याम्। (जयो० २३/७४) त्वदीय (वि०) [युष्मद् छ त्वद् आदेश:] तेरा, तुम्हारा, आपका। (सुद० २/३४) त्वद्विध (वि०) तेरी तरह, आपके समान। त्वर (अक०) शीघ्रता करना, जल्दी करना, स्फूर्ति रखना। त्वरा (स्त्री०) [त्वर्+अ+टाप्] शीघ्रता, क्षिप्रता, वेग। त्वरिः (स्त्री०) वेग, शीघ्रता, स्फूर्ति युक्त। त्वरित (वि०) [त्वर्+क्त] गतिवान्, वेगयुक्त, शीघ्रगामी, स्फूर्तिमान। त्वरितं (अव्य०) शीघ्र, तुरन्त, वेग से, स्फूर्ति से। (जयो०वृ० १३/११)'आवजताऽऽव्रजत त्वरितमितः' (सुद० १०४) त्वरितं स्म चरन्ति (जयो०वृ० ३/११) त्वरितमेव (अव्य०) शीघ्रता से ही। (जयो० १२/६६) त्वष्ट्र (पुं०) [त्वक्ष्+तृच्] बढ़ई, कारीगर, निर्माता। त्वादृश् (वि०) आपके समान। त्विट् (स्त्री०) कान्ति, तेज, यश, प्रभा। (दयो० १/१०) 'कन्दुत्वमिन्दुत्विडनन्यचारैः' (जयो०१/१०) त्विड् (स्त्री०) प्रकाश, तेज, यश, प्रभा। त्विष् (अक०) चमकना, आभावान् होना, दमकना, स्फुरित होना। विष (स्त्री०) १. प्रभा, यश, कीर्ति, कान्ति, दीप्ति। २. इच्छा, अभिलाषा। त्विषिः (स्त्री०) प्रकाश किरण। त्वरू: (पुं०) रेंगने वाला जन्तु। थुड् (सक०) ढकना, पर्दा डालना, आच्छादित करना, छिपाना, गुप्त रखना। थुकृत् (वि०) वमथु, फूत्कार, थूक दिया। (जयो० १५/१/४) सूंड की फूत्कार से निकले जलकण। (जयो० ६/५३) कालेन तद्बीजभुजा तु भानि भवन्तु अस्थीन्यथ थूत्कृतानि। थुडनं (नपुं०) [थुड्। ल्युट्] आच्छादन करना, ढकना, लपेटना। थुत्कारः (पुं०) [थुत्+कृ+अण्] फूत्कार ध्वनि, थूकने का स्वर। थूक (दे) धुंक। (हि० ४३) थूत्कः (पुं०) थूक। (वीरो०६/४) थूकधारः (पुं०) लार, लाल। (जयो०३० २७/३५) थूकर (वि०) यूंकने वाला। थूकानुयोगः (पुं०) यूंक का संयोग। थूत्कानुयोगेन यतोऽत्र जन्तूत्पत्ति सुधीनां धिषणा श्रयन्तु। (सुद० १३०) थूत्कारः (पुं०) वमथु, फूत्कार, हाथी की सूंड से निकले शब्द। थूत्कृत् (वि०) फूत्कार करने वाला। थूत्करोति थूकता है। (वीरो० ४/१४) थूत्कार-ब्याजः (पुं०) फूत्कार के छल से। (जयो०वृ० १३/१००) थू (सक०) चोट पहुंचाना, नष्ट देना। थैयै (अव्य०) अनुकरणात्मक ध्वनि। दः (पुं०) तवर्ग का तृतीय वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है। दकार, दकारमेव, 'द' वर्ण वर्णनीय (जयोवृ० १/२९) द (वि०) देने वाला, नाश करने वाला। दंशस्पृङ् (वि०) मर्म स्पर्शकर (जयो० १६/१७) दः (पुं०) उपहार, दान, प्राभृत। पर्वत। २. दः शुद्धि भावो वर्वते (जयो० १२/४८) शुद्धि-'दस्य शुद्धताया व: कुम्भोऽर्थान्निधिदेवो बभूव। (जयो०वृ० १/३७) दः-हितैषी (जयो० १/२९) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy