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त्रुटित:
त्रुटितः (पुं०) एक प्रमाण विशेष, चौरासी लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित |
त्रुटितसूत्र ( नपुं० ) टूटा हुआ धाणा । (जयो०वृ० १७/४७) त्रुटिस्मरणं (नपुं०) गलत स्मरण (जयो०वृ० १७ / ४७ ) त्रुटिस्मृत्य ( वि०) गलत स्मरण करने वाला। (जयो० २० / ८६ ) त्रुटिताङ्गः (पुं०) एक प्रमाण विशेष । चौरासी लाख महाकुमुद । त्रुटिरेणु (स्त्री०) एक प्रमाण विशेष । आठ संज्ञासंज्ञों का एक त्रुटिरेणु |
त्रेता (स्त्री० ) [ त्रीन् भदान् एति प्राप्नोति] तिकड़ी, तीन का समाहार। त्रेतायुग, तीसरा काल । एवं पुरुर्मानवधर्ममाह यत्रापि तैः संकलितोऽवगाहः । त्रेतेतिरूपेण विनिर्जगाम कालः पुनर्द्वापर आजगामा। (वीरो० १८ / ४३ ) त्रेता बभूव risन्तु कालो मनागून गुणैकतन्तु । यस्मिन् शलाका: पुरुष: प्रभूया बभुश्चदुर्मार्गकृताभ्यसूयाः ।। (वीरो० १८/४४) त्रेता पुन: काल उपाजगाम यस्मिन् मनः संकुचितं वदामः । निवासिनामाप शनैस्ततस्तु सङ्कोचमुर्वीतनयाख्यवस्तु ।। (वीरो० १८ / १०) द्वितीय युग की समाप्ति वाद त्रेतायुग/तीसरा काल का प्रारम्भ हुआ, जिसमें यहां के रहने वाले लोगों का मन धीरे-धीरे संकुचित होने लगा। इसके फलस्वरूप पुत्री के पुत्र कल्पवृक्षों ने भी फल देने में संकोच करना प्रारम्भ कर दिया।
त्रेतायुग: (पुं०) तीसरा युग (वीरो० १८ / १० )
तो : (पुं०) एक प्रमाण विशेष। जिस राशि में चार का भाग
देने पर तीन शेष रहे वह त्रेता या त्रेतोज कहलाता है। त्रेधा (अव्य० ) (त्रि + एधाच्] तीन प्रकार से तीन तरह से । त्रै ( सक०) बचाना, रक्षा करना, सुरक्षा प्रदान करना, शरण देना।
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त्रैकालिक (वि० ) [ त्रिकाल ठञ्] सदा, हमेशा, तीनों काल संबंधी। (वीरो० १३/२२) त्रैकालिकायाब्धितुजे सुसजं सतां जरामृत्युजनुर्विपत्रम् । (वीरो० १३ / २२ ) • त्रिकालवर्ती (वीरो० २०/७)
त्रैकाल्यं (नपुं० ) [ त्रिकाल + ठक् ] तीनकाल- भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल ।
वैगुणिक ( वि० ) [ त्रिगुण+ ठक् ] तिगुना, तिहरा । त्रैगुण्यं (नपुं० ) [ त्रिगुण+ ष्यञ् ] तिगुनापन, तीन गुणों का समाहारा । सत्त्व, रज और तमस् का संयोग । त्रैपुर : (पुं० ) [ त्रिपुर+अण्] एक देश विशेष |
त्वक्पानकः (पुं०) त्वचा जल । त्वक्स्पर्श (पुं०) चर्म स्पर्श ।
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त्रैमातुरः (पुं० ) [ त्रिमातृ+अण्] लक्ष्मण । त्रैमासिक (वि०) [त्रिमास्+ठञ्] तीन माह पुराना, तिमाही । त्रैराशिक (नपुं०) तीन राशियों की रीति । त्रैलोक्यं (नपुं० ) [ त्रिलोकी+ ष्यञ् ] तीन लोक सम्बंधी, तीनों लोकों का संयोग (दयो० १/३)
त्रैलोक्यगुरु ( पुं०) तीनों लोकों के गुरु । त्रैलोक्यवासिसत्त्वेभ्यों
गुणन्ति शास्त्रार्थमिति त्रैलोक्यगुरवः ।
त्रैलोक्यधी (स्त्री०) तीन लोग सम्बंधी बुद्धि) (वीरो० १४ / २६ ) त्रैलोक्यनाथ: (पुं०) तीन लोकों के अधिपति । त्रैलोक्यपतिः (पुं०) तीन लोकों के नायक । त्रैलोक्यसार : ( पुं०) त्रिलोकसार, नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्ती द्वारा रचित तीन लोक के विवेचन सम्बंधी शास्त्र (जयो० १९ / ३१)
त्रैवर्गिक (वि०) त्रिवर्ग सम्बंधी धर्म, अर्थ और काम सम्बंधी ।
त्रैवर्गिक कार्यक्रम, संकोच्यैकान्तसुस्थले। (हित सं० ५७ ) त्रैवर्णिक (वि० ) [ त्रिवर्ग+ठञ्] तीन वर्ण से सम्बन्धित ।
विक्रम (वि० ) [ त्रिविक्रम+अण्] विष्णु ।
त्रैविद्यं (नपुं० ) [ त्रिविद्या+अण्] तीन शास्त्र, तीन वेद । त्रैविद्य: (पुं०) तीनवेद में निपुण ।
त्रैविप (पुं०) देव, सुर ।
त्रोटकं (नपुं० [ त्रुट् + णिच् + ण्वुल्] १. एक छन्द विशेष, २. नाटक का एक भेद ।
त्रोटि : (स्त्री० ) [ त्रुट् +इ] चोंच, चंचु ।
त्रोटिमत् (पुं०) १. कटफल, कायफल। २. क्षुद्रमछलियां । त्रोटि : स्वीचचुमीन्कटफले इति विश्वलोचनः । (जयो० २१ / २६)
त्रोत्रं (नपुं० ) [ त्रै+ उत्र] पतली छड़ी, वेंत, जिससे पशुओं को हांका जाता है।
त्वच्कण्डुरः
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त्वक्ष् ( सक०) कतरना, उतारना, छीलना। वगाद-त्वच् से (पंचमी एक सुद० २ / ४६ ) त्वङ्कारः (पुं० ) [ त्वम् +कृ+अण्] निरादर सूचक 'तू' शब्द बोध |
त्वच (स्त्री० ) [ त्वच् + क्विप्] १. चमड़ी, खाल, चर्म (समु०
१/१७) २. छाल, वल्कल। त्वच्कण्डुरः (पुं०) फुंसी, फोड़ा।