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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रपीयस् ४५५ त्रायस्त्रिंशः पीयस् (वि०) अधिक संतुष्ठ। त्रसानां तनुर्मासनाम्ना प्रसिद्धा युदुक्तिश्च विज्ञेषु नित्यं त्रपु (नपुं०) टीन, रांगा। निषिद्धा। त्रपुलम् (नपुं०) टीन, रांगा। सुशाकेषु सत्स्वप्यहो तं जिघांसुर्धिगेनं मनुष्यं परासृक् त्रप्स्यं (नपुं०) मट्ठा, छांछ, विलोडित दहि। पिपासुम्।। (जयो० २/१२८) त्रसानां चरजीवानाम्। त्रय (वि०) [त्रि+अयच्] तेहरा, तिगुना, तीन प्रकार का। (जयो०१० २/१२८) (सम्य० ११६) त्रये (सम्य० १३१) वसनामः (पुं०) जिससे दो इन्द्रियादि का जन्म हो। 'यद्याद् त्रयकर (वि०) तीन करण। द्वीन्द्रियादिषु जन्म तत् त्रसनाम' (त०वा०८/११) 'जस्स त्रकर्मन् (वि०) त्रिविध कर्म। कम्मस्सुदएण जीवाणं तसत्तं होदि तस्स कम्मस्स तसत्ति त्रयखण्ड (वि०) तीन खण्ड वाला। सण्णा' या-जस्स कम्मस्सुदएणं जीवाणं संचरणासंचरणभावो त्रयचर (वि०) तिर्यक् चर, तिरछा चलने वाला। होदि तं कम्मं तसणाम' (धव० १३/३६५) त्रयदोष (वि०) तीन दोष वाला। वसनाली (स्त्री०) क्षेत्र प्रमाण, वृक्ष के मध्यगत सार के समान त्रयधर्म (वि०) त्रिविध धर्म रत्नत्रयधर्म, सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान लोक के बहुमध्य भाग में स्थित एक राजु लम्बे-चौड़े और सम्यक्चारित्र धर्म। और कुछ कम तेरह राजु ऊँचे क्षेत्र को प्रसनाली कहते त्रयपाद (वि०) तीन चरण। त्रयभव (वि०) तीन भव। (मुनि० ७) वसरः (पुं०) ढरकी, जुलाहे का एक उपकरण जिसमें धागों त्रयमार्ग (वि०) तीन मार्ग, त्रिपथ्, तिराहा। की नली रखकर बुनते हैं। त्रयमेककालमत (वि०) त्रिरूपता। (वीरो० १९/१२) . त्रसरेणु (पुं०) अति सूक्ष्म रजांश, आठ परमाणु युक्त (वीरो० जयरत्न (वि०) तीन रत्न। २०/१०) त्रययोग (वि०) तीन योग। वसुर (वि०) [त्रस्+उरच्] भीरु, कांपने वाला। त्रयस् (पुं०) तेइसवां। जयविंशति (वि०) तैंतीस। त्रस्त (भूक कृ०) [त्रस्। क्त] भयभीत, बाधायुक्त, भीरु, जयषष्ठि (स्त्री०) तिरेसठ। डरा हुआ, त्रास (जयो० ८/६) 'मुनेरथावस्तविजन्तुमात्रम्' वयसप्ततिः (स्त्री०) तिहत्तर। (जयो० २७/४४) त्रयात्मक (वि०) उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप त्रिविध युक्त त्रस्तहृदय (वि०) भयभीत हृदय वाला। (जयो० २८/३३) (वीरो० १९/३) तीन प्रकार। त्रस्ति (वि०) वेपथ, कुमार्ग (वीरो० १८/५५) (जयो० २/१५७) त्रयी (स्त्री०) [त्रय्+ङीप्] तीनों का समावेश। १. देवत्रयी। त्रस्तिमित (वि०) त्रास युक्त, डरा हुआ। (वीरो० १८/५५) (जयो० ११/२६) जन्म, अरण्य और मरण त्रयी। दर्शन, त्राण (भू०क०कृ०) [त्रै+क्त तस्य नत्वम्] रक्षा किया गया, ज्ञान और चारित्र त्रयी। मोह राग और द्वेषत्रयो। वीरोदय, बचाया गया, आरक्षित, सुरक्षित। जयोदय और दयोदय त्रयी। त्राणं (नपुं०) रक्षा, प्रतिरक्षा, बचाना, सुरक्षित करना, शरण, • त्रिविध विद्या। (वीरो०पृ० ३/१४) सहारा, आश्रय। (सुद० ७९) त्रयीधर्म (वि०) तीन प्रकार का धर्म। ० अनर्थप्रतिहनन्, विघात हनन। त्रयीधर (वि०) त्रयी विद्याधारक, श्रेष्ठबुद्धिधारक। (जयो० | त्राता (वि०) [त्रै+क्त] रक्षक। (दयो० ८६) रक्षित, बचाया १२/२९) 'गुणिनो गुणिने त्रयीधराय' (जयो० १२/२९) गया, सुरक्षित। ___ 'गुणिनो गुणिने त्रयीधराय' (जयो० १२/२९) त्रात्री (वि०) बचाने वाला। (सुद० ९७) त्रयोदशसर्गः (पुं०) तेरहवां सर्ग। त्रापुष (वि०) रागे से निर्मित। वस् (अक०) कांपना, हिलना, भयभीत होना, डरना, विचलित त्रायते-बचाता है, ग्रहण करता है, शरण देता है। (दयो० होना, त्रस्त होना। त्रसति, त्रस्यति, त्रस्त। २७/४४) त्रस (वि०) [त्रस्क ] चर, जंगमा त्रय जीव, दो इन्द्रिय से । त्रायस्त्रिंशः (पुं०) एक देव जाति समूह, तैतीस संख्या वाले लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव। देव, इन्द्रमंत्री या पुरोहित सदृश देव। 'त्रायस्त्रिंशा For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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