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त्रास
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त्रिपञ्च
मंत्रि-पुरोहितस्थानीयाः' (त०वा० ४/४४) मंत्रि- | त्रिगुणीकृत (वि०) तिगुनाकार, तीन गुना करने वाला। (जयो० पुरोहितस्थानीयास्त्रायस्त्रिंशा:' (तन्वा०४/४) त्रयस्त्रिंशति १२/४७) जाता त्रायस्त्रिंशा।
त्रिगुप्तिः (स्त्री०) तीन गुप्ति, मन, वचन और काय। त्रास (वि०) [त्रस्+घञ्] चर, गमनशील, भयभीत। त्रिचक्षुस् (पुं०) शिव। त्रासः (पुं०) डरा, भीरु, भयाक्रान्त।
त्रिचतुर (वि०) तीन और चार युक्त। त्रासवशः (पुं०) भय के वशीभूत। (जयो० १/३३)
त्रिचत्वारिंशत (स्त्री०) तैंतालीस (४३) एक संख्या। त्रासन (वि०) डरावना, भयानक।
त्रिजगत् (नपुं०) तीन लोक, त्रिभुवन। (समु० २/४) त्रासनी (स्त्री०) एक प्रकार की मुद्रा।
त्रिजगती (स्त्री०) तीन लोक। त्रासित (वि०) [त्रस्+णिच्+क्त] आतंकित, भयभीत। त्रिजटः (पुं०) शिव। त्राहि (वि०) बाधाएं-त्राहि मां त्राहि। (दयो० १२)
त्रिजटा (स्त्री०) एक राक्षसी। त्रि (पुं०नपुं०स्त्री०) तीन, त्रयः (पुं०) (मुनि० २८) त्रिजीका (स्त्री०) त्रिज्या, अर्धव्यास। त्रीणि (नपुं०) तिस्रः (स्त्री०)।
त्रिज्या (स्त्री०) अर्धव्यासा त्रिकं (नपुं०) तीन ओर से मार्ग, तीराहा। 'त्रिकोणं स्थानं त्रिकं त्रिणव (वि०) तिगुना। यत्र रथ्यात्रय मिलति'
त्रितक्षं (नपुं०) तीन बढ़ई का समूह। त्रिककुदः (पुं०) त्रिकूट वाला पर्वत/पहाड़।
त्रितक्षी (वि०) तीन बढ़ईयों का समूह। त्रिकर्मन् (नपुं०) तीन कर्म।
त्रितय (वि०) लोकत्रय, तीन लोक सम्बंधी। (जयो० १०/७२, त्रिकायः (पुं०) बुद्ध, तथागत।
१८/५) १. तीन वार (वीरो०१/१, सम्य० ५९) त्रिकालं (नपुं०) सर्वदा, सदैव, भूत, भविष्यत् और वर्तमानकाल।
तीन-तीन आवर्त- (हित० ५७) (वीरो० १/१२)
त्रितय-प्रयोगः (पुं०) अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य प्रयोग त्रिकालयोगः (पुं०) तीनों कालों का संयोग। (सुद० ११८) (वीरो० १९/६) वर्षा, शीत एवं उष्ण समय में योग प्रतिमा।
त्रिदण्डं (नपुं०) मन, वचन और काय योग। (भक्ति० १४) त्रिक्रमणं (नपुं०) तीन प्रदक्षिणा। 'पुनरेत्य च कुण्डिनं पुराधिपुरं वसन्ति सानो शिखरे प्रचण्डांशु सन्मुखाः संयमितत्रिदण्डाः। त्रिक्रमणेन ते सुराः' (वीरो० ७/१२)
(भक्ति० १४) त्रिकूटः (पुं०) तीन शिखर, तीन पर्वत चोटी।
त्रिदण्डिन् (पुं०) तीन योग को निग्रह करने वाला संयती। त्रिकूर्चक (नपुं०) तीन फलक का चाकू।
त्रिदश (पुं०) देव, अमर। १. तेरह, २. तैंतीस। त्रिकोण (वि०) त्रिभुजाकार।
त्रिदशा (पुं०) तीस। त्रिखट्वं (नपुं०) तीन खाटों का समूह।
त्रिदशेश्वरः (पुं०) इन्द्र। जानीहि योगं त्रिदशेश्वरादि पदप्रदं तं त्रिखट्वी (स्त्री०) तीन खण्ड।
जिन इत्यवदीत। (समु०८/२७) त्रिखण्डाधिपः (पुं०) तीन खण्ड का राजा। (वीरो० ११/१९) त्रिदिनं (नपुं०) तीन दिन। त्रिखण्डेश्वरः (वि०) जरासन्धा (वीरो० १८/४)
त्रिदिवं (नपुं०) सुरालय, इन्द्रधाम। (वीरो० २/१०) त्रिगजद्विजेता (वि०) कामदेव, (वीरो० १२/१६) तीनों जगत् त्रिदोषः (पुं०) वात, पित्त एवं कफ दोष। (दयो० ११६) का विजेता।
त्रिधा (वि०) तीन प्रकार, त्रिविधा (जयो० २४/६९) त्रिगणः (पुं०) तीन गण, तीन का समह धर्म, अर्थ और काम। त्रिधारा (स्त्री०) गंगा। त्रिगन (वि०) तिगुना।
त्रिनयनः (पुं०) शिव। त्रिगर्ता (वि.) कामासक्त स्त्री. स्वैरिणी. स्वेच्छाचारिणी। त्रिमयः (पुं०) तीन नय, तीन प्रकार के नय। त्रिगुण (वि०) तीन गुण, तीन बार आवर्तक।
त्रिनवत (वि०) तिरानवें। विगुणित (वि०) तीन से गुणा होने वाला, अधो, मध्य और विनवति (स्त्री०) तिरानवें।
उर्ध्व भेद के रूप में विभक्त। (जयो० २०/४१) त्रिपञ्च (वि०) पन्द्रह।
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