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तृष्
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तेवन्
तृष (स्त्री०) वाञ्छा, तृष्णा, तृषा प्यास लालसा, उत्सुकता, तेजकाय (नपुं०) अग्निकाय जीव, स्थावर जीवों का एक भेद
अभिलाषा। (जयो० २२/५) तृषः अभिष्वङ्गलक्षणा याः जो चैतन्यभाव से युक्त अनेक है और पृथक्-पृथक् भी है। सन्निपीय बहुपीनमनास्संस्तावतैव तृष आप्य च नाशम्। तेजकायिकः (पुं०) अग्निकाय जीव। तेज उष्णलक्षणं प्रतीतम्, (समु०५/२९)
तदेव कायः शरीरं येषां ते तेजः काया। तृषहारिणी (वि०) पिपासापहारका समस्तप्रकाराभिला षापरिपूरक। तेजजीवः (पुं०) अग्नि शरीर का धारक। (जयो० २२/६०)
तेजन (नपुं०) [तिज्+ल्युट] तपन, जाना, चमकना, प्रदीप्त तृषा (स्त्री०) प्यास, वाञ्छा, लालसा, तृष्णा। पिपासा च तृषा, करना, सरकंडा, नरकुल, बाण की नोक, शस्त्र की धार।
प्यास की बाधा होना। असातावेदनीय-तीव्र-तीव्रतर-मन्द- तेज पुञ्जमय (वि०) आत्मबल युक्त। (जयो० १/१३) मन्दतर-पीडया समुपजाता तृषा। (निय००६)
तेजयितुं (तेजय्+तुमुन्) संवर्धन करने के लिए (जयो० तृषाकारी (वि०) पिपासाकारक, अभिलाषी (जयो० १२/१२८) ११/६२) तृषातुरः (पुं०) प्यास से व्याकुल। (समु० ७/१०)
तेजस् (नपुं०) प्रभा, (समु० ५/१०) 'येन तस्य तृषापहारी (वि०) पिपासापहारक, तृष्णा शान्त करने वाला, हृदयाब्जविकाशस्तेजसेव समभूद्रविभास:। (समु०५/१०) ___प्यास बुझाने वाला। (जयोवृ० २२/६०)
१. प्रताप-दृष्टिरभ्युदयभाजि जनानां तेजसाञ्च निलये तृषापरीसहजयः (पुं०) प्यास की बाधा का सहन करना।
भुवनानाम्' (जयो०५/२८) तृषाहम् (नपुं०) जल, वारि, पानी।
० प्रभाव-तनुतेऽनुतेजसा स्वां कलिङ्गराजाभिधां सुलभाम्। तृषि (स्त्री०) पिपासा, प्यास। (जयो० १२/२)
(जयो० ६/२३) (वीरो०६/२३) तृषित (भू०क०कृ०) [तृष्+क्त] प्यासा, अभिलाषा युक्त, | तेजस्तर (वि०) तेज लक्षण वाला। इच्छा करने वाला, इच्छुक।
तेजस्वत् (वि०) [तेजस्। अतुप] चमकीला, प्रभावान, तृष्णज् (वि०) [तृष्+नजिङ्] पिपासु, लालची, लोभी, कान्तियुक्त, तेज, तीखा, पैना। आसक्तिजन्य।
तेजस्विन् (वि०) [तेजस्+विनि] १. उज्ज्वल, प्रभायुक्त, तृष्णा (स्त्री०) [तृष्+न+टाप्] प्यास, तृषा, पिपासा, इच्छा, चमकदार, बलवान्, शौर्ययुक्त, प्रसिद्ध, विख्यात, २.
वाञ्छा, अभिलाषा। (जयो० ६/२१) वाञ्छति वसनं स च तपन, तेज, सूर्य (जयो०वृ० ३/१३, ३/१०२) ३. पुनरशनं कस्य न धनतृष्णा वा। (सुद० ७४)
विधिसम्पन्न, प्रचण्ड, प्रखर। तृष्णाक्षयः (पुं०) तृषा का नाश, संतोष, शान्ति।
तेजित (वि०) [तिज्+णिच्+क्त] उत्तेजित, उद्दीप्त, प्रदीप्त, तृष्णाजन्य (वि०) तृषा युक्त।
प्रभावान्। तृष्णातुरः (पुं०) पिपासा से पीड़ित। (वीरो० ४/४८) तेजोजीवः (पुं०) अग्नि शरीर का धारक जीव। तृष्णालु (वि०) [तृष्णा+आलु] अधिक प्यास, प्यास से व्याकुल। तेजोजराशिः (स्त्री०) एक गणतीय प्रमाण। जिस राशि में चार तृष्णाभिवृद्धिः (वि०) धनाभिलाषा, प्यास। (वीरो० १२/४) का भाग देने पर तीन शेष रहे वह तेजोजराशि है। तृष्णावान् (वि०) पिपासासहित, अभिलाषावान्। (जयो० २२/७) | तेजोमय (वि०) [तेजस्+मयट्] उज्ज्वल, कान्तिमय, प्रभावान्। तृष्णावती (वि०) पिपासा जनक, तृषा जन्य। (जयो० १६/१३) तेजोलेश्या (स्त्री०) सर्वधर्म समदर्शित्व भाव। तृह (सक०) मारना, घायल करना, क्षति पहुंचाना, विनाश करना। 'दृढमित्रता-सानुक्रोशत्व सत्यवाद-दान-शीलात्मीयतु (सक०) पार करना, तैरना, बहना।
कार्य-समपादनपटु-विज्ञान योग-सर्वधर्म-समदर्शनादि तेइन्द्रियः (नपुं०) तीन इन्द्रिय जीव। (वीरो० १९/३६)
तेजोलेश्यालक्षणम्। (त०वा० ४/२२) कान्तियुक्त लेश्या। तेजः (पुं०) उष्णप्रभा, अग्नि ज्वाला। मूलोष्णवती प्रभा तेजः। | तेमः (पुं०) [तिम्+घञ्] आई, गीला, तर।
इतस्ततो विक्षिप्तं जलादिसिक्त। वा प्रचुरभस्मप्राप्तं वा | तेमनं (नपुं०) [तिम्ल्यु ट्] १. गीला करना, तर करना, तेल मनाक् तेजोमात्रं तेजः कथ्यते।
युक्त आहार। २. शाक विशेष। (जयो० १२/१६) तैक्षण्यकरणवृत्तिः (स्त्री०) उत्तेजना, उदबेलना। (जयो०१० | तेवनं (नपुं०) [तेव्+ ल्युट्] मनोरंजन, आमोद-प्रमोद, क्रीड़ा, १५/५२)
अनुरंजन।
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