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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृष् ४५२ तेवन् तृष (स्त्री०) वाञ्छा, तृष्णा, तृषा प्यास लालसा, उत्सुकता, तेजकाय (नपुं०) अग्निकाय जीव, स्थावर जीवों का एक भेद अभिलाषा। (जयो० २२/५) तृषः अभिष्वङ्गलक्षणा याः जो चैतन्यभाव से युक्त अनेक है और पृथक्-पृथक् भी है। सन्निपीय बहुपीनमनास्संस्तावतैव तृष आप्य च नाशम्। तेजकायिकः (पुं०) अग्निकाय जीव। तेज उष्णलक्षणं प्रतीतम्, (समु०५/२९) तदेव कायः शरीरं येषां ते तेजः काया। तृषहारिणी (वि०) पिपासापहारका समस्तप्रकाराभिला षापरिपूरक। तेजजीवः (पुं०) अग्नि शरीर का धारक। (जयो० २२/६०) तेजन (नपुं०) [तिज्+ल्युट] तपन, जाना, चमकना, प्रदीप्त तृषा (स्त्री०) प्यास, वाञ्छा, लालसा, तृष्णा। पिपासा च तृषा, करना, सरकंडा, नरकुल, बाण की नोक, शस्त्र की धार। प्यास की बाधा होना। असातावेदनीय-तीव्र-तीव्रतर-मन्द- तेज पुञ्जमय (वि०) आत्मबल युक्त। (जयो० १/१३) मन्दतर-पीडया समुपजाता तृषा। (निय००६) तेजयितुं (तेजय्+तुमुन्) संवर्धन करने के लिए (जयो० तृषाकारी (वि०) पिपासाकारक, अभिलाषी (जयो० १२/१२८) ११/६२) तृषातुरः (पुं०) प्यास से व्याकुल। (समु० ७/१०) तेजस् (नपुं०) प्रभा, (समु० ५/१०) 'येन तस्य तृषापहारी (वि०) पिपासापहारक, तृष्णा शान्त करने वाला, हृदयाब्जविकाशस्तेजसेव समभूद्रविभास:। (समु०५/१०) ___प्यास बुझाने वाला। (जयोवृ० २२/६०) १. प्रताप-दृष्टिरभ्युदयभाजि जनानां तेजसाञ्च निलये तृषापरीसहजयः (पुं०) प्यास की बाधा का सहन करना। भुवनानाम्' (जयो०५/२८) तृषाहम् (नपुं०) जल, वारि, पानी। ० प्रभाव-तनुतेऽनुतेजसा स्वां कलिङ्गराजाभिधां सुलभाम्। तृषि (स्त्री०) पिपासा, प्यास। (जयो० १२/२) (जयो० ६/२३) (वीरो०६/२३) तृषित (भू०क०कृ०) [तृष्+क्त] प्यासा, अभिलाषा युक्त, | तेजस्तर (वि०) तेज लक्षण वाला। इच्छा करने वाला, इच्छुक। तेजस्वत् (वि०) [तेजस्। अतुप] चमकीला, प्रभावान, तृष्णज् (वि०) [तृष्+नजिङ्] पिपासु, लालची, लोभी, कान्तियुक्त, तेज, तीखा, पैना। आसक्तिजन्य। तेजस्विन् (वि०) [तेजस्+विनि] १. उज्ज्वल, प्रभायुक्त, तृष्णा (स्त्री०) [तृष्+न+टाप्] प्यास, तृषा, पिपासा, इच्छा, चमकदार, बलवान्, शौर्ययुक्त, प्रसिद्ध, विख्यात, २. वाञ्छा, अभिलाषा। (जयो० ६/२१) वाञ्छति वसनं स च तपन, तेज, सूर्य (जयो०वृ० ३/१३, ३/१०२) ३. पुनरशनं कस्य न धनतृष्णा वा। (सुद० ७४) विधिसम्पन्न, प्रचण्ड, प्रखर। तृष्णाक्षयः (पुं०) तृषा का नाश, संतोष, शान्ति। तेजित (वि०) [तिज्+णिच्+क्त] उत्तेजित, उद्दीप्त, प्रदीप्त, तृष्णाजन्य (वि०) तृषा युक्त। प्रभावान्। तृष्णातुरः (पुं०) पिपासा से पीड़ित। (वीरो० ४/४८) तेजोजीवः (पुं०) अग्नि शरीर का धारक जीव। तृष्णालु (वि०) [तृष्णा+आलु] अधिक प्यास, प्यास से व्याकुल। तेजोजराशिः (स्त्री०) एक गणतीय प्रमाण। जिस राशि में चार तृष्णाभिवृद्धिः (वि०) धनाभिलाषा, प्यास। (वीरो० १२/४) का भाग देने पर तीन शेष रहे वह तेजोजराशि है। तृष्णावान् (वि०) पिपासासहित, अभिलाषावान्। (जयो० २२/७) | तेजोमय (वि०) [तेजस्+मयट्] उज्ज्वल, कान्तिमय, प्रभावान्। तृष्णावती (वि०) पिपासा जनक, तृषा जन्य। (जयो० १६/१३) तेजोलेश्या (स्त्री०) सर्वधर्म समदर्शित्व भाव। तृह (सक०) मारना, घायल करना, क्षति पहुंचाना, विनाश करना। 'दृढमित्रता-सानुक्रोशत्व सत्यवाद-दान-शीलात्मीयतु (सक०) पार करना, तैरना, बहना। कार्य-समपादनपटु-विज्ञान योग-सर्वधर्म-समदर्शनादि तेइन्द्रियः (नपुं०) तीन इन्द्रिय जीव। (वीरो० १९/३६) तेजोलेश्यालक्षणम्। (त०वा० ४/२२) कान्तियुक्त लेश्या। तेजः (पुं०) उष्णप्रभा, अग्नि ज्वाला। मूलोष्णवती प्रभा तेजः। | तेमः (पुं०) [तिम्+घञ्] आई, गीला, तर। इतस्ततो विक्षिप्तं जलादिसिक्त। वा प्रचुरभस्मप्राप्तं वा | तेमनं (नपुं०) [तिम्ल्यु ट्] १. गीला करना, तर करना, तेल मनाक् तेजोमात्रं तेजः कथ्यते। युक्त आहार। २. शाक विशेष। (जयो० १२/१६) तैक्षण्यकरणवृत्तिः (स्त्री०) उत्तेजना, उदबेलना। (जयो०१० | तेवनं (नपुं०) [तेव्+ ल्युट्] मनोरंजन, आमोद-प्रमोद, क्रीड़ा, १५/५२) अनुरंजन। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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