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भामिनी
७८२
भावः
भामिनी (स्त्री०) [भाम्+णिनि+ङीप्] ०तरुणी, कामिनी। (समु०
५/१८)
०प्यारी, प्रेमिका। (दयो० ३३) भाय (वि०) भय युक्त। (सुद० ७२) भारः (पुं०) [भृ+घञ्] बोझ, तोल, बजन।
पिटारी। (समु० ३/४४) ० श्रम, परिश्रम, मेहनत। भारो य तुला वीसं (जैन०ल० ६४१)
दश घटिकाओं का एक भार-माप। भारण्डः (पुं०) भारण्ड नामक पक्षी। भारत (वि०) [भरत+अण्] भरत से सम्बन्धित। भारतः (पुं०) भारतवर्ष। (वीरो० २/६) भारतदेश: (पुं०) भारतवर्ष। (जयो० १८४८१) भारतप्रान्तगत (वि०) हिमालय पर्वत पर्यन्त। (जयो० १७/४०) भारतवर्षान्तर्गत (वि०) भारत वर्ष के आधीन। (दयो०३) भारतकूपः (पुं०) राजा, नृप। (जयो० ७/७२) भारती (स्त्री०) वाणी, सरस्वती, वागपि। (जयो० ७/७८)
भरतभूमिपतेरपि भारती सपदि दूतवराय तरामिति। (जयो० ९/७८) भारती स्वयमसारतीरया शर्करेव तर्करेखया (जयो० ७/६२) वाग्देवी। (जयो० ६/५०) बुद्धिदेवी। (जयो०वृ० ६/५०) अभिमुखयन्ती सुदशं ततान सा भारती रतीन्द्रवरे।
वसुधा-सुधानिधाने मधुरां पदबन्धुरां तु नरे। (जयो० ६/५०) भारतोक्त (वि०) भरत द्वारा कथित। (जयो० १८/५७) भारद्वाजः (पुं०) एक ऋषि, कौरव-पाण्डव के गुरु द्रोण।
अगस्त्य ऋषि।
मंगलग्रह। चातकपक्षी। भारयष्टिः (स्त्री०) बोझ उठाने की लकड़ी। भारवः (पुं०) [भारं वाति-वा+क] धनुष की डोरी। भारवाह (वि०) बोझा ढोने वाला। (मुनि०१३) भारवाहनः (पुं०) भारवाहक पशु। भारवाहिकः (पुं०) कुली। भारवाहिन् (पुं०) बोझा ढोने वाला कुली। (जयो० १/२९) भारहटः (पुं०) कुली। भाराक्रान्त (वि०) बोझ से दबा हुआ। भारोत्थापनं (नपुं०) समुद्धरण। (जयो० २/११५) भारोद्ववहन् (वि.) संधारण, बोझ। (जयो० १३/८३)
भार्गवः (वि०) [भृगोरपत्यम्] ०शुक्राचार्य।
परशुराम। भार्य (पुं०) पराश्रयी, सेवक, भृत्य। भार्या (स्त्री०) [भर्तृ-योग्या-भार्य टाप्] धर्मपत्नी। (सुद०१/४०)
कलत्र, (जयो० २७/४३, दयो० २/१०) भ्रियते पोश्यते भर्चेति भार्या। पतिपरायणा।
पतिव्रता स्त्री। भार्यारू (स्त्री०) एक प्रकार का मूंग। भालं (नपुं०) [भा लच्] ललाट, मस्तक। (जयो० १/७६),
(सुद० १/१३१) ०ललाटदेश। (जयो० १२/१४०) भां लाति-भाल। (जयो० १/५५)
ऊपर। (जयो० १/५५) ०प्रकाशा
०अंधकार। भालचन्द्रः (पुं०) शिव। महेश्वर। भालदर्शनं (नपुं०) सिंदूर। भालदर्शिन् (वि०) ललाट दर्शक। भालपट्टः (पुं०) ललाट, मस्तक। भालम् (सक०) देखना, अवलोकन करना। (सुद० १०५) भालुः (पुं०) [भृ+उण् रस्य ल] अर्क, सूर्य। भालुकः (वि०) [भलने हिनस्ति प्राणिनः भत्त्+उक्+अण]
भालू, रीछ। भावः (पुं०) [भू-भावे घञ्] ०परिणाम। (सम्य० १३१)
स्थिति, अवस्था। (जयो० ११/१०) रीति, परम्परा, ढंग। ०सहजगुण, स्वाभाविक गुण (सम्य० १३७)
अभिप्राय। (जयोवृ० १/१५) मत, भावना, वृत्ति। (जयो० २/९९) मनोभाव। प्रकृति, स्वभाव। यथार्थ दशा, अभिप्राय, प्रयोजन, सारांश, आशय। तात्पर्य, अर्थ, प्रस्ताव, संकल्प। ०हृदय, आत्मा, मन (सम्य० ८६) 'भावः आत्मनो भवन परिणामविशेषः' ०जीव परिणति, विवक्षितक्रिया।
चारित्रादि परिणाम। ०जीवस्याध्यवसायः
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