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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनी ७८२ भावः भामिनी (स्त्री०) [भाम्+णिनि+ङीप्] ०तरुणी, कामिनी। (समु० ५/१८) ०प्यारी, प्रेमिका। (दयो० ३३) भाय (वि०) भय युक्त। (सुद० ७२) भारः (पुं०) [भृ+घञ्] बोझ, तोल, बजन। पिटारी। (समु० ३/४४) ० श्रम, परिश्रम, मेहनत। भारो य तुला वीसं (जैन०ल० ६४१) दश घटिकाओं का एक भार-माप। भारण्डः (पुं०) भारण्ड नामक पक्षी। भारत (वि०) [भरत+अण्] भरत से सम्बन्धित। भारतः (पुं०) भारतवर्ष। (वीरो० २/६) भारतदेश: (पुं०) भारतवर्ष। (जयो० १८४८१) भारतप्रान्तगत (वि०) हिमालय पर्वत पर्यन्त। (जयो० १७/४०) भारतवर्षान्तर्गत (वि०) भारत वर्ष के आधीन। (दयो०३) भारतकूपः (पुं०) राजा, नृप। (जयो० ७/७२) भारती (स्त्री०) वाणी, सरस्वती, वागपि। (जयो० ७/७८) भरतभूमिपतेरपि भारती सपदि दूतवराय तरामिति। (जयो० ९/७८) भारती स्वयमसारतीरया शर्करेव तर्करेखया (जयो० ७/६२) वाग्देवी। (जयो० ६/५०) बुद्धिदेवी। (जयो०वृ० ६/५०) अभिमुखयन्ती सुदशं ततान सा भारती रतीन्द्रवरे। वसुधा-सुधानिधाने मधुरां पदबन्धुरां तु नरे। (जयो० ६/५०) भारतोक्त (वि०) भरत द्वारा कथित। (जयो० १८/५७) भारद्वाजः (पुं०) एक ऋषि, कौरव-पाण्डव के गुरु द्रोण। अगस्त्य ऋषि। मंगलग्रह। चातकपक्षी। भारयष्टिः (स्त्री०) बोझ उठाने की लकड़ी। भारवः (पुं०) [भारं वाति-वा+क] धनुष की डोरी। भारवाह (वि०) बोझा ढोने वाला। (मुनि०१३) भारवाहनः (पुं०) भारवाहक पशु। भारवाहिकः (पुं०) कुली। भारवाहिन् (पुं०) बोझा ढोने वाला कुली। (जयो० १/२९) भारहटः (पुं०) कुली। भाराक्रान्त (वि०) बोझ से दबा हुआ। भारोत्थापनं (नपुं०) समुद्धरण। (जयो० २/११५) भारोद्ववहन् (वि.) संधारण, बोझ। (जयो० १३/८३) भार्गवः (वि०) [भृगोरपत्यम्] ०शुक्राचार्य। परशुराम। भार्य (पुं०) पराश्रयी, सेवक, भृत्य। भार्या (स्त्री०) [भर्तृ-योग्या-भार्य टाप्] धर्मपत्नी। (सुद०१/४०) कलत्र, (जयो० २७/४३, दयो० २/१०) भ्रियते पोश्यते भर्चेति भार्या। पतिपरायणा। पतिव्रता स्त्री। भार्यारू (स्त्री०) एक प्रकार का मूंग। भालं (नपुं०) [भा लच्] ललाट, मस्तक। (जयो० १/७६), (सुद० १/१३१) ०ललाटदेश। (जयो० १२/१४०) भां लाति-भाल। (जयो० १/५५) ऊपर। (जयो० १/५५) ०प्रकाशा ०अंधकार। भालचन्द्रः (पुं०) शिव। महेश्वर। भालदर्शनं (नपुं०) सिंदूर। भालदर्शिन् (वि०) ललाट दर्शक। भालपट्टः (पुं०) ललाट, मस्तक। भालम् (सक०) देखना, अवलोकन करना। (सुद० १०५) भालुः (पुं०) [भृ+उण् रस्य ल] अर्क, सूर्य। भालुकः (वि०) [भलने हिनस्ति प्राणिनः भत्त्+उक्+अण] भालू, रीछ। भावः (पुं०) [भू-भावे घञ्] ०परिणाम। (सम्य० १३१) स्थिति, अवस्था। (जयो० ११/१०) रीति, परम्परा, ढंग। ०सहजगुण, स्वाभाविक गुण (सम्य० १३७) अभिप्राय। (जयोवृ० १/१५) मत, भावना, वृत्ति। (जयो० २/९९) मनोभाव। प्रकृति, स्वभाव। यथार्थ दशा, अभिप्राय, प्रयोजन, सारांश, आशय। तात्पर्य, अर्थ, प्रस्ताव, संकल्प। ०हृदय, आत्मा, मन (सम्य० ८६) 'भावः आत्मनो भवन परिणामविशेषः' ०जीव परिणति, विवक्षितक्रिया। चारित्रादि परिणाम। ०जीवस्याध्यवसायः For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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