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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावक ७८३ भावमनस् भावक (वि०) [भू+णिच्+ण्वुल]०उत्पादक, प्रकाशक। ० उत्प्रेक्षक, कल्पना करने वाला। उदात्त भावना युक्त। कल्याण करने वाला। भावकः (पुं०) भावना, मनोभाव। भावकरणं (नपुं०) उपयोग सहित कर्म होना। भावकलङ्कः (पुं०) संक्लेश ग्रहण। भावकलङ्कः संक्लेशः, तं लाति आदत्त इति भाव कलङ्कः। (धव० ११/२३४) भावकायः (पुं०) शरीर सम्बद्ध भाव। भावकायोत्सर्गः (पुं०) अतिचारों की शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करना। भावकालः (पुं०) औपशमिकादि परिणाम की स्थिति। भावक्रीतः (पुं०) विद्या, मंत्रादि का स्थान बनाना। भावक्षपणा (स्त्री०) भावाध्ययन। भावग्रामः (पुं०) चारित्रादि के उत्पत्ति के कारण। भावचतुष्क (वि०) प्रथम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिय (सम्य० १९) भावचरणं (नपुं०) गुणों का आचरण। भावचारित्रं (नपुं०) सम्यक् चारित्र का परिणाम। भावजिनः (पुं०) जिनपर्याय परिणत जिनम। समवरण स्थित जिन। भावजीवः (पुं०) उपयोग स्वभावी जीव। भावज्ञानं (नपुं०) सम्यग्ज्ञान। भावतपः (पुं०) आत्म स्वरूप की एकाग्रता। भावतीर्थः (पुं०) ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की प्रधानतः वाला तीर्थ। भावन (वि०) भावना (समु० १/२३, उत्पादक)। भावननामदेवः (पुं०) भवनवासी देव। (वीरो० १३/१२) भावना (स्त्री०) अनुप्रेक्षा, बारंबार चिन्तन। (सुद० १/१९) (जयो० ३/१८) ध्यानाभ्यास कियेत्यर्थः। ध्यान के अभ्यास की क्रिया। मनोवृत्ति (जयो० २/७५) ०मनोज्ञविचारसर्वे सन्तु निरामयी: सुखयुजः सर्वेऽघविध्वंसिनः, विद्वांसोऽप्यखिला भवन्तु सुतरामन्योऽन्यमाशंसिनः। न स्यात्कोपि कदापि दुःखिततयाऽऽ क्रान्तस्तथात्मभरीरित्येवं मनसः क्षमा समनसः स्याद् भावना सुंदरी।। (मुनि० पृ० १६) निष्ठा, भक्ति, आराधना। ०श्रद्धा, विचारणा, संभावना। ०कल्पना, उत्प्रेक्षा, धारणा। ०स्मरण करना, चिंतन करना। निर्धारण, निश्चयन। भावनायोगः (पुं०) अनित्य, अशरण आदि का अनुभव। भावनाल (वि०) भाव प्रकट करने वाला। (सुद० २/४८) भावनान्तरं (नपुं०) भिन्न स्थिति। भावनार्थः (पुं०) स्पष्ट अर्थ। भावनिक्षेपः (पुं०) वर्तमान विवक्षित पर्याय से उपलक्षित द्रव्य। भावनिर्जरा (स्त्री०) कर्मत्व पर्याय का विनाश। भावपक्वं (नपुं०) मूल और उत्तर गुण का परिपाक। भावपरिक्षेपः (पुं०) सार तत्त्व का छोड़ना। भावपरिणामः (पुं०) जीवादि परिणाम। औपशमिक आदिभाव। भावपरिवर्तनं (नपुं०) मूल और उत्तर प्रकृति में परिवर्तन। भावपापं (नपुं०) अशुभपरिणाम। मित्यात्व-रागादि परिणाम। भावपुण्यं (नपुं०) शुभ परिणाम। भावपुरुषः (पुं०) भावद्वारकी प्ररूपणा वाला व्यक्ति। भावपुलाकः (पुं०) मूल और उत्तर गुण के पद में निःसारता धारण करने वाला। भावपूजा (स्त्री०) गुणों का स्मरण। भावपूति (स्त्री०) निरतिचार चारित्र का पालन। भावप्रमाणः (पुं०) साकार और अनाकार उपयोग होना। भावप्राणः (पुं०) चैतन्य परिणाम। भावबंधक (वि०) बांधने वाला। राग-द्वेष आदि का बंधना। 'राग-द्वेषादिरूपो भावबन्ध' (कार्ति० टी० २०६) रागात्मा भावबन्धः। आत्मगत बन्ध, निदान। 'हन्ताऽस्मि रेत्वामिति भाव बन्धमथो' (वीरो० ११/१६) भावबोधक (वि०) आत्मभाव को प्रकट करने वाला। भावभङ्गिन् (वि०) भावना जन्य। (जयो० २/९९) भावभावय (स्त्री०) भावधारण करने वाला (सुद० १२२) भावभाषा (स्त्री०) अभिप्राय जन्य भाषा। भावमङ्गलं (नपुं०) ज्ञान स्वरूप मंगल। भावमतिः (स्त्री०) आत्मगत बुद्धि। भावमिश्रः (पुं०) सज्जन पुरुष। भावमनस् (नपुं०) मनन करने वाला मन, आत्म विशुद्धि से युक्त मन। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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