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भाजनं
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भामण्डल:
भाजनं (नपुं०) [भाज्यतेऽनेन-भाज+ल्युट्] ०बांटना, विभाग | भाण्डारं (नपुं०) [भाण्ड+ऋ+अण्] संचयकेन्द्र, संचयन। करना, हिस्सा करना।
-भाण्डागारः (पुं०) भण्डार, (जयो०वृ० १/१७) पात्र, बर्तन, प्याला (जयो०८/३८) 'उद्भवेत् सममरिक्त भाण्डिकः (पुं०) नापित, नाई। भाजनस्तद्धि संग्रहणता गृहीशिनः। (जयो० २/१०७) भाण्डिका (स्त्री०) [भाण्डि+कन्+टाप्] ०उपकरण, यंत्र। ०थाल, स्थाली, थाली। (जयो०वृ० १५/२९)
भाण्डिनी (स्त्री०) [भाण्ड+इनि+ङीप्] ०पेटी, संदूक, आधार, आश्रय, ग्रहण।
करण्डिका, मंजूषा। योग्य पदार्थ, योग्य व्यक्ति।
टोकरी। भाजित (वि०) [भाज्+क्त] विभाजित, हिस्सा किया हुआ,
भाण्डीरः (पुं०) गूलर तरु, वटवृक्षा खण्डित किया गया।
भात (भू०क०कृ०) [भा+क्त] चमकना, देदीप्यमान होना। भाजी (स्त्री०) दलिया, भात, आधुनिक प्रचलित तरकारी,
०चमकीला, उजाला। शाक-सब्जी।
भातिः (स्त्री०) दीप्ति, प्रकाश, शोभा। (सम्य० १४०) कान्ति, भाज्य (वि०) [भाज्+ण्यत्] हिंसा, अंश, लाभांश।
सुंदरता, चमक, आभा। भाट (नपुं०) [भट्+ण्वुल्] भाड़ा, मजदूरी।
प्रत्यक्षज्ञान, ज्ञान, आभास, प्रतीति। भाटकं (नपुं०) भाड़ा, मजदूरी।
भातुः (पुं०) दिनकर, सूर्य। भाटकजीविका (स्त्री०) भाड़े से आजीविका करना, बैल,
भादः (पुं०) चांद्र वर्ष का एक नाम।
भाद्रपदः (पुं०) देखो ऊपर। ऊंट, भैंसा आदि को भाड़े पर चलाकर आजीविका
भानं (नपुं०) [भा भावे ल्युट्] ०आभास, ज्ञान, प्रतीति। करना।
प्रकट होना। भाटिः (स्त्री०) [भट्+णिच्+इञ्] भाड़ा, मजदूरी।
०दृश्यमान। भाटीकर्मन् (नपुं०) भाड़े से आजीविका करना। किराए पर
प्रकाश, चमक, दीप्ति, कान्ति, प्रभा। घोड़ा, बैल आदि चलाकर आजीविका करना।
भानित (भू०क०कृ०) [भा+क्त] सुशोभित, प्रकाशित, भाट्ट (वि०) भट्टमत का अनुयायी। कुमारिल भट्ट द्वारा
देदीप्यमान, आभावान्। (जयो० १७/१२१) प्रतिपादित मीमांसादर्शन का अनुयायी।
भानुः (पुं०) [भा+नु] दिवाकर, सूर्य। सुद २/३३, (सुद० भाण: (पुं०) [भण्+घञ्] नाटक का पात्र।
१३७) दीप्ति का अनु। भाणकः (पुं०) उद्घोषक, वाचक।
प्रकाश, चमक, आभा, कान्ति, प्रभा। भाण्डं (नपुं०) [भाण्ड्+अच्] ०पात्र, बर्तन, बासन, थाल।
भानुकेशरः (पुं०) दिनकर, सूर्य। संदूक, पेटी।
भानुजः (०) शनिग्रह। ०यंत्र।
भानुदिनं (नपुं०) रविवार, सूर्यवार। संगीत उपकरण।
भानुभानित (वि०) सूर्य से अलंकृत। भया शोभयानुभानितां सामान, वस्तुएं, मांस।
यद्वा भानुना भानितामलकृता।। (जयो० १७/१२१) सम्पत्ति, निधि धन-धान्य।
भानुभास्वरः (पुं०) सूर्यप्रभा। भानु सदा नूतन एव भासि ०भण्डार, संचयकेन्द्र, संचयशाला।
कोकस्य हर्षोऽपि भवेद्विकाशी। (जयो० १९/१४, २०) भाण्डपतिः (पुं०) सौदागर। वस्त्र आदि का व्यापारी। भानुमत् (वि०) [भानु+मतुप्] ०सुंदर, मनोहर, रमणीक। भाण्डपुरः (पुं०) नाई।
ज्योतिर्मान्, चमकीला, प्रभावान्।। भाण्डप्रतिभाण्डकं (नपुं०) विनिमय, क्रय-विक्रय, भानुश्रित (वि०) सूर्यगत। (जयो० १/३७) आयात-निर्यात।
भान्त (वि०) शोभायमान। 'भकारोऽन्ते वर्तते यत्र तं भान्तम्।' भाण्डभरकः (पुं०) बर्तन की वस्तु, पात्र में रखी गई वस्तु। (जयोवृ० १७/११६) भाण्डमूल्यं (नपुं०) बर्तन की कीमत।
भामण्डलः (पुं०) नाम विशेष। भाण्डशाला (स्त्री०) भाण्डागार, भण्डार, संचयकेंद्र।
शोभा युक्त चक्र। (जयो० २६/६६)
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