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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्याम्बुजं ७७९ भागः भव्याम्बुजं (नपुं०) भव्य कमल। (भक्ति० २१) भव्योत्तम (वि०) भव्यों में श्रेष्ठ। (वीरो० २०/२२) भष् (अक०) भौंकना, गुर्राना। झिड़कना, डांटना, फटकारना, धमकाना। भषः (पुं०) [भेष्+अच्] श्वान, कुत्ता। भषकः (पुं०) ०श्वान, कुत्ता। भषणः (पुं०) [भष्+घञ्] कुत्ता। भषणं (नपुं०) [भष्+ल्युट्] ०भौंकना, गुर्राना। कथन, बोलना। भस् (अक०) कहना, बोलना। (जयो० १२/२०) भसद् (पुं०) [भस्+अदि] सूर्य। दिनकर। ०बत्तख। समय। उचित काल। डोंगी। योनि। भसन् (नपुं०) [भष्+ल्युट्] मधुमक्खी । भसन्तः (पुं०) काल, समय। भसित (वि०) [भस्+क्त] भस्म से निर्मित हुआ। भस्त्रका (स्त्री०) धौंकनी, मशक, चमड़े की थैली। भस्वा (स्त्री०) वायुसंवर्द्धिनी, धौंकनी। (जयोवृ० ११/६८) भस्थानं (नपुं०) नक्षत्रस्थान। (जयो० १५/५४) भवर्ग। (जयो०वृ० १/३७) भस्मकं (नपुं०) [भस्मन् कन्] स्वर्ण, रजत। ०भस्मक व्याधि, जिसमें भूख की तीव्रता बनी रहती है। भस्मकरुज् (नपुं०) भस्मक व्याधि। (जयो० २/६३) भस्मकला (स्त्री०) नाशविधि। (समु० ७/३) ०चूर्ण बनाने का पद्धति। भस्मन् (नपुं०) [भस्+मनिन्] ०राख (जयो० २/७७) नाश, समाप्ति, क्षय। (जयो० २/११६) भस्मसात् करोति। (जयो० ६/२९) भस्मकारः (पुं०) धोबी। भस्मकूटः (पुं०) राख समूह, राख का ढेर। भस्मगंधा (स्त्री०) राख की गंध। भस्मतूलं (नपुं०) कुहरा, हिम, वर्ष। भस्मरोगः (पुं०) भस्मक व्याधि। भस्मवस्तु (नपुं०) छिन्न-भिन्न वस्तु। ०क्षीण होने वाली वस्तु। (सुद० २/४०) भस्मवेधकः (पुं०) गन्धी, कपूर। भस्मव्याधिः (स्त्री०) भस्मक रोग। भस्मसात् (अव्य०) [भस्मन्+साति] राख की स्थिति में। भस्मस्नानं (नपुं०) राख का लेप। भस्माधिकारी (वि०) विभूतिमान। भस्म को/राख को लपेटने वाला। (जयो०वृ० ६/२९) भस्मीभावः (पुं०) क्षीणभाव, हीन परिणाम। (जयो०वृ० १/४६) भस्मीभूत (वि०) दग्ध। (जयोवृ०५/२५) विदग्ध (जयो०वृ० १२/७०) ०जला हुआ। भा (अक०) चमकना, देदीप्यमान होना, ०शोभित होना, स्वच्छ होना। (वाभौ सुशोभित जयो० ३/१०३) व्यभात्। (जयो० ३/८८) भास्यति (जयो० ३/६७) प्रतीत होना, आभास होना। (सुद० १००) सुहाना, अच्छा लगना-भाति लब्धविषय व्यवस्थिति (जयो० २/२) प्रिय लगना। भातु (सुद० १/३३) दिखाई देना, प्रकट होना। प्रगति करना, उन्नति करना। भा (स्त्री०) [भा+अ+टाप्] ०दीप्ति-दीप्तौ च स्थानमात्रे भा इति' विश्वलोचनः (जयो० २४/१२) प्रभा। (जयो०वृ० १/२) प्रकाश, आभा, शोभा, कान्ति। भानां शोभामान् (जयो० ११/९३) ०सौंदर्य, रमणीयता। छाया, प्रतिबिम्ब, परछाई। नक्षत्र, तारा। भानां नक्षत्राणाम्। (जयो० ११/९३) भाक्त (वि०) [भक्त+अण्]०पराश्रित, पराधीन। दूसरे पर आश्रित, दूसरे से भोजन प्राप्त करने वाला। ०सेवा के लिए, भोजन योग्य। भास्तिक (वि०) [भक्त+ठक्] अनुजीवी, पराश्रयी। भाक्तिकजनः (पुं०) अनुजीवी लोग, भक्ति करने वाले लोग। (वीरो० २१/२२) भाक्ष (वि०) [भक्षा+अण्] उदर, पेट, भोजनभट्ट। भागः (पुं०) [भज्+घञ्] भाग, हिस्सा, अंश, प्रभाग, अंशदान, (सुद०१/१३) वितरण, विभाजन, नियतन। ०भाग्य, किस्मत। किसी वृत्त की परिधि का घात या अंश। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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