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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवता ওওও भवार्णवं भवता (स्त्री०) आपकी। (सुद० १२४) भवतात् (वि०) प्रशंसनीय। (सुद० १/९) भवतादृशी (वि०) आप जैसी। (समु० ७/१९) भवती (स्त्री०) [भू+शतृ+ङीप्] आपकी, तुम्हारी। (समु०३/१४) भवतोचित (वि०) आपके लिए उचित, उसके अनुकूल। (सुद० ११०) भवदीय (वि०) आपश्री का, आपका, (सुद० २/१४) (पुं०) महोदय का, भवन्धी का पति। (दयो०१०) भवदीयपादाः आपके चरण। भवदेवः (पुं०) भवश्री का पति। (दयो० १०) भवनं (नपुं०) [भू+ल्युट्] ०घर, आवास, निवास। स्थान। मकान, इमारत। भवनपतिः (पुं०) गृहपति, मालिक, गृहस्वामी। भवनप्रदेशः (पुं०) शय्यागार प्रदेश। भवनस्य शय्यागारस्य प्रदेशे। ०भव-वन-प्रदेश। नक्षत्रों के स्थान स्वरूप आकाश प्रदेश। 'भानां नक्षत्राणां वनस्य स्थानस्य प्रदेशे' (जयो०वृ० १५/३७) भवनस्वामिन् (पुं०) गृहपति, घर का मालिक। भवनोदरं (नपुं०) गृह का मध्यवर्ती भाग, आंगन। भवन्तः [भू+शतृ+घञ्] आप सब, इस समय में। भवन्ती (भू+शतृ ङीप्)आपकी, गुणवती स्त्री। भवनवासी (पुं०) देव विशेष, भवनों में निवास करने वाले भवविचयः (पुं०) दुःख रूप चिंतन। भवविपाकः (पुं०) अपने योग्य फल देना। भवविमोचक (वि०) प्राणविघात। भवश्री (स्त्री०) शिंशपावासी मृगसेन धीवर की माता। भवसंभवनार्ति (स्त्री०) संसार के दु:ख के व्याकुल। दुःखी, ___आर्त युक्त। (समु०) भवस्तलं (नपुं०) भूतल। (सुद० ३/१८) भवस्थ (वि०) संसार स्थित। भवस्थितिः (स्त्री०) संसार स्थिति, ___oआयुविषयक स्थिति। भवस्मृतिः (स्त्री०) जातिस्मरण। (जयो० २३/४६) भवातिग (वि०) वीतरागः सांसारिक जीवन पर विजय प्राप्त करने वाला, वीतरागी। भवान् ( ) आपका, आप, तुम्हारा। भुवि भवान् विभविष्यति भो भवान् विपदगाः पद गास्तु वयं नवाः' (सुद० ३/३१) (जयो० ९/११) भवानि (पुं०) ज्योतिषि। (सुद० १/२१) भवानी (स्त्री०) पार्वती, गौरी। भवानुगामी (वि०) अन्य भव में उत्पन्न होने वाला। भवान्तक (वि०) जन्म जरा-मृत्युनाशक। 'भवस्य जन्म-मरणात्मकस्य संसारस्य अन्तका: नाशकाः भवन्तीति परिहारः' (जयोवृ० १/९४) भवान्तरं (नपुं०) ०पुनर्जीवन, ०पुनरागमन, ०अन्यज्जन्म। (जयो० २३/३३) भवान्तरारिः (पुं०) पूर्वानुबद्ध वैरी। (जयो० २३/७०) भवान्ध (वि०) सब/संसार रूपी अंधा। (सुद० २/४७) भवान्धु (स्त्री०) भवकूप, संसारगर्त। (सुद० १/३) भवान्धुगर्तः (पुं०) संसार रूप अंधकूप। (समु० १/३) भवांस्तु (अव्य०) आप तो हैं। (सुद० ११३) भवादश (वि०) आप जैसा दिखाई पड़ने वाला। (जयो० ३/३३) (जयो० २६/३७) भवाब्धिः (पुं०) संसार समुद्र। (सु० २/३१) (भक्ति० १) भवाब्धितीरः (पुं०) संसार समुद्र रूपी तट। (सुद १/१) भवाभिय (वि०) संसार जयी-भवात् संसारान्नास्ति भीर्यस्यतं भवाभियं लोकविजयिनं जिननाथ। (जयो० १९/४७) भवाम्बुधिः (स्त्री०) संसार समुद्र। (समु० ४/२०) भवारण्यं (नपुं०) संसार रूपी जंगल। भवार्णवं (नपुं०) संसार समुद्र। देव। भवभृत् (पुं०) संसारी जन। (जयो० २/३१) 'भवं विभ्रतीति भवभृतः सांसारिकजनाः'। भवपरिवर्तनं (नपुं०) संसार परावर्तन, चतुर्गतिभ्रमण। भवपात (वि०) संसार लोप। भवप्रत्यय अवधिज्ञान (नपुं०) नरकादि की उत्पत्ति का कारणभूत ज्ञान। भवभूति (पुं०) संस्कृत का एक कवि। भवभाजा (पुं०) संसारोत्पत्ति। (सुद० ११२) भवभयस् (वि०) संसार नाशक। (सुद० ५/१) भवमरण (नपुं०) आयु क्षीण होना। भवरुद् (पुं०) अन्तिम समय में बजने वाला ढोल। भवलोकः (पुं०) नरक, तिर्यंच, देव और मनुष्य लोक। भवविरक्त (वि०) संसार से विमुख। (समु० ३/१) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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