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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भरतेशसुतः भरतेशसुतः (पु० ) अर्ककीर्ति । भरद्वाजः (पुं०) एक ऋषि, सप्त ऋषियों में प्रसिद्ध एक ऋषि । भरित (वि०) [भर इतच्] भरण-पोषण युक्त, पालन-पोषणा किया गया। ० भरा हुआ, परिपूर्ण । भरिन् (वि०) भार वाहक। (जयो०वृ०२/२९) भरु: (पुं०) [भू+उन्] प्रभ स्वामी नायक, अधिपति। ० पति । 'भरुणां भर्तृणां मध्ये स्थिताभिस्तरुणिभिस्तुल्याः ' (जयो० १४ / २१) भर-भर्तरि काञ्चने इति विश्वलोचनः। (जयो०वृ० १४ / २१ ) भरुक्त (वि०) सुवर्णघटित 'भरुणोक्तेः सुवर्णघटितैरथ च (जयो०वृ० १७/७) भरुजः (पुं०) ['भ' इति शब्देन रुजति भरुज्+क] गीदड़ । भरुटकं (नपुं०) [भृ+उट+कन् ] तला हुआ मांस । भरुत्सख (वि०) मोम सदृश भरुत्सखमनुं मत्वा तस्या मदनवन्मनः। नरतः स्थातुं शशाकेदं मनागप्युचितस्थले।। (सुद० ७६) भरुस्तभमयी (वि०) सुवर्णस्तम्भमयी (जयो० ११ / १९ ) भरो सुवर्णस्य स्तम्भमयी' (जयो०वृ० ११ / १९) भर्गः [भुज्+घञ् ] शिव । भर्ग्य: (पुं० ) [ भृज् + ण्यत् ] शिव । भर्जनं (नपुं०) [भृज् + ल्युट् ] तलना, भूनना। भर्जन (वि०) भूनने वाला, तलने वाला, पकाने वाला । भर्तृ (पुं०) [भृ+तृच्] पति, भर्ता (जयो० २ / १५०) (सुद०) ०वल्लभ, प्रिय। (जयो० १/११) ० स्वामी, प्रभु, महत्तर | ० सेनापति, नेता, रक्षक (जयो० २३ / ७६ ) ०भरण-पोषणकर्ता। www.kobatirth.org भर्तृदारकः (पुं०) युवराज, राजकुमार । भर्तृदारिका (स्त्री०) युवराज्ञी । भर्तृव्रतं (नपुं०) पातिव्रत, पतिभक्ति, पतिपरायणता । भर्तृशोक (पुं०) पति की मृत्यु पर शोक । भर्तृहरि (पुं०) एक राजा । वैराग्य शतक एवं शृंगार शतक के कर्ता संस्कृत काव्यकार | भर्त्स (सक०) धमकाना, डराना, झिड़कना, व्यंग करना । भर्त्सक (वि०) [भर्स् - ण्वुल् ] धमकाने वाला, डराने वाला। ० अभिशाप | भ (पुं०) भाड़ा, किराया, मजदूरी, पारश्रमिक। (सम्य०२५) ७७६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भर्मन् (नपुं० ) [ भृ+मनिन्] ०सहारा, संधारण, आश्रय, आधार । ०मजदूरी, भाड़ा। ०सोना। ० सोने का सिक्का । ० नाभि । भल् (सक०) देखना, अवलोकन करना, प्रत्यक्ष करना, निगाह डालना। भललू (सक० ) ०घायल करना । ०वर्णन करना, बोलना। ०चोट पहुंचाना। भवतरू भल्लः (पुं०) एक अस्त्र, भाला, जिसमें अग्रभाग पर लोहे का तीखा गोल एवं नुकीला होता है, जो व्यक्ति की ऊंचाई बराबर या इससे बड़े बांस में निबद्ध होता है। ० भालू, रीछ । भल्लकः (पुं०) भालू, रीछ । भल्लात: (पुं० ) [ भल्ल्+अत्+अच्] भिलावे का पौधा । भल्लुकः (पुं०) [भल्लू ऊक्] रीछ, भालू। भव (वि० ) [ भवत्यस्मात् भू अपादाने अप्] उत्पन्न, जन्म लेता हुआ, उदित हुआ। ० अवतरित हुआ, आया हुआ । भवः (पुं०) होना, उत्पत्ति, सत्ता ०जन्म, उत्पत्ति, प्रसूति (जयो०० २३/७५) ० स्रोत, मूल। (सम्य० १२५/८० ) संसार ०रुद्र (जयो० १/१५) भवक्षितिः (स्त्री०) जन्म स्थान, उत्पत्ति स्थान भवक्षिद् (वि०) संसार नाशक । भवछेदः (पुं०) पुनर्जन्म रोकना । भवच्छिद (वि०) संसार विनाश (जयो० २५/१) भवत् (वि०) [भू+शतृ] होने वाला, घटित होने वाला। (जयो० ४/१२) ० आप, तुम, समादर के लिए प्रयुक्त शब्द (सुद० ९८) भवता भवता प्रणायकेन (जयो० १२/४६) भो सुभद्र भवतामधिवेश:' (जयो०वृ० ४ / ३६) भवान्निति (सुद०९९) भवतः (वि०) भवशब्दात्तसिल् प्रत्यय इति विश्वलोचन: । (जयो० १८/१७) आपका। For Private and Personal Use Only भवतरू (पुं०) संसार रूपी वृक्ष। ( भक्ति ० ७ ) भवति भवतीति भवच्छब्दस्य सप्तम्येकवचन भवति नहि भवति भवति मदन (जयो० ६/८७)
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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