SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुभूषा ७६७ बोधनदीप बुभूषा (स्त्री०) [भू+सन्+अ+टाप्] होने की इच्छा। बुभूषु (वि०) [भू+सन्+उ] ०होने की इच्छा वाला। ०बनने की इच्छा युक्त। बुल् (अक०) डूबना, गोता लगाना। बुलिः (स्त्री०) [बुल्+इन्] भय, डर। बुस् (सक०) छोड़ना, त्यागना। उगलना, उडेलना। बुसं (नपुं०) कूड़ा, गंदगी। बूर, भूसी। बुस्त् (अक०) सम्मान करना, आदर देना। बृशी (वि०) गद्दी। बृंह (अक०) बढ़ना, उगना। बृंहणं (नपुं०) [बॅल्युट्] चिंघाडशब्द, तीव्र शब्द। बृंहित (भू०क०कृ०) [बृह्+क्त] चिंघाड़ा हुआ, उगा हुआ, बढ़ा हुआ। बंहितं (नपुं०) हस्ति चिंघाड़। बृह् (अक०) उगना, बढ़ना, फैलना। ०दहाड़ना। ब्रहच्छरीर (वि०) शोभनीय शरीर। (जयो० ११/६०) बृहत् (वि०) [बृह्+अति] ०बड़ा, विस्तृत, विशाल, महत्। •चौड़ा, फैला हुआ, प्रशस्त। प्रचुर, विपुल, व्यापक, अधिक। (सुद० १/२६) प्रगाढ़, अत्यधिक, यथेष्ट। ०लम्बा, ऊंचा, उन्नत। पूर्णविकसित, सटा हुआ। बृहत्कथाकोश: (पुं०) बृहदाख्यान, विस्तृत कथा ग्रंथ। बृहत्काय (वि०) स्थूलशरीर, विशालदेह। बृहत्कुक्षि (वि०) स्थूलोदर, सुंदिल, तोंदू, मोटे पेट वाला। बृहत्केषुः (स्त्री०) अग्नि। बृहत्गोलः (पुं०) तरबूज। बृहत्चित्तः (पुं०) नींबू का पेड़। बृहत्जघ (नपुं०) उन्नत जंघा। बृहत्तरु (पुं०) अलघुवृक्ष। (जयो० १/९३) बृहत्परिणाम (वि०) महत्भाव। (जयो०वृ० ) बृहतिका (स्त्री०) [बृहत् ङीष् टाप्] ०दुपट्टा, उत्तरीय वस्त्र, | चादर। ओढ़नी, चोगा। बृहद्गुण (वि०) विशालगुण, अच्छे भाव। (जयो० ५/२९) बृहदाख्यानं (नपुं०) हरिषेण रचित बृहत्कथाकोश। (वीरो० १७/३९) बृहद्विषं (नपुं०) विशाल जलराशि, अधिक जल। (वीरो०२/२४) बृहत्मन (वि०) विशालहृदय। बृहस्पतिः (स्त्री०) [बृहतः वाचः पति] ०देवगुरु, ०ग्रह विशेष। बृहस्पतिवारः (पुं०) गुरुवार। बेडा (स्त्री०) नाव, किश्ती। बेरदलं (नपुं०) बेरी का पत्ते। (वीरो० १९/११) बेरः (पुं०) बोर। बेहू (अक०) उद्योग करना, चेष्टा करना, प्रयत्न करना। बैजिकः (पुं०) मौलिक, गर्भविषयक। वीर्यसम्बन्धी। बैजिकः (पुं०) नूतनांकुर। बैजिकं (नपुं०) मूल, स्रोत। बैडाल (वि०) [बिडाल+अण्] बिलाव से सम्बंधित। बैदल (वि०) बेंत से निर्मित। बैदलः (पुं०) एक धान्य विशेष। बैम्बिकः (पुं०) [बिम्ब्+ठञ्] प्रेमी, कार्य में संलग्न व्यक्ति। बैल्व (वि.) बेल से निर्मित। बोधः (पुं०) [बुध्+घञ्] ०ज्ञान, विचार, विवेक, समझ। (जयो० २/६९, १/८५) (सम्य० ५२) ०प्रतिभा, प्रज्ञा। विचार, चिन्तन। (सम्य० १३६) शिक्षण, परामर्श-भव्यजीव प्रबोधाय बोधाय च निजात्मनः। (सम्य० १५५) ०जगना, उठना, जागृत होना। ०सचेत, जागृति। खिलना, फूलना, विकसित होना। ०सम्यक्ज्ञान (भक्ति० ३०) (मुनि० १४) आत्मपरिज्ञान-'आत्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः' (पुरुषार्थ २१६) बोधक (वि०) [बुध+णिच्+ण्वुल]०सूचक, शिक्षण। ०सीख देने वाला। ०अभिसूचक। ०जगाने वाला, उठाने वाला। बोधकः (पुं०) [बुध+णिच् ल्युट्] ०सूचना, शिक्षण, ज्ञान। ०अध्यापन, शिक्षण। जागरण, चेतना, सचेत करना। ज्ञापित करना, प्रकट करना। ०अभिव्यक्त करना। (सुद० ९७) बोधनदीप (वि०) ज्ञानदीप। 'लसति बोधनदीप इयान् इयत: विधि-पतङ्गगणः पतति स्वतः' (जयो० २५/६९) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy