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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बीजदर्शक: बीजदर्शक: (पुं०) रंगशाला का व्यवस्थापक । बीजधान्यं (नपुं०) बीज और अंकुर का भेदात्मक विवेचन । बीजपदं ( नपुं०) बीजाधार, बीज, मूल, अंकुरादि का मूल कारण। बीजपुरुष: (पुं०) कुल प्रवर्तक । बीजफलकः (पुं०) बीजपूर तरु । बीजबुद्धि (स्त्री०) एक ऋद्धि । बीजमन्त्र (नपुं०) रहस्यमय अक्षर युक्त मन्त्र। बीजमातृका (स्त्री०) कमलकोष । बीजमाणं (नपुं०) माप विशेष, कुडव प्रस्थादि । बीजरुह: (पुं०) दाना, अनाज । बीजरुचिः (स्त्री०) परमार्थ के प्रति श्रद्धा । www.kobatirth.org बीजल (वि०) बीजों से युक्त । बीजवत् (वि०) बीज की तरह । ( सम्य० १४० ) बीजवपन (नपुं०) बीज डालना, बीज बौना। बीजवपनक्रिया (स्त्री०) बीज बोने की क्रिया । ऊपर टके बीजवपनादिक्रिया कथम् (जयो०० २/५) बीजव्यभिचारि (वि०) बीच से भिन्न हुआ। (सुद० ३/८) बीजसम्यक्त्वं (नपुं०) बीजरुचि, जाने हुए एक पद के आश्रय से परमार्थ स्वरूप का श्रद्धान् बीजसू (स्त्री०) पृथ्वी, धरणी, धरती बीजाक्षरं (नपुं०) मंत्राक्षर। (जयो०वृ० १६ / ८२) 'भूर्जपत्रे ठकार युक्तान् बीजाक्षरान्' (जयो०वृ० १६/८२ ) ठः ठः नामक बीजाक्षर | बीजाङ्कुरं (नपुं०) बीज से उत्पन्न अंकुर । । बीजाध्यक्ष: (पुं०) शंकर, शिव बीजाश्वः (पुं०) जनताश्व, सांड, घोड़ा। बीजिक (वि०) बीजों से युक्त । बीजोत्कृष्ट (नपुं०) उत्तम बीज वीज्य (वि०) [ बीज्यत्] बीज से उत्पन्न बीभत्स (वि०) घृणोत्पादक, घृणास्पद, घिनौना, दुर्गन्धयुक्त । ० जुगुप्साजनक | ० अशुचिकर, अपवित्रतम । ० ईष्यालु द्वेषी। ०बर्बर, क्रूर, दुदर्शनीय बीभत्स (पुं०) बीभत्सरस, जुगुप्सा, घृणा, गर्हणा । 'बीभत्सः स्याज्जुगुप्सातः ' बीभत्सुः (पुं०) अर्जुन। ७६५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुक् (अव्य० ) [बुक्क् + क्विप्] अनुकरणमूलक शब्द | बुक्क (सक०) ०बोलना ०भौंकना। भौं भौं करना। बुक्क : (पुं०) हृदय, दिल, वक्षस्थल । ०बकरा । ०समय। बुक्कन् (नपुं०) [बुक्क् + ल्युट् ] भौंकना। बुक्कसः (पुं०) चाण्डाल। बुक्का (स्त्री०) हृदय, दिल। बुडित (वि०) मञ्जित प्रमार्जित। (जयो० ५ / ६८) बुद (सक०) देखना, अवलोकन करना। ० प्रत्यक्ष करना, समझना, पहचानना । ० समझ लेना, जान लेना । बुदबुद (वि० ०शब्द विशेष बबूला, ०जल कल्लोल (सुद० १००) बुदबुदाशी (वि०) जलोत्थकोलक, बयूले (जयो० १४/६५ ) बुद्ध (भू०क०कृ० ) [ बुध् +क्त] ०ज्ञात समझा हुआ, जाना हुआ। ० जागृत जागा हुआ, सचेत । ०देखा हुआ, प्रकाशमान। बुद्धः (पुं०) गौतम बुद्ध, जिनका जन्म विहार में ढाई हजार वर्ष से पूर्व हुआ था। जिनके प्रचार-प्रसार से लोगों को बोध प्राप्त हुआ था। बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् । o आचार्य (भक्तामर० २५) बुद्धवंत पुरुष, केवलज्ञान । बुद्धजागरिक (वि०) [सर्वज्ञ, सर्वदर्शी] ज्ञान दर्शनादि गुणों के धारक अरहंत देव । बुद्धिः बुद्ध-बोधित (वि०) आचार्यों द्वारा ज्ञान कराया गया। ० ज्ञान के सामीप्य को प्राप्त द्वारा जो बोध दिया जाता है। बुद्धमनं (नपुं०) समर्थमन, ज्ञानजन्यमन किन्तु किं तदिह बुद्धमनेन नैव वेद्धि खलु वृद्धजनेन । (जयो० ४/४०) बुद्धिः (स्त्री० ) [ बुध् + क्तिन् ] मति, धी, धिषणा । (जयो०वृ० ४/१६) ० प्रज्ञा, प्रतिभा, ज्ञान, विवेक । 'बुद्धया सुतमंत्र पुष्यात्' (सम्य० ६८) ० विचार । तदेव भुतेऽत उदार बुद्ध (सम्य० ७८ ) ० चेतना । (सम्य० १२१ ) For Private and Personal Use Only ० बुद्धि नामक सखी। (जयो० ६ / ३) ०एक देवी जो भगवान की माता की सेवा में उपस्थित रहती है।
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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