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तूण
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तृणचरः
तूण (सक०) सिकोड़ना, संकुचित करना।
तूलकुथः (पुं०) रजाई, पल्ली। तूणः (पुं०) तरकस।
उपर्यथो तूलकुथोऽनयायिनः। (वीरो० ९/२४) तूणधारः (पुं०) धनुर्धर।
तूलतल्पस्थ (वि०) रुई की शय्या वाला। रुई की शय्या के तूणी (स्त्री०) [तूण+ ङीष्] तरकस (जयो० ११/६१) निषङ्ग ऊपर स्थित। (जयो० २/१४९)
(जयो० ५/८३) दृग्वेशवाक् सम्प्रति यापि नासा तूणीव तूलफलता (वि०) निष्फल जीवन, फल युक्त जीवन। मान्या तिलपुष्पभासा। (जयो० ५/८३)
तूलफलता-व्यर्थजीवनता। तूणीरः (पुं०) तरकस।
तूलस्येव फलानि यस्य तत्ता' (जयो० ७/६९) तूर् (सक०) शीघ्र जाना, जल्दी पहुंचना।
तूलयुक्तवस्त्रं (नपुं०) रुई से निर्मित वस्त्र। (वीरो० ९/४४) तूपक्लूप्तिः (स्त्री०) प्रस्तर प्रभा (वीरो० २०/११)
तूलिः (स्त्री०) [तूल्+इन्] कूची, चित्रकार की तूलिका। तूरम् (नपुं०) [तूर+घञ्] वाद्ययन्त्र, बिगुल।
तूलिका (स्त्री०) [तूलि+कन्+टाप्] कूची, चित्रकार की कूची। तूर्ण (वि०) [त्वर्+क्त] शीघ्रगामी, द्रुतगामी, अतिशीघ्र। (सुद० तूलोक्त-तल्पं (नपुं०) रुई की शय्या, रुई के गद्दे। (सुद०
१/३२) बृहद्गुणाङ्गेन बभूव तूर्णमावर्जितं प्रोञ्छनकेन पूर्णम्। १०८) (जयो० १९/१०)
तूष्णीक (वि०) [तूष्णीम्+क] मौनी, अल्पभाषी, परिमित तूर्णं (अव्य०) शीघ्रता से, तीव्रता से, जल्दी से।
भाषी, चुप रहने वाला। तूर्यः (पुं०) [तूर्यते ताड्यते-तूर्+यत्] एक वाद्ययन्त्र। तूष्णी (अव्य०) अवाक्, चुप, शान्त, खामोश, स्वल्पभाषी। तूर्यं (नपुं०) तूरही, विगुल, भेरी (जयो० २१/९१)
(जयोवृ० ६/७८, १८/१०१) इत्युक्त्वा तूष्णीमस्थाद्राज्ञी तूर्य (वि०) चतुर्थ, चार प्रकार का, चौथा। (सम्य० १२८) तवादिहागतम्। (समु० ३/४०) तूर्यघोषः (पुं०) भेरी उद्घोष।
तूस्तं (नपुं०) [तूस्+तन्] १. जटा, २. पाप। ३. कण। तूर्यनादः (पुं०) भेरी नाद, भेरी का शब्द।
तृड् (स्त्री०) प्यास, वाञ्छा (जयो० १२१८६) तूर्यगुणस्थ (वि०) चतुर्थ गुणस्थान वाला। स्यूतेः समं तूर्यगुणस्थेऽतो | तृड्हा (वि०) पिपासाहर, वाञ्छापूर्तिकर। (जयो० ६/८१) भवेत् प्रपूर्तिर्भवसिन्धुः सेतुः। (सम्य० १२५)
तृडपसंहृत (वि०) पिपासा निवृत्तक। (जयो० ९/४५) तूर्यरवः (पुं०) भेरी नाद। (जयो० २१/९१)
तृडुपायन (वि०) पिपासा शान्त करने वाला। (जयो० १२/८६) तूर्यविध (वि०) चार प्रकार का। (सम्य० २८/१७(
तृषि पिपालायामुपायन उपहार स्वरूपस्तृडपहारको अपि तूर्यस्थलं (नपुं०) चतुर्थ गुणस्थान। कुवृत्तभावोऽपसरेदवृत्तभावो सन (जयो० १२१८६) न तूर्यस्थल एवं हृत्तः। (सम्य० १३७)
तूंह (सक०) मारना, घायल करना, चोट पहुंचाना। तूर्याच्छ्रद्धानं (नपुं०) चतुर्थ गुणस्थान। आसप्तमान्तं प्रथमन्तु | तृण (नपुं०) [तृह्+क्न्] घास, तिनका। (जयो० ८/९२) स्त्रैणं तूर्याच्छुद्धान माहुर्जिनवाचिधूर्या। (सम्य० १२८)
तृणं तुल्यमुपाश्रयन्त:' (सुद० ११८) तूलः (पुं०) [तूल्+क] १. रुई। (वीरो० ९/२४) २. आकाश, गावस्तृणामिवारण्येऽभिसरिन्त नवं नवम्। (जयो० २/१४७) वायु, पर्यावरण।
१. तुच्छ, हीन तूलं (नपुं०) महत्त्व देना। (वीरो० ९७/३१)
तृणकाण्डः (पुं०) घास समूह, घास का ढेर। ० विस्तर, आसन, शयन-'सदा मखमलोत्तूलशय- तृणकुटी (स्त्री०) घास की कुटिया। नाद्यनुकुर्वता। (वीरो० ८/३३)
तृणकुटीरं (नपुं०) घास की कुटिया। ० तूल देना, बढ़ाकर कहना-घृणास्पदं केवलमस्य तूलम्। तृणकूटः (पुं०) १. घास का ढेर, २. घास की कुटिया। (दयो०
(सुद० १०२) तूल-कलापः (पुं०) कार्पास समूह, रुई का ढेर। तूलस्य तृणकेतु (पुं०) ताडवृक्षा
कार्पासत्वचः कलापे समूहे भवति (जयो० ५/३) तृणगोधा (स्त्री०) गोह, गिरगिट। तूल-कल्पनं (नपुं०) रुई की पल्ली, रजाई। पितुस्तस्य कल्पना। तृणग्राहिन् (वि०) नीलम, नीलकान्त मणि। (जयो० २४/२८)
तृणचरः (पुं०) १. गोमेद, एक रत्न। २. घास चरने वाला।
तूंह (सक हिन्] घास, Ti
(सुद०
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