SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तूण ४५० तृणचरः तूण (सक०) सिकोड़ना, संकुचित करना। तूलकुथः (पुं०) रजाई, पल्ली। तूणः (पुं०) तरकस। उपर्यथो तूलकुथोऽनयायिनः। (वीरो० ९/२४) तूणधारः (पुं०) धनुर्धर। तूलतल्पस्थ (वि०) रुई की शय्या वाला। रुई की शय्या के तूणी (स्त्री०) [तूण+ ङीष्] तरकस (जयो० ११/६१) निषङ्ग ऊपर स्थित। (जयो० २/१४९) (जयो० ५/८३) दृग्वेशवाक् सम्प्रति यापि नासा तूणीव तूलफलता (वि०) निष्फल जीवन, फल युक्त जीवन। मान्या तिलपुष्पभासा। (जयो० ५/८३) तूलफलता-व्यर्थजीवनता। तूणीरः (पुं०) तरकस। तूलस्येव फलानि यस्य तत्ता' (जयो० ७/६९) तूर् (सक०) शीघ्र जाना, जल्दी पहुंचना। तूलयुक्तवस्त्रं (नपुं०) रुई से निर्मित वस्त्र। (वीरो० ९/४४) तूपक्लूप्तिः (स्त्री०) प्रस्तर प्रभा (वीरो० २०/११) तूलिः (स्त्री०) [तूल्+इन्] कूची, चित्रकार की तूलिका। तूरम् (नपुं०) [तूर+घञ्] वाद्ययन्त्र, बिगुल। तूलिका (स्त्री०) [तूलि+कन्+टाप्] कूची, चित्रकार की कूची। तूर्ण (वि०) [त्वर्+क्त] शीघ्रगामी, द्रुतगामी, अतिशीघ्र। (सुद० तूलोक्त-तल्पं (नपुं०) रुई की शय्या, रुई के गद्दे। (सुद० १/३२) बृहद्गुणाङ्गेन बभूव तूर्णमावर्जितं प्रोञ्छनकेन पूर्णम्। १०८) (जयो० १९/१०) तूष्णीक (वि०) [तूष्णीम्+क] मौनी, अल्पभाषी, परिमित तूर्णं (अव्य०) शीघ्रता से, तीव्रता से, जल्दी से। भाषी, चुप रहने वाला। तूर्यः (पुं०) [तूर्यते ताड्यते-तूर्+यत्] एक वाद्ययन्त्र। तूष्णी (अव्य०) अवाक्, चुप, शान्त, खामोश, स्वल्पभाषी। तूर्यं (नपुं०) तूरही, विगुल, भेरी (जयो० २१/९१) (जयोवृ० ६/७८, १८/१०१) इत्युक्त्वा तूष्णीमस्थाद्राज्ञी तूर्य (वि०) चतुर्थ, चार प्रकार का, चौथा। (सम्य० १२८) तवादिहागतम्। (समु० ३/४०) तूर्यघोषः (पुं०) भेरी उद्घोष। तूस्तं (नपुं०) [तूस्+तन्] १. जटा, २. पाप। ३. कण। तूर्यनादः (पुं०) भेरी नाद, भेरी का शब्द। तृड् (स्त्री०) प्यास, वाञ्छा (जयो० १२१८६) तूर्यगुणस्थ (वि०) चतुर्थ गुणस्थान वाला। स्यूतेः समं तूर्यगुणस्थेऽतो | तृड्हा (वि०) पिपासाहर, वाञ्छापूर्तिकर। (जयो० ६/८१) भवेत् प्रपूर्तिर्भवसिन्धुः सेतुः। (सम्य० १२५) तृडपसंहृत (वि०) पिपासा निवृत्तक। (जयो० ९/४५) तूर्यरवः (पुं०) भेरी नाद। (जयो० २१/९१) तृडुपायन (वि०) पिपासा शान्त करने वाला। (जयो० १२/८६) तूर्यविध (वि०) चार प्रकार का। (सम्य० २८/१७( तृषि पिपालायामुपायन उपहार स्वरूपस्तृडपहारको अपि तूर्यस्थलं (नपुं०) चतुर्थ गुणस्थान। कुवृत्तभावोऽपसरेदवृत्तभावो सन (जयो० १२१८६) न तूर्यस्थल एवं हृत्तः। (सम्य० १३७) तूंह (सक०) मारना, घायल करना, चोट पहुंचाना। तूर्याच्छ्रद्धानं (नपुं०) चतुर्थ गुणस्थान। आसप्तमान्तं प्रथमन्तु | तृण (नपुं०) [तृह्+क्न्] घास, तिनका। (जयो० ८/९२) स्त्रैणं तूर्याच्छुद्धान माहुर्जिनवाचिधूर्या। (सम्य० १२८) तृणं तुल्यमुपाश्रयन्त:' (सुद० ११८) तूलः (पुं०) [तूल्+क] १. रुई। (वीरो० ९/२४) २. आकाश, गावस्तृणामिवारण्येऽभिसरिन्त नवं नवम्। (जयो० २/१४७) वायु, पर्यावरण। १. तुच्छ, हीन तूलं (नपुं०) महत्त्व देना। (वीरो० ९७/३१) तृणकाण्डः (पुं०) घास समूह, घास का ढेर। ० विस्तर, आसन, शयन-'सदा मखमलोत्तूलशय- तृणकुटी (स्त्री०) घास की कुटिया। नाद्यनुकुर्वता। (वीरो० ८/३३) तृणकुटीरं (नपुं०) घास की कुटिया। ० तूल देना, बढ़ाकर कहना-घृणास्पदं केवलमस्य तूलम्। तृणकूटः (पुं०) १. घास का ढेर, २. घास की कुटिया। (दयो० (सुद० १०२) तूल-कलापः (पुं०) कार्पास समूह, रुई का ढेर। तूलस्य तृणकेतु (पुं०) ताडवृक्षा कार्पासत्वचः कलापे समूहे भवति (जयो० ५/३) तृणगोधा (स्त्री०) गोह, गिरगिट। तूल-कल्पनं (नपुं०) रुई की पल्ली, रजाई। पितुस्तस्य कल्पना। तृणग्राहिन् (वि०) नीलम, नीलकान्त मणि। (जयो० २४/२८) तृणचरः (पुं०) १. गोमेद, एक रत्न। २. घास चरने वाला। तूंह (सक हिन्] घास, Ti (सुद० २२) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy