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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुल्यरूप तुहिनाचलः ११/२) तुल्यरूप (वि०) अनुरूप, सादृश्य। तुषारपातः (पुं०) हिमपात, ओस पड़ना, पाला गिरना। (दयो० तुल्यार्थवृत्तिः (स्त्री०) समान अर्थ की वृत्ति। (वीरो० ४/२०) २/५) पक्वेषु धान्येषु तुषारपात: करोमि किम्भो तनयस्य तुल्यार्थवृत्तिः प्रथितो धराड़े खद्योतनाम्ना चरतीति शङ्के। तात। (दयो० २/५) (वीरो० ४/२०) तुषारभासः (पुं०) चन्द्र, रात्रिपति, शशि। स्वच्छप्रभस्य चन्द्रस्य तुल्यावस्था (स्त्री०) एक समान अवस्था। चन्द्र, रात्रिपतिः। (जयो० १५/६०) तुल्यावस्था न सर्वेषां किन्तु सर्वेऽपि भागिनः। तुषाररः (पुं०) कपूर। सन्ति तस्या अवस्थायाः सेवामो यां वयं भुवि।। (वीरो० तुषाररुक् (पुं०) चन्द्र, हिमकर, रात्रिपति, रजनीकर। (जयो० १७/४१) तुल्यौषधिः (स्त्री०) योग्य औषधि, अनुकूल औषधि। तुषारवारः (पुं०) हिम, वर्फ, शिशिरकाल, शीतकाल, प्रालेयकाला तुवर (वि०) [तु+ष्वरच्] कषैला, कटुक। (जयो० ६/५३) तुष (अक०) प्रसन्न होना, सन्तोषी होना, परितृप्त होना। | तुषार संहारकृत (वि०) हिमनाशक, शीत नाश करने वाला। तुष्यति द्वेष्टि चाभ्यन्तो निमित्तं प्राप्य दर्पणम्। (सुद० ।। (वीरो० ९/४०) १२५) तोषवान् (सुद० १०८) तुषारसारः (पुं०) हिम, शीत, ठण्डा। तुषारस्य हिमस्य सार एव • पुरस्कृत करना। गात्रं शरीरं यस्य सोऽत्यन्तधवलतनुरपि (जयो० १५/५८) एवमत्र पुनरादिसुतोऽपि तुषारादि (पुं०) हिमगिरि, हिमालय। तोषमेष्यति दुराग्रहलोपी। तुषित (वि०) संतुष्ट, प्रसन्न हुआ, विषयपराङ्गमुख। दापयामि भवते परितोषं तुषोदकं (नपुं०) चावल की कांजी। सज्जनाक्षयमितः कुरु कोषम्।। (जयो० ४/४६) तुष्ट (भू०क०कृ०) [तुष्+क्त] संतुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त। तुषः [तुष्+क०] भूसी, कण। (सम्य० १३८) तुष्टिः (स्त्री०) [तुष्+क्त] संतुष्ट, प्रसन्न, परितृप्त। तुषकण्डनं (नपुं०) भूसी दूरीकरण। (जयो० २५/५४) तुष्टिः (स्त्री०) [तुष्+क्तिन्] उत्कृष्ट हर्ष, परम संतुष्टि, तुषग्रहः (पुं०) अग्नि, अनल, आग। (जयो० ६/२३) अधिक प्रसन्नता, खुशी, परितोष। 'तुष्टि तुषग्राही (वि०) कण ग्रहण करने वाला। दत्ते दीयमाने च प्रहर्षेः। तुषमास (वि०) किंचित्मात्र भी। तुषमाषवदङ्गविदो शिवघोषमुनिः | तुष्टिकर (वि०) सन्तोष प्रदान करने वाला। सभिदो। (जयो० २३/३८) तुष्टिगत (वि०) प्रसन्न हुआ, परितोष को प्राप्त। तुषरादिः (पुं०) हिमवान् पर्वत। (जयो० १३/५५) तुष्टिधर (वि०) संतोषी।। तुषातिग (वि०) तुष रहित, भूसी रहित। दूरस्थ सम्पश्य पुनः | तुष्टिमत् (वि०) संतोषी। 'तुष्टिरस्ति येषां तं तेषां सन्तोषिणां सुहक्ततुषातिगं तण्डुलमत्ररक्तम्। (सम्य १३८) सज्जनानां। (जयो० ९/८०) तुषानलः (पुं०) भूसी की अग्नि। तुष्टिवल्लरी (वि०) संतोष रूपी लता। (जयो० २६/११) तुषाग्निः (स्त्री०) भूसी की आग। तुष्टुः (वि०) संतोषी। तुषाम्बुः (नपुं०) चावल की कॉजी। तुहिन (वि०) [तुह+इनन्] शीतल, ठण्डा। तुषार (वि०) [तुष+आरक्] बर्फ, हिम, शीतल, ठण्डा, ओस, तुहिनं (नपुं०) हिम, बर्फ, ओस। पाला। तुषारत: सन्दधनी सितं शिरस्तुते भ्रमोत्पत्तिकरीत्यहो तुहिनकरः (पुं०) चन्द्र, शशि। चिरम्। (वीरो० ९/२१) तुहिनकिरणः (पुं०) चन्द्र। तुषारगिरिः (पु०) हिमगिरि, हिमालय। तुहिन-द्युतिः (स्त्री०) चन्द्रमा। तुषारकणः (पुं०) हिमकण, ओस बिन्दु। तुहिनगिरिः (पुं०) हिमगिरि। तुषारकालः (पुं०) शीतकाल। तुहिन-पातः (पुं०) हिमपात। तुषारकिरणः (पुं०) चन्द्र, शशि। तुहिनांशुः (नपुं०) चन्द्र। तुषारगौर (वि०) हिम सदृश श्वेत। तुहिनाचल: (पुं०) हिमगिरि, हिमालय। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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