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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुलोह ७५९ बाणः बहुलोह (वि०) लोह की अधिकता। (जयो०वृ० ८/४) ___ 'बहुलश्चासौ लोह-आयसः' (जयोवृ० ६/४) बहुलोहगोचर (वि०) नाना प्रकार के वितर्क, विविध लोह समूह युक्त। बहुलस्योहस्य वितर्कस्य गोचरोऽथवा बहुलोहस्यानल्पस्यायसो गोचरो। (जयो००० २४/३३) बहुलिका (स्त्री०) कृतिकानक्षत्र। बहुलीकृत (नपुं०) खोलना, प्रकाशित करना। बढ़ाना, विस्तार करना। बहुलीभू (स्त्री०) फैलाना, विस्तृत करना। गुणन करना। बहुवचनं (नपुं०) एक से अधिक का बोधक वचन। बहुवर्ण (वि०) बहुरंगी, रंगबिरंगा। बहुवार्षिक (वि०) अधिक वर्षों तक रहने वाला। अनेक प्रकार के अन्तराय। बहुविघ्न (वि०) नाना प्रकार की बाधाएं। बहुविध (वि०) अनेक प्रकार। बहुत प्रकार। 'प्रकारार्थे विधशब्दः, बहुविधं बहुप्रकारमित्यर्थः, जातिगत-भूयः संख्याविशिष्टवस्तु प्रत्ययो बहुविधः। (धव० १३/२३९) बहुविधज्ञान (वि.) अनेक जाति विषयक ज्ञान। बहुविभव (वि.) नाना प्रकार की सम्पत्तियां, महदैश्वर्य। (जयो० ६/११३) बहुविरह (वि०) विपत्ति वियोग, अत्यधिक विरह। विपत्तेवियोग दु:खादि। (जयो०वृ० १४/९४) बहुवृद्धि (स्त्री०) अतिश्य वृद्धि, अनुपम विस्तार। (जयो०७० ६/१०९) बहुव्रीहिः (स्त्री०) बहुव्रीहि नामक समास, जिससे अन्य अर्थ की प्रतीति हो-'अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः' (जैन०ल. ८११) ०बहुत सा धान्य, अनेक प्रकार का धान्य। (दयो० ४) (सुद० १/२२) बहुव्रीहिमय (वि०) नाना प्रकार के धान्य सहित। (सुद० १/२२) उद्योतयन्तोऽपि परार्थमन्त?षा बहुव्रीहिमया लसन्तः। (सुद० १/२२) बहुशः (अव्य०) [बहु+शस्] ०बहुतायत से, प्रायः। (सम्य० ९७) ०अनेक विध, अनेक प्रकार से। (जयो० २/७९) नाना प्रकार के। (सुद० १०५) अनल्परूपता। (जयो० १२/१३३) विविधता। (भक्ति० १२) बहुशस्यं (नपुं०) अत्यधिक धान्य। (जयो० ३/५२) बहुशस्य (वि०) अतिशय प्रशंसनीय, अनुपम सौंदर्य युक्त। (जयो०वृ०३/५२) बहुशस्यवृत्तिः (स्त्री०) बहु धान्य की वृत्ति, बहुधान्यसंग्रह। (जयो० २४) ०प्रशस्य वृत्ति। बहुव्रीहिसमास (जयो० १०/४१) 'बहु' पद के वाद 'शस्य' पद का पर्यायवाची शब्द, 'व्रीहि' लेकर उस नाम की 'वृत्ति' यानि समास बहुव्रीहिसमास (जयो०वृoहि० ३/५२) बहुशाप (वि०) नाना प्रकार के शाप। विविध दृषित भाव को प्रकट करना। (सुद० ९५) बहुशैत्य (वि०) अतिशीतलत्व, अधिक ठंडा। (जयो०७२/१२०) बहुशोभि (वि०) समुचित प्रशंसनीय। (जयो० ४/२५) ____ अत्यधिक रमणीय, परम प्रभावक। बहुश्रुत (वि०) विज्ञ पुरुष, प्रज्ञावान्, पूर्वधर। बहुश्रुतता (वि०) युग श्रेष्ठ आगमों की जानकारी वाला। ०वेत्ता, शास्त्रज्ञा बहुश्रुतभक्तिः (स्त्री०) बारह अंगों के पारगामी बहुश्रुतों की भक्ति । स्व-पर समय का ज्ञाता होना। बहुसंतति (स्त्री०) अधिक संतान। बहुसार (वि०) रस से युक्त। बहुसुंदर (वि०) सुललित। (जयो०वृ० ४/७) बहुसूतिः (स्त्री०) अधिक शिशुओं की जन्मदात्री नारी। बाकुलं (नपुं०) [बकुल+अच्] बकुल वृक्ष के फल। बागः (पुं०) आराम, बगीचा। (सम्य० १०५) बाड् (अक०) स्नान करना, नहाना, गोता लगाना। बाडवः (पुं०) [बडवा+अण्] वडवानल। बाडवेय (वि०) बडमानत अग्नि के उत्पन्न हुआ। बाढ (वि०) [वह्+क्त] दृढ़, शक्तिशाली। बाढं (अव्य०) वस्तुतः, हां, निश्चय ही, बहुत अच्छा, तथास्तु शुभम्। बाणः (पुं०) [वण्+घञ्] शर, तीर, आशुग। (जयो० ५/६०) कीलण। जरत्कुमारस्य च कीलकेन वा मृतः किमित्यत्र बलस्य संस्तवाः' (वीरो० १७/४२) ०लक्ष्य, निशाना। बाण कवि। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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