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बर्हियानः
७५५
बलाकः
बर्हियानः (पुं०) कार्तिकेय। बर्हिस् (पुं०/नपुं०) [बह+इसि] कुश नामक घास।
०आसन। ०प्रकाश। ०दीप्तिा ०जल।
०यश। बहिर्मुख (वि०) अग्नि, युक्त, अग्निस्थान। बर्हिषद् (वि०) कुश नामक घास। बल् (अक०) सांस लेना, जीना। बल् (सक०) बोलना, कहना।
०मार डालना, चोट पहुंचाना।
चिह्न लगाना। बलं (नपुं०) [बल्+अच्] शक्ति । (सुद०७०)
सामर्थ्य। (जयो० १/७१) सत्त्व, प्राण। (जयो०१० ३/१०९) ०वीर्य। (सम्य० ४१) ०चारित्रगुण। (सम्य० ४१) ०अनन्तदर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य। ०वीर्य। तीन शक्तियों में द्वितीय बलशक्ति। (जयोवृ०२/१२१) । सेना, चमू, सैन्यदल। शरीर, आवृति, रूपा बलं गन्धरसे सैन्ये स्वामिन् स्थौल्यरूपयो' इति वि० (जयो० २१/४३)
शक्र, इन्द्र, पुरन्दर। सर्वास्थासु बलते संवृणोतीति बलम्।
(जै०ल० ८०८) बलः (पुं०) प्रभास गणधर के पिता। बलः पिताऽम्बाऽस्यच
सास्तु। भद्रा स्थितिः स्वयं राजगृहे किल द्राक्। प्रभासनामा चरमो गणीशः। श्रीवीरदेवस्य महान् गुणी सः।।
०वीर भगवान् के अन्तिम गणधर। (वीरो० १४/१२) बलकर (नपुं०) धात्रीफल। (जयो० १/३८) बलक्ष (वि०) [बलं क्षायत्यस्मात् क्षैक] शुभ्र, श्वेत, सफेद। बलक्षोभः (पुं०) गदर, विद्रोह, अव्यवस्था, सैन्य विक्षोभ। बलचक्रं (नपुं०) साम्राज्य।
सैन्य समुदाया बलज (नपुं०) मुख्य द्वार, नगर प्रवेश द्वार।
०खेत। ०धान्य समुच्चय।
बलदः (पुं०) वृषभ, बैल, बलीवर्द। बलदर्पः (पुं०) ज्ञानादिशक्ति का अभिमान। बलदेवः (पुं०) कृष्ण का भाई बलराम।
०पवन, वायु। बलद्विष् (पुं०) शक्र, इन्द्र। (जयो० २४/२९) बलनेतृ (नपुं०) ०नेता, नायक, प्रधान। (जयो० ६/११५)
भरताधिपबलनेता तस्माज्जयः श्रेयान्। (जयो० ६/११५)
जमाता, जमाई-'बलनेतुर्जामातुर्जयकुमारस्य पदौ'
(जयो०वृ० १३/२) बलपतिः (पुं०) सेनापति, सेनानायक।
०इन्द्र, शक्र। बलप्रद (वि०) शक्तिदायक। बलप्रजूः (स्त्री०) बलराम की माता रोहिणी। बलभद्र (पुं०) बलराम शक्तिशाली मनुष्य।
०एक जैन विद्वान्। ०दक्षिण भारतीय भाषाविद एवं
प्राकृत-संस्कृत तथा जैन सिद्धांत का ज्ञाता। बलभिद् (पुं०) इन्द्र। बलभृत् (वि०) बलवान्, शक्तिसम्पन्न। बलरामः (पुं०) बलदेव, कृष्ण का ज्येष्ठ भ्राता। बललः (पुं०) [बल+ला+क] इन्द्र, शक्र। बलवत् (वि०) शक्तिशाली, बलिष्ठ, हृष्ट-पुष्ट। सर्वप्रमुख,
प्रभुविष्णु।
अत्यावश्यक। ०अत्यधिक, दृढ़। बलवाजनिधि (पुं०) सैन्यसागर, सेना समूह। (जयो० १३/३४) बलवासं (नपुं०) सैन्य व्यूह। 'रणभूमौ स्वस्य बलस्य वासं
चक्राभं चक्रव्यहूरूपं रचयन्। (जयो०वृ० ७/११३) बलविक्रमः (पुं०) ०पराक्रम, अत्यधिक पराक्रम। मृत्युं गतो
हन्त जरत्कुमारैक बाणतो यो हि पुरा प्रहारै। नार्को जरासन्धमहीश्वरस्य किन्नाम मूल्यं बलविक्रमस्य।। (वीरो०
१८४४) बलवीर्यः (वि०) बल और वीर्य वाले। (जयो० २/३९) बलसंस्तवः (पुं०) बलगर्व, शक्ति का अभिमान। जरत्कुमारस्य
च कीलकेन वा मृतः किमित्यत्र बलस्य संस्तवाः। (वीरो०
१७/४२) बलहानि (स्त्री०) शक्तिक्षीण। (वीरो २२/२०) बला (वी०) [बल्+अच्+टाप्] शक्तिसम्पन्न ज्ञान। बलाकः (पुं०) [बल+अक्+अच्] बगुला, व्रक।
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