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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्धुभावः ७५४ बर्हिध्वजा बन्धुभावः (पुं०) मित्रता, बन्धुता, रिश्तेदारी। बभूव (भू०) हुआ (सम्य० ५३) बन्धुर (वि०) [बन्ध्+उरच्] लहरदार, ऊंचा-नीचा। बभ्रवी (स्त्री०) दुर्गा, चण्डी। ०वक्र, टेड़ा। बभ्रु (वि०) गहरा भूरा, खाकी, लाली युक्त। सुहावन, मनोहर, रमणीय। बभ्रुः (पुं०) ०अग्नि, आग। ०हानिकर, उत्पातप्रिय। नेवला। बन्धुरः (पुं०) ०हंस, ०सारस। भूरा रंग। ०औषधि। बभ्रुधातु (पुं०) स्वर्ण, सोना, गेरु। ०खली। बभ्रुवाहनः (पुं०) अर्जुनपुत्र। योनि। बबूलः (पुं०) बबूलतरु, कांटों युक्त वृक्ष। (वीरो० १९/११) बन्धुरं (नपुं०) मुकुट! मौलि। बम्ब (अक०) चलना-फिरना, भ्रमण करना, घूमना। बन्धुल (वि०) [बन्ध्+उलच्] वक्र, टेढ़ा, झुका हुआ। बम्भरः (पुं०) [भृ+अच्] भ्रमर, भौंरा, मधुमक्खी । बन्धुलः (पुं०) पतित, गिरा हुआ व्यक्ति, हरामी, नीच, तुच्छ। बम्भराली (स्त्री०) [बम्भर+अल्+अच्+ङीष्] मधुमक्खी। बन्धुवर्गः (पुं०) स्वजन, कुटुम्बीजन। (दयो०८) बरटः (पुं०) [वृ+अटन्] मधुमक्खी , भ्रमर। बन्धुहीन (वि०) मित्र रहित, स्वजनातीत। बहिरेव (सव्य०) बाहर ही। (जयो० २/१४६) बन्धूकः (पुं०) [बन्ध् ऊक्] एक वृक्ष विशेष, बिम्ब फल। बर्द्धनं (नपुं०) बढ़ना। (दयो० ११८) (जयो० ५/६०७) बर्व (अक०) चलना-फिरना, घूमना। बन्धूकं (नपुं०) बन्धूक के फूल। बर्वटः (पुं०) [ब अटन्] एक धान्य, राजमा, राजमाष। बन्धूकोष्ठी (वि०) बिम्बीकुसुमतुल्याधरवती। बिम्बी पुष्प के बर्वटी (स्त्री०) [बर्वट ङीष्] राजमाष, राजमा। ओंठ वाली। (जयो० ५/१०७) वेश्या, रण्डी। रक्ताधार। (जयो० ५/१०७) बर्वणा (स्त्री०) नीली मक्खी। बन्धूर (वि०) [बन्ध्+ऊरच्] ऊंचा नीचा, डांवाडोल, | बर्बरः (पुं०) अनार्य, एक जाति विशेष, आदिवासी जाति। उन्नतावनत। असभ्य। झुका हुआ, नम्रीभूत, विनत। ०मूर्ख, मूढ। सुहावना, रमणीय, सुंदर। बारः (पुं०) [बर्व+उरच्] एक वृक्ष विशेष। बन्धूरं (नपुं०) छिद्र, सुराख। बहू (सक०) बोलना, कथन करना। बन्धूलिः (स्त्री०) [बन्ध् ऊलि] बन्धुक वृक्षा __ मारना, चोट पहुंचाना। वन्थ्य (वि०) [बन्ध+ण्यत्] बांधे जाने योग्य, जकड़े जाने योग्य। ०ढकना, आच्छादित करना। निरुद्ध, निगृहीत, व्यर्थ। (वीरो० ८/२) नष्ट करना, क्षय करना। ०बांझ, बंजर, अनुपजाऊ। बर्हः (पुं०) मयूर पिञ्छ, मोर की पूंछ। विहीन, रहित, निरर्थक, अर्थहीन। बहँ (नपुं०) मयूर पिच्छ। बन्ध्यफल (वि०) निरर्थक, अर्थहीन, फल रहित। बर्हणं (नपुं०) [बह ल्युट्] पत्ता, पर्ण। बन्ध्या (स्त्री०) [बन्ध्य+टाप्] बांझ स्त्री, सुतोत्पत्ति से रहित बहभारः (पुं०) मोर पूंछ, मयूर पंख। स्त्री, गर्भधारण करने में असमर्थ। 'वाञ्छा बन्ध्या या सतां बहणीय (वि०) विचित्र सम्बन्ध। (वीरो० १७/१९) न हि' (वीरो०८/२) बर्हिः (स्त्री०) [बह इनि] अग्नि, आग। बन्ध्यातनयः (पुं०) बांझ का पुत्र, दार्शनिक दृष्टि से अस्तित्व बर्हिणः (पुं०) मयूर। के अभाव के लिए ऐसा कहना। बर्हिन् (पुं०) [बह इनि] मयूर, मोर, शिखण्डी। बन्ध्यापुत्रः (पुं०) बांझ का पुत्र। बर्हिपुष्पं (नपुं०) एक मादक फूल। बंधं (नपुं०) [बंध+ष्ट्रन्] ग्रन्थि, गांठ, बन्धन। बर्हिध्वजा (स्त्री०) दुर्गा For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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