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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बकोट: www.kobatirth.org बकोट : (पुं०) बगुला, कंकपक्षी । बट् बढ़ना, रखना। बटुः (पुं०) [ बट्+उ] बालक, लाड़ला, छोकरा, यज्ञोपवीत संस्कार योग्य लड़का । बटुकः (पुं०) ० बालक, लड़का, व्यज्ञोपवीत संस्कार युक्त बालक । बडवा ( स्त्री० ) ०घोड़ी, ०दासी । बडिश (नपुं०) मछली पकड़ने का कांटा। वंशी । (जयो० २५/७३) बडवाग्नि (पुं०) समुद्र के भीतर की आग । बडिशमांसं (नपुं०) वंशी का मांस (जयो० २५/७७) 'मीनोऽपि यो बडिशस्य मांसं लोस्कण्टकेन सह लग्नं पलमित: ' वणिज् (पुं०) बनिया, व्यापारी। (जयो० २५/७७) अत (अव्य०) [वन्+क्त] ०सम्बोधन, पुकारना । ० अहो, अरे, अचम्भा व्यक्त करना । ० निन्दा, अफसोस | ०शोक, खेद, 'बतेति खेदोऽनूभयते' (जयो ९/९२) बदर: (पुं० ) [ बद्+अरच् ] बेर का पेड़ । बदर (नपुं०) बेर, बोर । ०गंगा स्रोत । बदरी (स्त्री०) बोर, बेर। बदरीतपोवनं (नपुं०) बदरी नामक तपस्थान | | बदरीफल (नपुं०) बैर, बोर बदरीवनं (नपुं०) बोर की झाड़ी। बदरीशैलः (पुं०) बदरी पर स्थित पहाड़ । बद्ध (भू०क०कृ) [बन्धु+क्त] बंधा हुआ, आबद्ध, जकड़ा हुआ। ०बंदी, पकड़ा हुआ, वेष्टित । (सुद० १/२५) ०संयत बद्धकक्ष (वि०) रोष दमन करने वाले, क्रोधदमी । बद्धकक्ष्य (वि०) ०क्षमाशील, ०क्रोधशान्त युक्त । बद्धकषाय (वि०) कषाय दबाने वाले। बद्धकोष (वि०) कोप रहित, संयत क्रोध वाले। बद्धचित्त (वि०) स्थिर चित्त, संयत मन वाले बद्धजिह्न (वि०) रस की लोलुपता रहित जीभा बद्धदृष्टि (वि० ) ० टकटकी लगाने वाले। ०दृष्टि की स्थिरता युक्त । बद्धनेत्र (वि०) स्थिर दृष्टि वाले अचल नेत्र बद्धनेपथ्य (वि०) नेपथ्य की ओर खिंचे हुए। रंगमंच के ७५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्ध् बद्धपरिकर (वि०) सजे हुए, अलंकृत हुए। बद्धप्रतिज्ञ (वि०) दृढ़ प्रतिज्ञ बद्धप्रलाप (वि०) चार पुरुषार्थों के वर्णन सहित । बद्धभाव (वि०) मुग्ध । बद्धमुष्टि (वि०) बंधी हुई मुट्ठी वाले। (जयो० १४ / ३२ ) बद्धमूल (वि०) मूल को धारण किए हुए । बद्धराग (वि०) अनुरक्त, मुग्ध ० सत्कर्म में स्थित बद्धवसति (वि०) स्थिर स्थान वाला। बद्धवाच् (वि०) चुप रहने वाला। बद्धवेपथु (वि०) कंपायमान। बद्धवैर ( वि०) घृणा से भरा हुआ। बद्धशिख (वि०) चोटी को बांधने वाला । बद्धश्रुत (वि०) गद्य-पद्य बंधन से युक्त । बद्धस्नेह ( वि० ) ०प्रेमासक्त। ० प्रेमबन्धन में बंधा हुआ। बद्धहस्त (वि०) करबद्ध, हाथ से बंधा हुआ। (जयो० १ / ८९ ) बद्धाञ्जलि (स्त्री०) करबद्ध, अंजलियुक्त। (जयो० १६ / १३ ) बद्धेक्षणं (नपुं०) संधृतनेत्र (जयो० १७ /६४) । बधू (अक० ) घृणा करना, अरुचि करना, संकोच करना । ० झिझकना, ऊबना। बधः (पुं०) मारना । ०घात, व्हनन, ०क्षत | बधिर (वि० ) [ बन्ध् + किरच्] बहरा, कानों से नहीं सुनने वाला। For Private and Personal Use Only बधिरित (वि० ) [ बधिर + इतच् ] बहरा किया गया, बहरा बनाया गया। बन्दि (स्त्री० ) [वन्द+इन्] कैदी, बंधुआ । ० कारागृह युक्त, बंधन युक्त । बन्दीगृहं (नपुं०) कारागृह । (जयो०वृ० ८ /६८) बन्दीजन: (पुं०) बन्दीगृह, स्तुतिपाठक। (जयो० ६ / ३२) बन्धु (सक०) बांधना, कसना, जकड़ना बन्धामि (सुद०७६) ० पकड़ना दबोचना, (बबन्ध)। (जयो० १/४५) ०रोकना, ठहराना। ० दमन करना, संयत करना, रोकना। (सम्य० २९ ) ०धारण करना, निदेशित करना। ० रखना, डालना - बबन्ध । (जयो० १२ / १० ) ० निर्माण करना, संरचना करना । * अज्ञान चेतना (सम्य०१७) अबोधसंचेतना । (सम्य०११७)
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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