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फिरङ्गी
फिरक्की (स्त्री०) पहिये का घेरा फिरङ्गी (पुं०) अंग्रेज। (वीरो० १७/२८) फिरंगिराज्यं (नपुं०) अंग्रेजी राज्य। (दयो० ५२ ) फु (पुं०) मन्त्र पढ़कर फूंकना, तुच्छ वाक्य | फुट (वि०) विदीर्ण, खिला हुआ, सांप का फन । फुत् (अव्य०) फूंक मारने से उत्पन्न ध्वनि । फुत्कर (पुं०) अग्नि ।
फुत्कार ( पुं०) फूंक ।
फुल्लता (वि०) प्रफुल्लता, हर्षित भाव-सौम्यभाव। (जयो०
७/६०)
फुल्लाननं (नपुं०) हर्षित मुख। (दयो० ११०) (जयो० ४/४) फुल्ल (त्रि०) खिला हुआ, फूल, पुष्प (जयो० १४/३३) फुल्लगण्डं (नपुं०) फूले हुए गाल ।
० विकास (वीरो० ४/३७)
फुल्ल (भू०क० कृ०) खिलना, फुल्लति अफुल्लीत । (जयो० १/८२)
फुल्लदेहं (नपुं०) रोमाञ्चित शरीर पुष्यत्कग्य, समलंकृत शरीर (जयो० १०/११९)
फुल्लिताननं (नपुं०) हर्षित मुख । (जयो० १०/५४) फुलेल (पुं०) इत्र का पोहा (वोरो० ८/३४) पुष्पासव (जयो० २७/१५)
फुल्लविकोकिन् (पुं०) फूल देखने वाला।
फुल्लपरिणाम: (पुं०) उचित भाव, हर्षित भाव। (वीरो० ६/२४) फुल्लवक (वि०) फुलों से युक्त । (दयो० ७०) फूत्कार पूत्कर (वि०) फूंक से पवित्र किया गया। (वीरो०२७/६) फूत्कृत्य (सं०कृ०) धूक देना (जयो० १९/७६) फूत्कृत् - फूंकी गई (जयो० १२ / ९६ )
फेन (पुं०) झाग, रेंट, पूक। (जयो० १५/६८) (जयो० १९/७६) फेनक (वि०) ०झाग युक्त फुत्कार युक्त।
फेनकयं (नपुं०) फेन समूह (जयो०वृ० १३ / ९० ) हिण्डी
खण्ड ।
फेनवज्जुबल (वि०) फेन सदृश (जयो० २/१०७) फेनप्रभार (पं०) फेनकण (जयो०१३/९०) फेनसंचयः (पुं०) झाग समूह । (जयो० १४ / ६२) फेनायमान (वि०) फेन सदृश हर्षित (जयो० २४/१३५) फेनिका (स्त्री०) बुलबुला।
फेनिल (वि०) झागदार / साबुन (वीरो० २६ / २) रीठा (जयो० १५/१७) (जयो० २५/६६)
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फेर : (पुं०) गीदड़ ।
फेरण्डः [फेन्+इलच् ] गीदड़ । [ फे+रा+क] फेरव: (पुं०) गीदड़ ।
फेरवः (पुं०) गीदड़, राक्षस
० धूर्त, उग
फेरव (पुं०) धूर्त, चालबाज, दुःख पहुंचाने वाला ।
फेक (पुं०) गीदड़ |
फेरू (अक० ) खाकर छोड़ दिया, जूठा। फेल् (१- प०) जाना, फेलति, अफेलीत् ।
बकेरुका
ब
ब: (पुं०) पवर्ग का तृतीय वर्ण, इसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है।
बंहू (अक० ) बढ़ना, उगना, निकलना।
हिमन् (पुं०) [बहुल इमनिच्] अधिकता, बहुलता, बाहुल्य, बहिष्ठ (वि० ) [ बहुल + इष्ठन्] अधिक भारी, विशालता युक्त, बहुत बड़ा, भारी।
बंहीयस् (वि० ) [ बहुल+ ईयसुन्] बहुसंख्यक, अपेक्षाकृत बहुत बड़ा ।
बकः (पुं०) [वङ्क + अघ्] बगुला, बगता। न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा । (दयो० ५९ )
०कङ्क - पुलिने चलनेन केवलं चलितग्रीवमुपस्थितो बकः । (जयो० १३/६३) वकाः पताका: करिणोऽम्कुवाहा (जयो० ८/६२)
ठग, धूर्त, पाखण्डी, छली, वंचक
०बक नामका राक्षस।
बकचर: (पुं०) बक की तरह आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखण्डी ।
बकवृत्तिः (स्त्री०) बक की तरह आचरण । ( सुद० १०५ ) बकव्रतचरः / वकब्रतिकः (पुं०) वक की तरह आचरण । बकुल (पुं०) [बक उरच्- रेफस्य तत्वम् ] मौलसिरी वृक्ष । (जयो० १/८० )
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बकुलं (नपुं०) बकुल पुष्प ।
बकुश: (पुं० ) ० साधु का एक भेद, जो विचित्र संयम के
धारक होते हैं। अखंड मूल व्रती अखंडितव्रताः शरीरसंस्कारद्धिं सुखयशो विभूतिप्रवणा बकुशाः (त०वा० ९/४६) (त०सू० १/४६)
बकेरुका ( स्त्री० ) [बकानां बकसमूहानां ईरुकं गतिर्यत्र ] छोटी बगुली ।