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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org फिरङ्गी फिरक्की (स्त्री०) पहिये का घेरा फिरङ्गी (पुं०) अंग्रेज। (वीरो० १७/२८) फिरंगिराज्यं (नपुं०) अंग्रेजी राज्य। (दयो० ५२ ) फु (पुं०) मन्त्र पढ़कर फूंकना, तुच्छ वाक्य | फुट (वि०) विदीर्ण, खिला हुआ, सांप का फन । फुत् (अव्य०) फूंक मारने से उत्पन्न ध्वनि । फुत्कर (पुं०) अग्नि । फुत्कार ( पुं०) फूंक । फुल्लता (वि०) प्रफुल्लता, हर्षित भाव-सौम्यभाव। (जयो० ७/६०) फुल्लाननं (नपुं०) हर्षित मुख। (दयो० ११०) (जयो० ४/४) फुल्ल (त्रि०) खिला हुआ, फूल, पुष्प (जयो० १४/३३) फुल्लगण्डं (नपुं०) फूले हुए गाल । ० विकास (वीरो० ४/३७) फुल्ल (भू०क० कृ०) खिलना, फुल्लति अफुल्लीत । (जयो० १/८२) फुल्लदेहं (नपुं०) रोमाञ्चित शरीर पुष्यत्कग्य, समलंकृत शरीर (जयो० १०/११९) फुल्लिताननं (नपुं०) हर्षित मुख । (जयो० १०/५४) फुलेल (पुं०) इत्र का पोहा (वोरो० ८/३४) पुष्पासव (जयो० २७/१५) फुल्लविकोकिन् (पुं०) फूल देखने वाला। फुल्लपरिणाम: (पुं०) उचित भाव, हर्षित भाव। (वीरो० ६/२४) फुल्लवक (वि०) फुलों से युक्त । (दयो० ७०) फूत्कार पूत्कर (वि०) फूंक से पवित्र किया गया। (वीरो०२७/६) फूत्कृत्य (सं०कृ०) धूक देना (जयो० १९/७६) फूत्कृत् - फूंकी गई (जयो० १२ / ९६ ) फेन (पुं०) झाग, रेंट, पूक। (जयो० १५/६८) (जयो० १९/७६) फेनक (वि०) ०झाग युक्त फुत्कार युक्त। फेनकयं (नपुं०) फेन समूह (जयो०वृ० १३ / ९० ) हिण्डी खण्ड । फेनवज्जुबल (वि०) फेन सदृश (जयो० २/१०७) फेनप्रभार (पं०) फेनकण (जयो०१३/९०) फेनसंचयः (पुं०) झाग समूह । (जयो० १४ / ६२) फेनायमान (वि०) फेन सदृश हर्षित (जयो० २४/१३५) फेनिका (स्त्री०) बुलबुला। फेनिल (वि०) झागदार / साबुन (वीरो० २६ / २) रीठा (जयो० १५/१७) (जयो० २५/६६) ७५१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फेर : (पुं०) गीदड़ । फेरण्डः [फेन्+इलच् ] गीदड़ । [ फे+रा+क] फेरव: (पुं०) गीदड़ । फेरवः (पुं०) गीदड़, राक्षस ० धूर्त, उग फेरव (पुं०) धूर्त, चालबाज, दुःख पहुंचाने वाला । फेक (पुं०) गीदड़ | फेरू (अक० ) खाकर छोड़ दिया, जूठा। फेल् (१- प०) जाना, फेलति, अफेलीत् । बकेरुका ब ब: (पुं०) पवर्ग का तृतीय वर्ण, इसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है। बंहू (अक० ) बढ़ना, उगना, निकलना। हिमन् (पुं०) [बहुल इमनिच्] अधिकता, बहुलता, बाहुल्य, बहिष्ठ (वि० ) [ बहुल + इष्ठन्] अधिक भारी, विशालता युक्त, बहुत बड़ा, भारी। बंहीयस् (वि० ) [ बहुल+ ईयसुन्] बहुसंख्यक, अपेक्षाकृत बहुत बड़ा । बकः (पुं०) [वङ्क + अघ्] बगुला, बगता। न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा । (दयो० ५९ ) ०कङ्क - पुलिने चलनेन केवलं चलितग्रीवमुपस्थितो बकः । (जयो० १३/६३) वकाः पताका: करिणोऽम्कुवाहा (जयो० ८/६२) ठग, धूर्त, पाखण्डी, छली, वंचक ०बक नामका राक्षस। बकचर: (पुं०) बक की तरह आचरण करने वाला, ढोंगी, पाखण्डी । बकवृत्तिः (स्त्री०) बक की तरह आचरण । ( सुद० १०५ ) बकव्रतचरः / वकब्रतिकः (पुं०) वक की तरह आचरण । बकुल (पुं०) [बक उरच्- रेफस्य तत्वम् ] मौलसिरी वृक्ष । (जयो० १/८० ) For Private and Personal Use Only बकुलं (नपुं०) बकुल पुष्प । बकुश: (पुं० ) ० साधु का एक भेद, जो विचित्र संयम के धारक होते हैं। अखंड मूल व्रती अखंडितव्रताः शरीरसंस्कारद्धिं सुखयशो विभूतिप्रवणा बकुशाः (त०वा० ९/४६) (त०सू० १/४६) बकेरुका ( स्त्री० ) [बकानां बकसमूहानां ईरुकं गतिर्यत्र ] छोटी बगुली ।
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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