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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पनोष: प्लेव् (अक० ) सेवा करना, वैश्यावृत्ति करना, उपस्थित होना । प्लोषः (पुं०) [प्लुष्+घञ् ] जलाना, तपाना । प्लोषणं (नपुं०) (प्लुष+ ल्युट्] जलना, झुलसना। प्लोषण (वि०) जलने वाला । प्सा ( अक० ) खाना, निगलना । प्लोषिवान् (वि०) भस्म करने वाला, भस्मीचकार (जयो० । २३/२० ) प्सात (भू०क० कृ०) भुंजित, खाया हुआ। प्लानं (नपुं०) भोजन खाना । फ फ - (पुं०) पवर्ग का द्वितीय वर्ण, इसका उच्चारण। फ (न० / पुं०) रुखा वचन, फुफकार फ (पुं०) अंधड़, जम्हाई, निष्फल, भाषण, यज्ञ-साधन, स्फुट, फल- लाभ | फक्क (१- प०) धीरे-धीरे जाना, बुरा व्यवहार करना, फक्कति, अफक्कीत। फक्कक ( त्रि०) व्यर्थ । फक्किका (स्त्री०) कूटप्रश्न, अनुचित व्यवहार, धोखेबाजी | फट (अव्य०) मंत्रोच्चारण के पश्चात् बोला जाने वाला शब्द । फट (पुं० / स्त्री०) सांप का फन । फट (स्फुट+अच्) विस्तारित, फैलाया हुआ। पदांत धते, ठग । फट् (अव्य०) तंत्र शास्त्र में कहा हुआ एक मंत्र । फडिंगा (स्त्री०) झींगुर, टिड्डी, फतिंगा। ०पतंगा। फण (स्त्री०) सांप का फन (दयो० ६१ ) फणधर: (पुं०) सांप। फणमणि (स्त्री०) शेषनाग मणि। फणासु ये मणयो रत्नानि । (जयो० ८/६६) ७५० फणिप्रिय (पुं०) वायु। फणिन् (पुं० ) [ फणा + इनि] फणधारी सांप | फणिन् (पुं०) सांप। (दयो० ६१ ) फणीन्द्र: (पुं०) शेषनाग । (वीरो० २/३ ) फणीश्नर (पुं०) शेषनाग, नागराज फर्फराक (पुं०) फैली उंगलियों वाली हथेली (१०) मिठास । फल् (अक० ) फल आना, पैदा करना । फल फल पैदा करना। फलति, अफालीत्। | फलं (नपुं०) [फल्+अच्] परिणाम, प्रभाव ०भाव विचार फल (न०) वृक्ष आदि का बीज कोष, लाभ, नतीजा, कर्म-भोग, ( सम्य० ६२) प्रभाव, शुभ कर्मों के परिणाम धर्म, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (सम्य० १३५) अर्थ कान, मोक्ष। ०परिणाम जानना (मुनि० ५ ) ० पूजन सामग्री में चढ़ाने वाली द्रव्य (सुद० ७२) बदला, बाण, भाले, आदि का लोहे का बना तेज अगला भाग, हल की फाल, ढाल, उद्देश्य की सिद्धि, सूद प्रयोजन जायफल, कंकोल । काष्टफलक। (जयो० २/८३) फलक (पुं०) पटिया, पाट (दयो० ३२ ) फलचारणं (नपुं०) एक ऋद्धि जिसके प्रयोग से ऊपर गमन होता है। फलत (वि०) दृष्टि गोचरित। (समु० २ / १६ ) फलता (वि०) फलोत्पादक (जयो० १३/६०) फलती (वि०) फलप्रदायी, परिणामजनक। फलदा (वि०) फलप्रदायी (समु०६/६३) (सुद० ३/५) फलभर (वि०) फलों से परिपूर्ण (जयो० २/३८) फल- पाक (पुं०) करोंदा, जल- आंवला । फलवत्ता (वि०) सफलता युक्त (सुद० ८६, सुद० ९२) फलित (वि०) फलवती, घटित होने वाली। (जयो० ११ / ८९ ) परछाई (जयो० १२ / ११६) प्रतिबिम्बित | फलेशवेषः (पुं०) शरद काल । (वीरो० २१ / १२) फलोदपर (पुं०) लाभ के उदय का आधार (वीरो० ९/२२) (जयो० ११/९५) फल्गु (स्त्री०) गया तीर्थ की नदी । फल्गु (वि०) रम्य, सुंदर, निरर्थक। ०तच्छ (जयो० १/१७) फरक्की फल्गुफलं (नपुं०) अंजीर का फल। (हि० ४७ ) फलीभूत (वि०) सफल हुआ। (जयो० २६ / ११ ) फल्य (न०) फूल | फाणि (पुं०) गुड़ से बना सीरा, दही और सत्तू, गुड | (जयो० १२/७ ) ०सीरा, ०मिष्टान्ना फाण्ट (नपुं०) औषधि युक्त गरम पानी में औटाना काढ़ा । फाण्टवत् (वि०) विकृततक्रवत्। (जयो० १२ / १५३) फाल (न०) फाला। (पुं०) बलदेव महादेव । फाल (त्रि०) सूती कपड़ा । • For Private and Personal Use Only फाल्गुन (पुं०) अर्जुन का नाम, माघ के बाद का महीना, दूर्वा नामक सोमलता। फाल्गुनमासः (पुं०) फागुन का महिना। (वीरो० ६ / २४) फि (पुं०) पाप, कोप, निष्फल वाक्य।
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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