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प्रोषितभर्तका
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प्रोषितभर्तृका (स्त्री०) नारी। (वीरो० २१/१७) प्रोष्ठः (पुं०) [प्रकृष्टो ओष्ठो यस्य] ०बलीवर्द, वृषभ, बैला
तिपाई, चौकी। प्रौष्ठपदः (पुं०) भाद्रपद। प्रौंडः (पुं०) ईख, इक्षु, गन्ना, बराई। (जयो० ११/५६) प्रौढ (वि०) [प्र+व+क्त]०परिपक्व, पका हुआ।
वयस्क, बूढ़ा, वृद्ध (जयो० १६/५८) घना, सघन, व्यापक। विशाल, उन्नत, बलवान, साहसी।
०समर्थ) प्रौढता (वि०) उत्थान शीलता। (जयो० ५/७०) प्रौढवयस्का (स्त्री०) किशोरी। (जयो० १२/११८) प्रौढसम्भाषणः (पुं०) पाठकजना (जयो० २०/२०) शिक्षाव्रतं
द्वितीयं स्यान्मुनिमार्गविधानतः। (जैन०ल० ८००) प्रोषधे
उपवासः प्रोषधोपवासः (स०सि०७/२१) प्रौढा (स्त्री०) वृद्धा (जयो० १६/५८) प्रवीणा। (जयो०
१२/११४) प्रौढिः (स्त्री०) पूर्णवृद्धि, वृद्धि वर्धन, प्रौढ अवस्था। (वीरो०
१२/११४) ०ऐश्वर्य, समुन्नति, प्रताप। प्रौण (वि०) [प्र+ओण्+अच्] कुशल, प्रवीण, विज्ञ, चतुर। प्लक्षः (पुं०) [प्लक्ष घञ्] वटवृक्ष, पिलानन, अभक्षा (हित०
४७) गूलर का वृक्षा
पार्श्वद्वार, पिछवाड़े का दरवाजा।। प्लव (वि०) [प्लु+अच्] बहता हुआ, वृद्धिगत।
०कूदता हुआ, छलांग लगाता हुआ। (जयो० ३/७७) प्लवः (पुं०) तैरना, बहना। बाढ़, छलांग, कुलांच, छोटी
नौका। डोंगी, बेड़ा, घड़नई।
वानर, मेंढक, भेड़। प्लवकः (पुं०) मेंढक, दादुर।
कूदने वाला व्यक्ति, उछलने वाला। ०वट, ०वटवृक्ष, पाकर तरु।
०चाण्डाल। प्लवंगः (पुं०) [प्लव+गम्-खच्] ०वानर, बन्दर, लंगूर,
दर्दुर। (वीरो० ४/८)
हिरण, मृग।
०वट वृक्षा प्लवङ्गमः (पुं०) [प्लवगम्+खच्-मुम] ०वानर, बंदर,
मेंढक।
प्लवनं (नपुं०) [प्लु+ल्युट] तैरना, गोता लगाना।
स्नान करना, छलांग लगान, कूदना। स्नान। (जयो० १८/२६)
०बाढ़, प्रलय। प्लावाका (स्त्री०) [प्लु+आकन्+टाप्] बेड़ा, घड़नई। प्लविक (वि०) [प्लव+ठन्] खिवैया, पार ले जाने वाला। प्लाक्षं (नपुं०) [प्लक्ष्+अण्] प्लक्षतरु फल। प्लावः (पुं०) [प्लु+घञ्] छलांग लगाना।
बह निकलना। प्लावनं (नपुं०) [प्लु+णिच्+ल्युट्] स्नान, आचमन, * बाढ़।
जलमग्न होना, प्रलय। प्लावय् (सक०) आप्लावन करना। (वीरो० ४/९) प्लावित (भूक०कृ०) [प्लु+णिच्+क्त] ०तैराया गया, ०बहाया
गया, डुबोया गया, जलमग्न किया गया।
आच्छादित, आवृत, आवरण युक्त। प्लह (अक०) चलना-फिरना, हिंडन करना। प्ली (अक०) चलना-फिरना। प्लीहन् (पुं०) [प्लिह्+क्वनिन्] तिल्ली। प्लीहा (स्त्री०) तिल्ली, एक उदर रोग। प्लु (अक०) बहना, तैरना। कूदना, छलांग लगाना, उड़ना,
मण्डराना। प्लुत (भू०क०कृ०) [प्लु+क्त] तैरता हुआ, बहता हुआ।
०छलांग लगाता हुआ।
उच्चस्वर। (जयो० १३/८२) ०कूदा हुआ।
०स्नात। (सु० ३/५) प्लुतं (नपुं०) कूद, उछल-कूद, उचकना। तीन मात्रा वाले
स्वर। त्रिमात्रास्तु प्लुतो ज्ञेयः (धव० १३/२४८) प्लुतः (पुं०) देखो ऊपर। प्लुतगतिः (स्त्री०) खरगोश। शीघ्रगति। प्लुतिः (स्त्री०) [प्लुच+क्तिन्] बाढ़, प्रलय, बहाव, जलमग्नता।
उछल कूद। प्लुतोक्त (वि०) उच्च स्वर से कहा गया। (जयो० १३/८२) प्लुष (सक०) जलाना, झुलसाना, दागना। प्लुष्ट (भू०क०कृ०) झुलसाया गया, जलाया गया, ०दागा
गया। ०दग्ध। (जयो० १/७६)
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