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प्रसंख्यानः
७२५
प्रसरः
प्रसंख्यानः (पुं०) [प्र+सम्+ख्या+घञ्] ०भुगतान, चुकाना। प्रसत्तिसंवादः (पुं०) प्रसन्नता युक्त समाचार। (जयो० १५/६१) प्रसङ्गः (पुं०) [प्रसङ्ग्+घञ्] प्रकरण, अवसर, समय, प्रसन्धान (नपुं०) [प्र+सम्+ध्या+ल्युट्] ०मेल , मिलान। संयोग/तद्दानप्रसङ्गोऽवसरः (जयो० १/३१)
प्रसन्न (भू०क०कृ०) [प्र+सद्+क्त] पवित्र, स्वच्छ, साफ, आसक्ति, भक्ति, साहचर्य, सहयोग, संसर्ग। (जयो० उज्ज्वल, निर्मल, विमल, पारदर्शी, मुदन्वयी। १/३१)
हर्ष, आनंद, खुश, संतुष्ट, तोष। (सम्य० ११५) कार्यतत्परता, तल्लीनता।
०दयालु, अनुग्रहशील, कृपालु, मंगलप्रद। एकाग्रता, संश्लेख। (जयो०वृ० ११/४७)
सरल, सीधा, स्पष्ट, सुबोध। एक विषय, शीर्षक।
सत्य, सही, यथार्थ, समीचीन। देवयोग, घटना, काण्ड, संभावना का होना।
प्रसन्नधी (वि०) हंसमुख। (दयो ७२) उपसंहार, अनुमान।
प्रसन्नवाञ्च (स्त्री०) प्रसन्नवाणी। (जयो०वृ० १/४३) ०सम्बंध, अभियोज्य प्रयोग।
प्रसन्नवाणी (स्त्री०) विमल वचन, पवित्र विचार। प्रसङ्गकरण (वि०) संयोग युक्त। (सुद० १०२)
प्रसन्नतादायक (वि०) हर्ष प्रदायक, शातप्रद। (जयो०वृ०४/२) प्रसङ्गगत (वि०) अवसर को प्राप्त।
प्रसन्नदृष्टि (स्त्री०) आन्नददृग। (जयो० १/७७) सरलदृष्टि, प्रसङ्गजनित (वि०) दैवयोग की प्राप्ति। ०एकाग्रता युक्त।
मंगलप्रद नेत्र, उचित अवलोकन। प्रसङ्गजात (वि०) दैवयोग की प्राप्ति। प्रसङ्गानुरूपार्थ प्रतिपादक। प्रसन्नमुखत्व (वि०) कृपादृष्टि वाला। (जयो०वृ० १/५७) (जयो० २/४२)
प्रसन्नवदन-देखो ऊपर। प्रसङ्गत (वि०) द्यूत व्यसन। जुआं के प्रति आसक्ति। प्रसन्ना (स्त्री०) एक मदिरा विशेष, जो द्राक्षा से बनाई प्रसङ्गप्राप्त (वि०) प्रसञ्जन। (जयो० २३/२६)
जात है। प्रसङ्गसाधन (वि०) स्वीकृति के बिना न होना, जिस साधन ०प्रसादन, अनुरंजन।
में व्याप्य की स्वीकृति को व्यापक की अविनाभाविनी- प्रसन्नाखण्डाधिकारवती (वि०) स्पर्श अखंड अधिकार वाली। व्यापक की स्वीकृति के बिना न होने वाली-दिखलाया जाए। (जयो० ३/८४) ०पर के गन्तव्य से ही जो उसे अनिष्ट का प्रसंग दिया प्रसन्नात्मन् (वि०) मंगलप्रद, कृपायुक्त। जाता है।
प्रसन्नीरा (स्त्री०) खींची हुई मदिरा। प्रसङ्गानुसारिणी (स्त्री०) अभिनयानुराधिनी। (जयोवृ० २/९४) प्रसभः (पुं०) [प्रगता सभा समानाधिकारी यस्मात्] * शक्ति, बल। प्रसङ्गिन् (वि०) संयोग वाला। (जयो० २/१३४)
oहिंसा, आरंभ। प्रसञ्जनं (नपुं०) [प्र+सञ्+घञ्] ०मिलाना, जोड़ना, एकत्र ०बहुत अधिक, अत्यंत। करना।
आग्रहपूर्वक। ०व्यवहार में लाना, सबल बनाना, उपयोग में लाना। प्रसभदमनं (नपुं०) बलपूर्वक दमन करना। प्रसंग प्राप्त (जयो० २३/२६)
प्रसभहरणं (नपुं०) बलपूर्वक, अपहरण। प्रसञ्जर (वि०) विचरण करने वाला। (सुद० ११९) प्रसभीक्षः (पुं०) गवेषणा, छानबीन। (जयो० १३/७१) प्रसत्तिः (स्त्री०) [प्रसिद्+क्तिन्] ०अनुग्रह, कृपालुता, | प्रसभीक्षणं (नपुं०) [प्र+सम्+ईक्ष+ ल्युट्] विचारण, शिष्टाचार, प्रसाद। (जयो० ३/१०६)
विचार-विमर्श। स्वच्छता, पवित्रता, विशदता।
निर्धारण। प्रसत्तिकृत (वि०) उज्ज्वलता युक्त। (जयो०वृ० ३/५३) प्रसभीक्षा (स्त्री०) [प्रसम् ईक्ष् अङ्टाप्] विचारण, निर्धारण। प्रसत्तिदायिनी (वि०) उदार युक्त। (जयो० ११/१३) प्रसयनं (नपुं०) [प्र+सि+ल्युट] ०बंधन, कसना। जाल। प्रसत्तिप्रद (वि०) प्रसारदायक। (वीरो० ५/३६) (वीरो० १/४)? प्रसरः (पुं०) [प्र+सृ+अप्] ०फैलना, आगे बढ़ना। (सुद० प्रसात्तिभृत (वि०) प्रसाद युक्त। (जयो० ११/१३)
९०) 'वृत्तं तदेत्प्रससारं लोकप्रान्तेषु शीघ्रं प्रभुदामथौकम्' प्रसत्तिमनम् (नपुं०) प्रसार युक्त मन। (जयो० ३/१०६)
(वीरो० १४/४६)
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