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प्रशान्तपाप
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प्रसंख्यानं
प्रशान्तपाप (वि०) क्षीण पाप। पापों का अभाव।
प्रश्नान्तर (वि.) प्रश्न के पश्चात्। (जयो०७० ३/३५) प्रशान्तबाधा (स्त्री०) बाधाओं का अभाव।
प्रश्नाप्रश्नं (नपुं०) प्रश्नकर्ता के लिए कहना। प्रशान्तरसः (पुं०) विकार रहित भाव।
प्रश्नाक्षरं (नपुं०) प्रश्नकारक। (जयो० १०/३१) प्रशान्तिः (स्त्री०) धैर्य, शन्ति।
प्रश्वासः (पुं०) निःश्वसन, श्वांस। आराम, विराम, विश्राम।
प्रश्रथः (पुं०) [प्र+श्रथ्+अच्] शिथिलता, ढीलापन। निराकरण, बुझाना।
प्रश्रयः (पुं०) [प्र+श्रि+अच्] आदर, सम्मान, भक्ति। स्थिरता।
शिष्टाचार, विनय। प्रशान्त्य (सं०कृ०) स्वस्थचित्त करके। (भक्ति० ७) प्रश्रित (भू०क०कृ०) सुजन, नम्र, विनीत शिष्ट, प्रशामः (पुं०) [प्र+शम्+घञ्] ०शान्ति, धैर्य, स्थिरता।
शिष्टाचरणयुक्त। विश्राम, विराम।
प्रश्लथ (वि०) बहुत ढीला, अधिक शिथिल। ०प्यास बुझाना।
उत्साह, निस्तेज। ०शमन करना, शांत करना।
प्रश्लिष्ट (भू०क०कृ०) [प्र+श्लिष+क्त] मरोड़ा दियागया। प्रशासन (नपुं०) [प्र.शास्+ल्युट्] ०शासन करना, अनुज्ञा,
तर्क संगत, युक्ति युक्त। आज्ञा देना, राज्य शासन।
प्रश्लेषः (पुं०) [प्र+श्लिष्+घञ्] संहति, घना संपर्क। आदेश देना, सत्ता संभालना।
प्रश्वासः (पुं०) [प्र.श्वास्+घञ्] सांस, श्वसन, निःश्वास। प्रशास्तिस्तूपका (वि०) प्रशासनिकता। (दयो० १०९)
प्रश्वासक्रिया।
प्रश्रयः (पुं०) आश्रय, आधार, सहारा। (जयो० १०/५०) प्रशास्तु (पुं०) [प्र+शास्+तृच्] ०शासक, प्रशासक, नृप,
प्रष्ठ (वि०) [प्र+स्था+क] सामने स्थित। अधिपति। राजा, राज्यपाल।
०मुख्य, प्रधान, अग्रणी, उत्तम।
नेता, मुखिया, नायक। प्रशिथिल (वि०) अत्यधिक ढीला।
प्रस् (अक०) फैलाना, प्रसार करना, विस्तार करना, बिछाना। प्रशिष्यः (पुं०) शिष्य का शिष्य, शिष्य परम्परा।
प्रसक्त (भू०क०कृ०) [प्र+सञ्च+क्त] ०लग्न, संयुक्त। प्रशुद्धयन् (भू०) शुद्ध किया गया। (सम्य० १०९)
०अत्यन्त आसक्त/स्नेहशील। प्रशुद्धिः (स्त्री०) स्वच्छता, पवित्रता, विशुद्धि।
०अनुगामी, अनुषक्त। प्रशोषः (पुं०) [प्र+शुष्+घञ्] सूखना, शुष्क, सूख जाना।
स्थिर तुला हुआ, भक्त। प्रशोषित (वि०) सुखाती हुई। (दयो० ९) ।
०व्यसनग्रस्त। प्रश्चोतनं (नपुं०) [प्र+श्चुत् ल्युट्] छिड़कना, क्षरण।
०सटा हुआ, निकटस्थ। प्रश्न: (पुं०) [प्रच्छ+ नङ्] पृच्छ, पूछताछ, परिपृच्छा, सवाल।
निरन्तर, अविच्छिन्न, अनवरत। पृष्टा, चोद्य। (जयोवृ० २३/८३)
प्राप्त, गृहीत। सूत्र ग्रंथ का अनुभाग।
प्रसक्तिः (स्त्री०) [प्र+सञ्ज-क्तिन्] ०आसक्ति, अनुरक्ति, लगाव। ०संघ को लक्ष्यकर प्रश्न करना। विद्यादिदेवतां यत्पृच्छति
०व्यसन, सम्बंध, संयोग, संसर्ग। (वीरो० २/१२) स प्रश्नः ।'
०साहचर्य। प्रश्नकर्ता (वि०) पृच्छा करने वाला। (जयो० २३/४२)
०बीज-वपनादि क्रिया। (जयो० २/५) प्रश्नकशल: (पुं०) निर्यापकाचार्य। ०समाधि कराने में प्रवीण। | प्रसंख्या (स्त्री०) विचार-विमर्श। प्रशस्त कथन। प्रश्न में निपुण।
०कुल योग, राशि। प्रश्न व्याकरणं (नपुं०) एक आगम ग्रंथ, जिस अंग ग्रंथ में | प्रसंख्यानं (नपुं०) [प्र+सम्+ख्या ल्युट्] गिनना, विचारण,
शंकासमाधानपूर्वक प्रश्नों का व्याख्यान किया गया है, मनन, चिन्तन। वह दसवां अंग ग्रन्थ।
०कीर्ति, प्रसिद्धि, विश्रुति।
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