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प्रशस्तकरणोपशामना
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प्रशान्तपदं
शान्त किया गया, तुष्टीकृत। (सुद० ११५) स्तुति की गई। (सुद० १/३ स्तुत० जयो० १/५) योग्य, उचित। (जयो० २/१०९) उत्तम। (सुद० ४/४२, शुभ०) (जयो० १/१८) प्रशंसनीय, श्लाघनीय। (जयो० १/१३) सौभाग्यशाली, प्रसन्न, आनन्दित। सर्वोत्तम, श्रेष्ठ। (सम्य० ११५)
पुण्य आशय, यथेष्टमार्ग। प्रशस्तकरणोपशामना (स्त्री०) आठों कारणों का शमन
होना, गुणों की उपासना। प्रशस्तघोटनः (पु०) उत्तम घोड़ा, सप्ति समूह।
(जयो०वृ० ३/११०) प्रशस्तज्ञानिन् (वि०) उत्तम ज्ञानी, उदार दर्शन। (जयो० २/३६) प्रशस्तधारणाशक्ति (स्त्री०) उत्तमबुद्धि बल। (जयो० २/१२) प्रशस्तध्यानं (नपुं०) श्रेष्ठध्यान, प्रकृष्ट ध्यान, शुद्धलेश्या का
आश्रय लेकर ध्यान करना। अस्तरागो मुनिर्यत्र वस्तुतत्त्वं विचिन्तयेत्।
तत् प्रशस्तं मतं ध्यानं सूरिभिः क्षीणकल्मषैः।। प्रशस्तनिदानं (नपुं०) संयम युक्त निदान। प्रशस्त-निस्सरणं (नपुं०) शान्त प्रवाह। ०संयम स्थान।
उत्तम भाव। प्रशस्तप्रभावना (स्त्री०) तीर्थ प्रभावना, प्रवचन प्रभावना, या
मोक्षमार्ग की प्रभावना। प्रशस्तभागः (पुं०) श्रेष्ठभाग। (जयो० १/१०) प्रशस्त-भावपिण्डः (पुं०) उत्तम क्षमादि युक्त भाग। प्रशस्तभावयोगः (पुं०) सम्यग्दर्शनादि उत्तमभाव का योग। प्रशस्तभावसंयोगः (पुं०) ज्ञान, दर्शन चारित्रादि गुणों का संयोग। प्रशस्तरागः (पुं०) अरहंत, सिद्ध आचार्यादि की भक्ति।
धर्मानुष्ठान। प्रशस्तलक्षणं (नपुं०) उत्तम स्वरूप, शिष्ट गुण। (जयो००
१/४५) प्रशस्त वात्सल्यः (पुं०) आचार्यादि के प्रति संक्लेश से रहित
आदरभाव। प्रशस्तविधिः (स्त्री०) उत्तमविधि, शिष्ट पद्धति। (जयो० प्रशस्त-विहायोगतिः (स्त्री०) उत्तम गति का कारण, वर-वृषभ
द्विरदादिप्रशस्तगतिकरणं प्रशस्तविहायोगतिनाम्। (त०वा० ८/११) प्रशस्तशरीरं (नपुं०) उत्तम देह। (जयो०वृ० १/१११)
सुगठित शरीर। सौष्ठव युक्त काय।
प्रशस्तस्थिरीकरणं (नपुं०) चारित्रादि में स्थिर करना। प्रशस्तिः (स्त्री०) [प्र+शंस्+क्तिन्] श्लाघा। (जयो० १/१२)
प्रशंसा, स्तुति, गुणगान। (सम्य० ४) विरूदावली (वीरो० ३/१२, जयो० १/१४)
०वर्णन, शुभकामना, श्रेष्ठभावना। प्रशस्तिस्तूपः (पुं०) शान्त मानस्तम्भ। (दयो० ६५)
० श्रेष्ठ विचारात्मक स्तूप। ०गुणानुवाद युक्त स्तम्भ।
निर्देशन, शिक्षण। प्रशस्तिभावः (पुं०) यशोगान। (वीरो० २०/२२) प्रशस्य (वि०) [प्र+शंस्+क्यप्] प्रशंसनीय, प्रशंसा योग्य।
(जयो० ३/२४)
प्रशंसा के योग्य, श्रेष्ठ, श्लाघनीय। (सम्य० ७४) (जयो०
१८/४१) प्रशाख (वि०) [प्रशस्ता शाखा यस्य] उत्तम शाखाओं वाला। प्रशाखिका (स्त्री०) [प्रशाखा+कन्+टाप्] टहनी, छोटी-छोटी
टहनिया। प्रशान्त (भू०क०कृ०) [प्र+शम् णिच्+क्त] ०शान्त, शान्ति
प्राप्त, स्वस्थ्यचित्त। प्रसन्न, हर्षित हुआ। (सुद० १२४) निश्चल, सौम्य, धीरता युक्त, गम्भीर। निस्तब्ध, धीर, निश्चेष्ट। समाप्त, क्षीण, विरत, विवृत्त।
निर्विकार, हिंसादि दोषों से रहित। प्रशान्तकरण (वि०) इन्द्रिय विजयी। (दयो० ३०) प्रशान्तकाम (वि०) संतुष्ट, संतोषी। प्रशान्तगत (वि०) शान्त हुआ, संतुष्टि को प्राप्त हुआ। प्रशान्तगेहं (नपुं०) शांतिप्रिय गृह। विश्रान्ति गृह। प्रशान्तचित्त (नपुं०) शांत मन, स्वस्थ्य चित्त। (जयो० १/२४) प्रशान्तचेष्ट (वि०) विरत, विवृत्त, शान्तचेष्टा वाला।
धीरता युक्त। प्रशान्तजन्मन् (वि०) निर्विकार जन्म युक्त। प्रशान्ततपः (वि०) निश्चल तप। उत्कृष्ट गगन। प्रशान्तदानं (नपुं०) यथेष्ट दान। पात्रोचिता दान। प्रशान्तधर्मन् (वि०) हिंसादि दोषों से रहित धर्म, उचित धर्म। प्रशान्तनभः (पुं०) बादलों रहित आकाश। प्रशान्तनयनं (नपुं०) ०निश्चेष्ट नेत्र। ०अपलक नयन।
सुंदर नेत्र। प्रशान्तपदं (नपुं०) निर्विकार पद, यथेष्टपद।
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