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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवेल: ७२२ प्रशस्त प्रवेल: (पुं०) [प्र+वेल्+अच्] एक मूंग विशेष। प्रवेशः (पुं०) [प्र-विश्+घञ्] ०पहुंच, घुसना, अन्तर्गमन। (सुद० ९४) मुख्य द्वार भाग, घुसने का स्थान। आय, राजस्व। ०पीछा करना, प्रयोजन की तत्परता। प्रवेशकः (पुं०) [प्र+विश्+ण्वुल] घुसना, प्रविष्ट होना। प्रवेष्टः (भू०क०कृ०) [प्र+विश्+णिच्+क्त] प्रविष्ट कराया हुआ, अंदन किया गया। प्रवेशिनी (वि०) प्रविष्ट होने वाली। (जयो०वृ० २/४३) प्रवेष्टः (पुं०) [प्र.वेष्ट्+अच्] भुजा, कलाई। ०पहुंचा गया। अंदर प्रविष्ट हुआ। प्रव्यक्त (भू०क०कृ) [प्रकर्षण व्यक्तः] स्पष्ट, साफ, प्रकट। प्रव्यक्तिः (स्त्री०) [प्र+वि+अज+क्तिन्] दर्शन, प्रकटीभवन, दिखाई देना। प्रत्यक्षीकरण। प्रव्रज् (अक०) गमन करना, जाना। 'पुनः प्रवव्राज समुक्ति ___ हेतु प्रयुक्तये'। (वीरो० ११/६) प्रव्रजनं (नपुं०) [प्र+व+ल्युट्] विदेश गमन, विदेश यात्रा। अस्थायी रूप से बसना। निर्वासित होना। ०वानप्रस्थ हो जाना। प्रव्रजित (भू०क०कृ०) [प्रव्रज्+क्त] निर्वासित, संयस्त, प्रव्रज्या लिया हुआ, संन्यास लिया हुआ। प्रव्रजितः (पुं०) साधु, मुनि। प्रवजितं (नपुं०) साधु जीवन, साधु बनना। प्रव्रज्या (स्त्री०) [प्रव्रिज्+क्यपटाप्] संन्यास, दीक्षा, श्रमण होना। दीक्षा अङ्गीकार करना। साधु बनना, संन्यासी जीवन। देशान्तर गमन, प्रयाण, पर्यटन। सावध योग का परित्याग। विरतिपरिणाम। प्रव्रज्याह (वि०) आर्य देश में उत्पन्न। मुनिदीक्षार्थ। प्रतश्चनः (पुं०) [प्र+वश्च्+ल्युट] आरी, लकड़ी काटने का | उपकरण। प्रव्राज् (पुं०) [प्रव्रज+क्विप्] साधु, मुनि, यति, संन्यासी, विरागी। प्रव्राजकः (पुं०) साधु, मुनि। ०पांच प्रकार के आचार्यों में प्रथम। प्रताजनं (नपुं०) [प्रव्रज्+णिच् ल्युट] निर्वासन, देशनिकाला। प्रशंसनं (नपुं०) [प्र+शंस+ल्युट्] प्रशंसा करना, स्तुति करना, स्नेह करना। प्रशंसनीय (वि०) श्लाघनीय, शिष्ट। (जयो०७० ३/२३) बहुशोभि (जयो०वृ० ४/२५) स्तुति करने योग्य। प्रशंसा (स्त्री०) [प्राशंस्+अ+टाप्] गुणोद् भावनाभिप्राय: स्तुति, गुणगान। आत्मानुशासन की शंसा। वर्णन, उल्लेख। कीर्ति, ख्याति, प्रसिद्धि। ०सम्मानजनक वाणी। प्रशंसायोग्यः (पुं०) गुणगान योग्य। (जयो०वृ० १/१३) प्रशंसित (भू०क०कृ०) [प्र+शंस्+क्त] प्रशंसा किया गया, स्तुति किया गया। प्रशत्त्वन् (पुं०) [प्र+शद्+क्वनिप्] समुद्र, सागर। प्रशत्त्वरी (स्त्री०) नदी, सरिता। प्रशमः (पुं०) [प्र+शम्+घञ्] ०शमन, शान्ति, बुझाना, शान्तगुण महाशयस्य प्रशमः प्रशस्यः। (सम्य० ७४) उपशमन। विराम, अंत, विनाश। •सान्त्वना, तुष्टिकरण। (सुद० १३०) ०कषायाभाव-प्रशमः कषायाभावः। रागादीनमनुद्रेकः प्रशमः (त०वा० १/२) प्रशमगुणं (नपुं०) शांत गुण। (सम्य० ७४) प्रशमधर (वि०) प्रशमभाव के धारक। (सुद० १३६) प्रशमनं (वि०) [प्र+शम् णिच्+ल्युट्] ०शांत करने वाला, शांति स्थापित करना। धीरज बंधाने वाला। दमन करना, धैर्य बांधना। दिलासा देना। चिकित्सा करना, स्वास्थ्य करना। उपयुक्त रूप से प्रदान करना। ०प्राप्त करना, ग्रहण करना। प्रशमभावः (पुं०) शांतपरिणाम। (जयो० १/८७) प्रशमित (भू०क०कृ०) [प्र+शम् णिच्+क्त] ०शमित, शांत किया गया। (वीरो० २२/४१) ०बुझाई गई, शांत की गई। प्रायश्चित्त किया गया, परिशोध किया गया। प्रशस्त (भू०क०कृ०) [प्र+शम्+णिच्+क्त] ०सान्त्वना दी गई, धीरज बंधाया गया। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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